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Friday, July 29, 2011

फकत करप्शन ही मसला नहीं है


हरिराम पाण्डेय
26जुलाई 2011
अगर देश के टी वी चैनलों और पत्रिकाओं की मानें तो यहां सबसे बड़ी समस्या करप्शन (भ्रष्टïाचार) ही है। लेकिन शायद यह सच नहीं है। भ्रष्टïाचार दरअसल मध्यवर्गीय आवेश और उसका ध्यान बंटाने का प्रपंच है। बेशक भ्रष्टïाचार बहुत बढ़ा हुआ है और ऐसा भी नहीं है कि पिछली सरकारों में यह बहुत कम था। यहां इरादा यूपीए सरकार को दोषमुक्त करना या उसे साफसुथरा बताना नहीं है। सच तो यह है कि यह सरकार भ्रष्टïाचार पर लगाम लगाने और नाजायज तौर पर धन संग्रह को रोकने के लिये कोशिशें कर रही है और उसकी कोशिशें रंग भी ला रही है। फिर भी खबरों और रहस्योद्घाटनों का रेला लगातार आ रहा है, इसका कारण है कि इस सरकार में पहले की सरकारों से कम गोपनीयता है और खबरें पोशीदा नहीं रह पाती हैं। इसलिये भ्रष्टïाचार की खबरें ज्यादा सुनायी - दिखायी पड़ती हैं और हम कहते हैं कि अबसे ज्यादा भ्रष्टïाचार कभी था ही नहीं। सच तो यह है कि अगर कोई भ्रष्टïाचार से उत्पन्न धन के आंकड़े और गैरकानूनी ढंग से रुपयों की आय का हिसाब तैयार करे तथा बेईमानियों का लेखा- जोखा बनाये तो पता चलेगा कि हालात पहले से बहुत खराब नहीं हैं। अगर हम महंगाई और विकास की दरों को उस हिसाब में से निकाल दें तो हालात वही दिखेंगे जो पहले थे। यही नहीं अर्थ व्यवस्था को मुक्त करने और लाइसेंस तथा परमिट राज को खत्म करने एवं निगरानी की व्यवस्था सुधरने के बाद भ्रष्टïाचार घटा है। तब क्या कारण है कि मध्यवर्ग इससे आवेशित रहता है जबकि कई समस्याएं हैं जिससे मध्यवर्गीय समाज परेशान और पीडि़त है। मसलन घर, पीने का साफ पानी, सुरक्षित यातायात व्यवस्था, बिजली, सस्ता ईंधन और बैंकिंग और बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं इत्यादि ऐसी समस्याएं हैं जिससे मध्य वर्ग परेशान है पर उसके बारे में कितना छपता या दिखता है अंग्रेजी अथवा एलिट भाषाई मीडिया में? मीडिया में काम करने वाले और उसके महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों में मध्यवर्ग का वर्चस्व है। क्या उन्हें नहीं मालूम कि हमारे देश की एक बड़ी आबादी बेहद गंदी बस्तियों में रहती है, यह आबादी एशिया, अफ्रीका या लातिनी अमरीका के कई देशों से ज्यादा है। लेकिन उनकी दशा को सुधारने के लिये कितना लिखा जाता है। वे सब कुछ जानते हैं पर बताना नहीं चाहते। क्योंकि यह इतना विशाल, चुनौतीपूर्ण और बेकाबू है कि उसे याद करना तो दूर वे उसकी बात सोचने से भी डरते हैं जबकि भ्रष्टïाचार उनके एजेंडे में माफिक बैठता है और उसे वे काबू करने के लायक समझते हैं। अब सवाल उठता है, यह काबू करने के लायक क्यों है? इसलिये कि मध्यवर्ग और उच्च वर्ग के लोगों के मुताबिक भ्रष्टïाचार में लिप्त लोगों की संख्या बहुत कम है। कितने लोग हैं? सारे सांसद , विधायक , सरकारी नौकर और थोड़े से कारपोरेट सेठ। ये थोड़े से लोग हैं, बस कुछ हजार। इसलिये ऐसा लगता है कि इनपर काबू पाया जा सकता है। जबकि देश में भूख और गरीबी से पीडि़त लोगों की संख्या लाखों में है और उन्हें उससे मुक्त कराना संभव नहीं है। इसके अलावा भ्रष्टïाचार जाति पांति , वर्ग और राष्टï्रीयता , क्षेत्रीयता और अन्य बातों से प्रभावित नहीं होती और इसके खिलाफ आंदोलन में झंझट भी कम है और लोगों का ध्यान ज्यादा आकर्षित करता है। भीड़ ज्यादा खींचता है और इसके कारणों में विश्लेषण जैसे क्लिष्टï उपायों की जरूरत नहीं होती जबकि कोई कहे कि देश में गरीबी या महंगाई के क्या कारण हैं तो यह बड़ा विकट सवाल हो जायेगा तथा इसमें भारी विवाद भी होगा। भ्रष्टïाचार इस देश की सबसे बड़ी समस्या नहीं है, हां इसे नियंत्रित करना जरूरी है। जबकि इसके प्रति इतना आंदोलन बेशक महत्वपूर्ण मसलों से जनता का ध्यान हटाने की साजिश है।

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