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Sunday, July 17, 2011

एक सुनियोजित विस्फोट


हरिराम पाण्डेय
14जुलाई 2011
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बुधवार शाम तीन जगहों पर धमाकों में आईईडी, अमोनियम नाइट्रेट से कराए गए सीरियल ब्लास्ट में 18 लोग मारे जा चुके हैं और 130 जख्मी हैं। जांच एजेंसियों से जुड़े सूत्रों की मानें तो विस्फोट सेल फोन अलार्म से किया गया। धमाके के पीछे इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर का हाथ माना जा रहा है। एनआईए, एनएसजी और फॉरेंसिक टीमें जांच में जुटीं हुई हैं। मुंबई धमाकों में मारे गए लोगों में से एक की लाश पर इलेक्ट्रिक सर्किट पाए जाने से यह सवाल उठने लगा है कि क्या ये धमाके फिदायीन हमले का हिस्सा थे? जे जे अस्पताल के एक डॉक्टर ने यह जानकारी दी है कि एक लाश पर इलेक्ट्रिक सर्किट मिला है। अस्पताल के डीन टी पी लहाणे ने यह जानकारी संबंधित अधिकारियों को बता दी है। ऐसी आशंका है कि इस इलेक्ट्रिक सर्किट का इस्तेमाल धमाकों में से एक को अंजाम देने के लिए किया गया हो, जो एक मृतक के शरीर पर मिला है। मुंबई पहुंचे गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि बुधवार के इन विस्फोटों के बारे में केंद्रीय और प्रदेश की सुरक्षा एजेंसियों के पास कोई खुफिया जानकारी नहीं थी। लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार किया कि यह हमला खुफिया एजेंसियों की असफलता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भारत के हर शहर पर खतरा है। उन्होंने कहा, ऐसे सभी गुट, जो ऐसा हमला करने में सक्षम हैं, संदेह के दायरे में हैं और उन पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। चिदम्बरम ने बुधवार को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की निंदा करते हुए कहा कि इस हमले में अब तक 18 लोगों की मौत हुई है, जबकि 131 लोग घायल हुए हैं। हालांकि इससे पहले 21 लोगों के मरने की खबर आई थी, लेकिन गुरुवार सुबह मुंबई पहुंचे गृहमंत्री ने 18 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की। हमले में घायल 131 लोगों में से 23 को गंभीर चोटें आयी हैं, जिनमें कुछ की हालत गंभीर है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने विस्फोट में मारे गए प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को 5 लाख रुपये मुआवजे के रूप में देने की घोषणा की है। गृहमंत्री ने कहा कि यह एक सुनियोजित विस्फोट था और इसमें आईईडी में अमोनियम नाइट्रेट के साथ टाइमर का इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने बताया विस्फोट स्थल की घेराबंदी कर दी गयी है और लोगों को वहां नहीं जाने दिया जा रहा है। उन्होंने मीडिया से किसी तरह के कयास लगाने से बचने की अपील करते हुए कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकार अपने-अपने स्तर पर हर दो घंटे के बाद न्यूज बुलेटिन जारी करेंगे। उन्होंने कहा, '26/11 की घटना के बाद देश में दो आतंकवादी हमले हुए हैं और दोनों महाराष्ट्र में हुए हैं। पहला हमला पुणे में और दूसरा मुंबई में
हुआ। लेकिन मुझे आशा है कि मुंबई और महाराष्ट्र की जनता इस सदमे से उबर जाएगी।Ó इतना तो साफ है कि देश में स्थितियां ऐसी नहीं हैं कि आप निश्चिंत होकर बैठ सकें। बुधवार की रात मुंबई में हुए विस्फोटों से यह तथ्य रेखांकित होता है कि शरारती तत्व हमारी सुरक्षा एजेंसियों की चौकस नजरों से कहीं ज्यादा शातिर ढंग से स्थितियों का मुआयना कर रहे हैं। वे इसका फायदा कहीं भी उठा सकते हैं और कभी भी। मुंबई वैसे भी आतंकवादियों की सूची में पहले नंबर पर रही है। सन् 1993 से वहां हर साल-दो साल बाद इस तरह की कोई न कोई वारदात होती ही रही है।
यह भारत की व्यापारिक राजधानी है। यहां व्यस्तता है, भीड़-भाड़ है, मिलीजुली आबादी है और उग्र राजनीति की वजह से कोई वारदात आसानी से सांप्रदायिक तनाव को जन्म दे सकता है। सन् 2008 के हमले ने यह भी समझा दिया है कि इस शहर पर विदेशी जमीन से भी आतंकवादी हमला हो सकता है। यहां छोटी घटना भी बड़ी भगदड़ और सनसनीखेज खबरों में बदल सकती है। ताजा विस्फोट सन् 2008 के हमले की तरह नहीं है। लेकिन इन्हें देखकर पहली नजर में ही पता चल जाता है कि यह आतंकवादी वारदात है और सुनियोजित है। पर शायद इसके लिए पहले की तरह बड़ा फंड नहीं मिला या उतनी बड़ी तैयारी नहीं की जा सकी। इसीलिए पहला शक इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठन पर जाता है। हालांकि अभी ऐसा कोई भी निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है और पूरी जांच के बाद ही इसके सभी सूत्र स्पष्ट होंगे। फिलहाल ऐसी हालत में हमारे लिए चुनौतियां और बढ़ जाती हैं, क्योंकि आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए अपना सारा ध्यान और सारे संसाधन हम सिर्फ विदेशी और बड़े संगठनों की ओर ही लगाए रखते हैं। अब समय आ गया है कि हम एक सतर्क समाज की तरह चौकसी बरतना सीखें। लोग यह समझें कि हमें किस तरह से साजिशों का निशाना बनाया जाता है। हम उन्माद और अफवाहों का शिकार नहीं बनें और अनहोनी के समय में भी संयम बनाए रखना सीखें। निश्चित रूप से मुंबई ने एक से ज्यादा बार अपने धैर्य और अमनपसंदी का सबूत दिया है। लेकिन खुफिया एजेंसियों और प्रशासन ने चौकसी में ढील बरती है। इसी का एक नमूना यह है कि वारदात की खबर की पुष्टि होने के बाद दिल्ली से एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की टीम मुंबई रवाना की गयी। हम सारी एजेंसियां दिल्ली में ही जमाकर के क्यों रखते हैं? इस एजेंसी की शाखाएं हमारे दूसरे महानगरों में भी क्यों नहीं रखी गयी हैं? सन् 2008 के हमले के बाद ऐसा फैसला हुआ था कि देश के चार स्ट्रेटजिक महानगरों में ऐसे संगठनों की शाखाएं होंगी, जो तत्काल घटनास्थल पर पहुंच सकें। लेकिन उस पर हमने गंभीरता से अमल नहीं किया। इस ताजा वारदात ने हमें चेता दिया है कि सुरक्षा और सतर्कता के मामले में हम तनिक भी कोताही नहीं बरत सकते। हमने देखा कि न्यूयार्क में वर्ष 2001 में 9/11 का हमला हुआ उसके बाद वहाँ सुरक्षा इतनी चुस्त दुरुस्त कर दी गयी कि हर बार चरमपंथी हमले को नाकाम कर दिया गया। लंदन में सन् 2005 में हुए चरमपंथी हमलों के बाद से वहाँ भी चरमपंथी सुरक्षा व्यवस्था को भेद नहीं पाए हैं।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले 20 बरसों में मुंबई में 13 हमले हो चुके हैं, क्यों हम अपनी व्यावसायिक राजधानी को सुरक्षित नहीं रख पाते? मुंबई कभी अंडरवल्र्ड के साये में रहती है तो कभी चरमपंथी हमलों के डर से कांपती रहती है। क्या मुंबई में सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद करना सचमुच कठिन है या फिर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है?

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