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Saturday, February 26, 2011

विकासोन्मुख रेल बजट



हरिराम पाण्डेय
तमाम अटकलों और विरोधों के बावजूद रेल मंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने भारत जैसे महंगाई पीडि़त देश के लिये प्रशंसनीय बजट पेश किया है। अटकलें थीं कि वे बंगाल पर ज्यादा जोर देंगी और देश के शेष भाग को नजरअंदाज कर देंगी। विपक्ष इसके लिये तैयार भी था। लेकिन आम आदमी को सीधा प्रभावित करने वाला रेल भाड़ा और यात्री किराये में कोई वृद्धि न कर ममता जी ने अच्छा काम किया। हालांकि यह लगातार आठवां साल था कि यात्री किराया नहीं बढ़ाया गया। रेल माल ढुलाई भाड़ा और यात्री किराया नहीं बढ़ाये जाने से महंगाई पर रेलवे का असर नहीं होगा और जैसा कि कहा जा रहा था कि महंगाई बढ़ जायेगी वैसा नहीं हुआ। ममता जी ने ढांचागत सुधार के लिये निवेश का प्रस्ताव कर रेलवे की क्षमता में सुधार की ओर कदम उठाया है। आरक्षण की दर में कमी करना भी अच्छा कदम है। यही नहीं ममता जी ने जो तोहफा दिया है उसमें सबसे महत्वपूर्ण है 700 किलोमीटर नयी रेल लाइनें बिछाये जाने की योजना और सात साल में सिक्किम को छोड़ कर सभी राज्यों की राजधानियों को रेल से जोड़े जाने की योजना। इन सारी सौगातों के बाद जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने आती है वह है यात्री सुरक्षा और वित्त प्रबंधन। वित्त मंत्रालय और योजना आयोग ने रेल मंत्रालय को कहा था कि किराये के ढांचे में बदलाव करें लेकिन इस बजट में रेल मंत्री ने यह नजर अंदाज कर दिया। दूसरी तरफ उन्होंने खर्चे बढ़ा दिये, साथ ही वेतन वृद्धि , डीजल की कीमतों में वृद्धि के खर्चे बढ़ गये, ममता जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा कि आय कैसे बढ़ेगी। यात्रियों पर जितना खर्च होता है वह किराया नही बढ़ाने के कारण 2006-7 के 6042 करोड़ से 2009-10 में बढ़कर 19120 करोड़ हो गया। यह साल तो रेलवे के लिये और कठिन साबित होगा क्योंकि इस साल वेतन वृद्धि और उड़ीसा तथा कर्नाटक से बाहर लौह अयस्क की ढुलाई पर रोक के कारण आय और कम हो गयी है। इस वित्त वर्ष में ही खर्च 1,330 करोड़ रुपये बढ़ गया है, जबकि कमाई 1,142 करोड़ रुपये के करीब घट गयी है। आज रेलवे को सौ रुपये कमाने केलिए 95 रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जबकि वित्त वर्ष 2007-08 के दौरान यह अनुपात (ऑपरेटिंग रेशियो) इससे काफी कम (75.9/100) था। जाहिर है, ऐसे में रेलवे से बेहतर सुविधा की अपेक्षा रखना बेमानी है। रेल के खजाने में अब सिर्फ 5,000 करोड़ रुपये बतौर रिजर्व राशि जमा है जो हाल के दौर में सबसे कम राशि है। रेलवे के पास इतना पैसा नहीं है कि वह इसे कैपिटल फंड और विकास फंड में जमा कर सके ताकि नयी चीजें खरीदी जा सकें और यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी की जा सके। पिछले साल रेलवे कैपिटल फंड में एक रुपये भी नहीं जमा कर पायी जो किसी भी संगठन की खस्ताहाली का पहला सबूत है।
अब बात आती है कि इस बजट में जो लंबी-चौड़ी घोषणाएं की गयी हैं, उन्हें लागू कौन करेगा। यह तो जग जाहिर है कि ममता बनर्जी की निगाह बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी है। सवाल है कि अगले चंद महीनों में अगर देश को एक नया रेल मंत्री मिल जाता है, तो क्या आज के बजट में जिन बड़ी- बड़ी योजनाओं का एलान किया गया है उसे ठीक ढंग से लागू किया जा सकेगा? सवाल इस बात को भी लेकर उठाये जा रहे हैं कि ऐसे समय में जबकि रेलवे की माली हालत बेहद खस्ता है और रेलमंत्री खुद भी इस बात को कबूल कर रही हैं तो इन योजनाओं के लिए पैसा कहां से आएगा? यह भी कहा जा रहा है कि रेलवे की जो पुरानी परियोजनाएं पिछड़ गयी हैं, उनको लेकर मंत्रालय का रुख बहुत स्पष्ट नहीं है। इस सिलसिले में एक कमीशन तो बना दिया गया है, जो इस बात का ब्योरा तैयार करेगा कि जिन पुरानी परियोजनाओं का काम पिछड़ गया है, उसे लेकर आवंटित राशि में से कितनी रकम बची है। लेकिन उन योजनाओं में कैसे तेजी लायी जाएगी, इसको लेकर बजट में कुछ साफ-साफ नहीं बताया गया है। लेकिन अभी जो ताजा स्थिति है उसे देखकर कहा जा सकता है कि बजट विकासोन्मुख है और हमें सकारात्मक सोचना चाहिये।

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