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Sunday, July 17, 2011

मायावती सरकार पर चोट


हरिराम पाण्डेय
9जुलाई 2011
ऊपरी तौर पर देखने से लगता है कि ग्रेटर नोएडा में जमीन अधिग्रहण रद्द करने का फैसला बिल्डर्स और फ्लैट खरीदने वालों के खिलाफ है। लेकिन टीकाकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय वास्तव में माया सरकार की साख पर चोट है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही बाकी हैं, इसलिए जाहिर है कि विपक्ष को सरकार पर हमले का एक और मजबूत हथियार मिल गया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश और मौखिक टिप्पणी में मुख्य बात यह है कि ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी यानी उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से किसानों को सुनवाई का मौका दिए बगैर 'तत्काल जरूरत (अर्जेंसी)Ó के आधार पर जमीन अधिग्रहण करना सरकार को मिली शक्तियों का दुरुपयोग है। दूसरे यह कि जिस औद्योगिक विकास का उद्देश्य दिखाकर जमीन ली गयी, वह धोखा था और असली उद्देश्य बिल्डर्स को फायदा पहुंचाना था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी पदयात्रा में भी मायावती सरकार की ओर से किसानों के साथ अन्याय और कंपनियों को फायदा पहुंचाने की बात कही। जहाँ मुख्यमंत्री मायावती ने आम आदमी तो क्या अपनी पार्टी के विधायकों और मंत्रियों से भी दूरी बना रखी है, वहीं राहुल गांधी सीधे आम आदमी के बीच जाकर उनसे भावनात्मक रिश्ता जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने तो जमीन अधिग्रहण घोटाले पर बाकायदा श्वेत पत्र जारी किया है। बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ता ने कहा है, 'उनका किसान प्रेम मात्र एक दिखावा है और उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह राजनीतिक ड्रामेबाजी कर रहे हैं।Ó मायावती सरकार हर बार केवल यही बात कह रही है कि केन्द्र पुराना जमीन अधिग्रहण कानून बदले। मायावती यह भी कह रही हैं कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में पदयात्रा की नौटंकी न करके दिल्ली जाकर भूमि अधिग्रहण कानून बदलवाएं और डीजल का बढ़ा दाम वापस कराकर किसानों को राहत दिलाएं। पिछले लोकसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि बहुजन समाज पार्टी को बलिया से गौतम बुद्धनगर तक उन अधिकांश सीटों पर हार का सामना करना पड़ा, जो प्रस्तावित गंगा एक्सप्रेस-वे योजना का इलाका है। पश्चिम में तो इस समय 5 एक्सप्रेस-वे योजनाएं प्रस्तावित हैं। अकेले यमुना एक्सप्रेस-वे में 6 जिलों के लगभग 1200 गांव प्रभावित हैं। पूरे प्रदेश में कई हजार गाँव हैं, जो उत्तर प्रदेश सरकार की जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई से प्रभावित हैं। बिल्डर्स और कंपनी वाले शायद अभी तक इस भरोसे में थे कि पहले की तरह मायावती सरकार सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत दिला देगी, मगर ऐसा नहीं हो पाया। चर्चा तो यह भी है कि न्यायमूर्ति के जी बालकृष्णन के जमाने में मायावती के सिर पर अदालत का हाथ था। अब वह स्वयं जांच के घेरे में हैं। सरकार संभलना चाहे तो नौकरशाही को किनारे कर प्रभावित किसानों से सीधे बात करे, उनकी समस्याओं का समाधान करे या फिर चुनाव में राजनीतिक नुकसान उठाने के लिए तैयार रहे।

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