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Monday, February 28, 2011

आम बजट : सबके लिये थोड़ा-थोड़ा



हरिराम पाण्डेय
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने चुनावी मौसम में जनता को सौगात दी है। लोकसभा में वित्त वर्ष 2011-12 का बजट पेश करते हुए प्रणब मुखर्जी ने वेतनभोगियों, उद्यमियों, किसानों के साथ आम उपभोक्ताओं को कुछ-कुछ राहत दी है। यह उनका छठा बजट है। वित्त मंत्री की नजर देश के पांच राज्यों में जल्दी ही होने वाले विधानसभा चुनावों पर है। इसके मद्देनजर इनकम टैक्स छूट की सीमा मौजूदा 1.60 लाख से बढ़ा कर 1.80 लाख रुपये की गयी है।असम, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, केरल और पश्चिम बंगाल में जल्द ही विधानसभा चुनाव होना हैं। माना जा रहा है कि बजट में नौकरीपेशा लोगों और किसानों को इसी लिये राहत मिली है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इनकम टैक्स देने वालों के लिए बजट में कई सुविधाओं की घोषणा की है। अब ऐसे वेतनभोगी जिनको किसी अन्य स्रोत से आमदनी नहीं है, उन्हें इंडिविजुअल टैक्स रिटर्न भरने की जरूरत नहीं होगी। वित्त मंत्री ने इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ा दी है। महिलाओं के लिए इस सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है। वहीं सीनियर सिटिजन के लिए टैक्स छूट की सीमा 2,40,000 से बढ़ाकर 2,50,000 रुपये कर दिया गया। साथ ही अब 60 साल से ऊपर के लोग सीनियर सिटिजन के दायरे में आएंगे। इसके साथ ही 80 साल से ऊपर के सीनियर सिटिजन के लिए एक नया टैक्स स्लैब बनाया गया है।वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि मंहगाई अभी भी चिंताजनक स्तर पर है लेकिन आने वाले वित्तीय वर्ष में मंहगाई दर कम होने की संभावना है और आर्थिक तरक्की की दर नौ प्रतिशत पर बनी रहेगी।आर्थिक विश्वलेषकों ने अपनी आरंभिक प्रतिक्रिया में कहा है कि इस बजट में विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखा गया है, बजट घाटे में कमी करने के लिए खास कदम नहीं उठाए गए हैं, भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम कसने के लिए भी कुछ ठोस उपाए नहीं सुझाए गए हैं।
गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए केरोसिन तेल और रसोई गैस में मिलनेवाली रियायतें नकद राशि के तौर पर दी जाएगी। इसे सरकार की सब्सिडी पॉलिसी में एक बड़े परिवर्तन और एक बोल्ड कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
वित्तमंत्री ने इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द लागू करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाने की भी घोषणा की है।
वित्त मंत्री का मानना है कि अभी मुख्य चुनौतियां हैं उच्च विकास दर बनाए रखने की, विकास में पूरे देश को शामिल करने की और सरकारी कायक्रमों को बेहतर करने की। जहां ग्रामीण इलाकों में घरों के लिए मिलनेवाले कर्ज कोष को अब 3,000 करोड़ रूपए तक बढ़ाया जा रहा है। पहले ये 2,000 करोड़ का था। वहीं कमजोर वर्गों को दिए गए कर्ज के इंश्योरेंस के लिए मार्गेज रिस्क गारंटी फंड की स्थापना की जा रही है।
वित्त मंत्री ने भुखमरी और कुपोषण जैसी समस्याओं से निपटने के लिए एक राष्टï्रीय फूड बिल को संसद में पेश करने का आश्वासन दिया है। वित्त मंत्री ने सकल घरेलू उत्पाद की दर 8.6 प्रतिशत रहने की संभावना जाहिर की है। वहीं उम्मीद जतायी है कि कृषि क्षेत्र में वृद्धि की दर 5.4 प्रतिशत होगी. सेवा क्षेत्र में वृद्धि 9.6 प्रतिशत की होगी। उद्योग क्षेत्र में वृद्धि दर 8.1 प्रतिशत होने की संभावना है। इन सारे सुनहले सपनों के बीच इस कठोर सच्चई को देखना जरूरी है। वह हकीकत है कि हमसे वसूले गये रूपयों को सरकार खर्च कैसे करती है।
लोगों को टैक्स अदा करने के लिए प्रेरित करने के लिए बनवाए विज्ञापन में सरकार यही कहती है कि टैक्स का इस्तेमाल उन्हीं की भलाई में होगा, पर सच कुछ और है। सरकार आम लोगों से सीधे तौर पर वसूले जा रहे कर (प्रत्यक्ष कर) की आधी रकम भी सामाजिक क्षेत्र में खर्च नहीं कर रही है। सरकार ने वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान अप्रैल से जनवरी तक 3,17,501 करोड़ रुपये का राजस्व सिर्फ प्रत्यक्ष कर के रूप में हासिल किया है। जबकि सरकार लोगों के हित में, सामाजिक क्षेत्र में सीधे तौर पर महज 1.37 लाख करोड़ रुपये (प्रत्यक्ष कर राजस्व का एक तिहाई से थोड़ा ज्यादा) ही खर्च कर रही है। देश को कर के तौर पर मिलने वाले राजस्व का एक बड़ा हिस्सा रक्षा बजट में चला जाता है। प्रत्यक्ष कर में व्यक्तिगत आयकर, कंपनियों से मिलने वाला कर, सेक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स, फ्रिंज बेनेफिट टैक्स और बैंकिंग लेनदेन से जुड़े टैक्स शामिल होते हैं।
बीते अप्रैल से जनवरी तक इसकी वसूली छले साल की तुलना में 20 फीसदी बढ़ी है। लेकिन इस दौरान इससे कहीं ज्यादा रकम घोटाले की भेंट चढऩे की जानकारी उजागर हुई। भारत सरकार सामाजिक क्षेत्र पर मात्र 1.37 लाख करोड़ रुपये (1370 अरब रुपये) खर्च कर रही है, जो वित्त वर्ष 2010-11 के लिए तय सालाना बजट का करीब 37 फीसदी है। इसमें स्वास्थ्य पर करीब छह फीसदी और शिक्षा पर करीब 9 फीसदी खर्च किया जा रहा है। यह कई देशों द्वाराइन्हीं मदों में किये जा रहे व्यय से बहुत कम है।

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