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Tuesday, July 26, 2011

पाक का नापाक कर्म


हरिराम पाण्डेय
21 जुलाई 2011
अमरीका में कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के लिए काम करने वाले पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के एक एजेंट को पकड़ा गया है। गिरफ्तार एजेंट पर आरोप है कि वह आईएसआई से पैसे लेकर अमरीकी नीति निर्माताओं को प्रभावित करने के लिए लॉबिंग करता था। हालांकि पाकिस्तान ने इसका खंडन किया है और कहा है कि फाई का पाकिस्तान या आईएसआई से कोई संबंध नहीं है। गुलाम पर आरोप है कि वह पाकिस्तान सरकार की साजिश का हिस्सा है और अमरीकी सरकार को जानकारी दिए बगैर पाकिस्तान के लिए काम कर रहा है। आईएसआई के फ्रंटमैन के तौर पर काम कर रहे एक अन्य शख्स जहीर अहमद पर भी एफबीआई की नजर है। लेकिन इस समय वह पाकिस्तान में रह रहा है। फाई की गिरफ्तारी से साफ हो गया है कि पाकिस्तान अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए किस तरह से गैरकानूनी चीजों को बढ़ावा दे रहा है। फाई अमरीकी नागरिक है और वह वाशिंगटन डी सी में कश्मीरी-अमरीकन काउंसिल (केएसी) नाम का एक गैर सरकारी संगठन चलाता है और वह केएसी का कार्यकारी निदेशक है। इसकी शाखाएं लंदन और ब्रसेल्स में भी हैं। अपने काम के सिलसिले में फाई अमरीकी सांसदों से मिलता- जुलता था। अमरीका का कहना है कि केएसी आईएसआई के लिए काम करने वाली संस्था (फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन) है। एफबीआई द्वारा इस मामले में पेश हलफनामे के मुताबिक केएसी यह दावा करता है कि वह एक कश्मीरी संस्था है और इसे कश्मीरी ही चलाते हैं। केएसी के मुताबिक संस्थान को अमरीका द्वारा ही फंड मुहैया कराया जाता है। हलफनामे के मुताबिक केएसी उन तीन कश्मीरी संगठनों में से एक है, जो पाकिस्तानी सरकार खासकर आईएसआई के इशारे पर काम कर रहे हैं। एफबीआई के मुताबिक एक चश्मदीद ने जांचकर्ताओं को बताया है कि वह आईएसआई से फाई को मिलने वाली रकम को गुप्त रखने की योजना का हिस्सा बन चुका है। चश्मदीद के मुताबिक इस रकम का इस्तेमाल फाई को केएसी के लॉबिस्ट के रूप में पाकिस्तान सरकार के हितों को साधने के लिए किया गया। इससे यह तो जाहिर हो गया कि आई एस आई से मिलने वाले धन का ज्यादा हिस्सा अमरीकी नीति निर्माताओं के जेब में जाता था और वे उसके बदले न केवल पाकिस्तान की कश्मीर नीति के प्रति अमरीकी रुख को प्रभावित करवाते थे, बल्कि पाकिस्तान को मिलने वाले धन के लिये भी जोड़ तोड़ करते थे। यह एक रहस्योद्घाटन है जहां एक ओर कपटपूर्ण सांठगांठ की पोल खोलता है वहीं आई एस आई की अमरीकी प्रशासन में पैठ के संकेत भी देता है। इससे यह पता चलता है कि आई एस आई अमरीकी सत्ता प्रणाली में सेंध लगा चुकी है, यही नहीं उसकी पहुंच दुनिया की महाशक्तियों के भीतर तक हो गयी है। यह पूरी स्थिति कुछ वैसी ही है जैसी अमरीकी उपन्यासकार मैट तबिबी ने अपने उपन्यास 'द बैंकÓ में ग्लोबल बैंकिंग समूह के मालिक का जिक्र किया है कि 'यह मानवता पर लिपटी उस वैम्पायर की मानिंद है जो खून सूंघती फिर रही है।Ó यहां खून की जगह आतंक के साधन समझने होंगे।

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