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Friday, July 29, 2011

भारत- पाक वार्ता : हवा का ताजा झोंका


हरिराम पाण्डेय
28 जुलाई 2011
युवा और उचित रूप में दूरदर्शी पाकिस्तान की विदेश मंत्री सुश्री हिना रब्बानी खार ताजा हवा के रूप में भारत आयीं। दो दिनों की इस यात्रा के दौरान नयी दिल्ली में अपने भारतीय समकक्ष एस एम कृष्णा से बातचीत एवं विभिन्न मसलों पर विचार- विमर्श हुआ। इसके पहले साल जुलाई में ही इस्लामाबाद में पाकिस्तान के पूर्ववर्ती विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से कृष्णा से वार्ता में जिन मसलों पर विचार किया गया था उनमें प्रगति की समीक्षा की गयी। पिछली बैठक में कुरैशी के कारण वार्ता लगभग कूटनीतिक आपदा में बदलने वाली थी। पिछली बैठक के अंत में संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान कुरैशी के उपेक्षाजनक बर्ताव, खासकर कश्मीर के मामले में, करने पर बात बिगड़ï गयी थी। इसे सुधारने में लम्बा समय लग गया। फरवरी 2011 में सार्क सम्मेलन के दौरान थिम्पू में दोनों देशों के विदेश सचिवों में वार्ता के बाद विश्वकप क्रिकेट मैच में आये पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छोटी सी मुलाकात के बाद हालात कुछ सकारात्मक हुए। इस बार उन वार्ताओं में तयशुदा मुद्दों पर हुई प्रगति की समीक्षा करने हिना भारत आयी थीं। हालांकि पाकिस्तान की नवनियुक्त विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार के रुख को लेकर कुछ हद तक आशंकाएं भी जताई जा रही थीं। जिस तरह भारत आते ही उन्होंने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से मुलाकात की, उससे वार्ता की सफलता को लेकर लोगों के मन में सवाल उठ खड़े हुए थे, पर जल्दी ही भ्रम दूर हो गया।
पिछले दो दशकों की बातचीत में पहली बार पाकिस्तान ने कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया है। साझा बयान में पाक विदेश मंत्री ने एक बार भी 'कश्मीरÓ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। निश्चय ही यह पाकिस्तान के बदलते रवैये का संकेत है। खार जैसी युवा महिला को अपना विदेश मंत्री बनाकर पाकिस्तान सरकार ने जता दिया है कि वह पुराने माइंडसेट से बाहर आकर बदलते वक्त के अनुरूप अपनी नीतियां बनाना चाहती है। उसने यह भी संकेत करने की कोशिश की है कि पाकिस्तान कठमुल्लाओं से प्रभावित - निर्देशित होने वाला मुल्क नहीं है, बल्कि एक आधुनिक राष्ट्र है, जिसमें नई पीढ़ी की महिलाओं को न सिर्फ उच्च शिक्षा हासिल करने की आजादी है, बल्कि वे सियासत और राजनय में भी शीर्ष पर पहुंच सकती हैं। दरअसल पाकिस्तान अपनी पुरानी छवि से मुक्त होना चाहता है। खार ने एक खास बात कही है कि भारत और पाकिस्तान की नई पीढ़ी आपसी संबंधों को लेकर उस तरह नहीं सोचती जिस तरह पुरानी पीढ़ी सोचती थी। इस वक्तव्य में पाकिस्तान के नये सोच की झलक है। पाकिस्तान की युवा पीढ़ी का पूरी दुनिया से संपर्क बढ़ा है। वह भी और मुल्कों के लोगों की तरह तरक्की और खुशहाली चाहती है। पर वह जानती है कि ऐसा तभी संभव है जब दूसरे देशों से मधुर संबंध हों, उनमें आपसी आवाजाही और व्यापार में बढ़ोतरी हो। उसे यह मंजूर नहीं कि कट्टरपंथियों की जिद की वजह से इस प्रक्रिया में कोई बाधा आये। भारत भी तो यही कहता आ रहा है। हम यही चाहते हैं कि पाकिस्तान में कट्टरपंथियों की जगह आधुनिक सोच वाले लोगों को बढ़ावा मिले। आवश्यकता इस बात की है कि पाकिस्तानी राजनेता भारत के प्रति अपनी ग्रंथियों से मुक्त होकर द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने को लेकर दृढ़ता दिखाएं, ताकि दोनों तरफ के लोगों के लिए रोजी-रोजगार के अवसर बढ़ें, उनके पारंपरिक सांस्कृतिक बंधन और मजबूत हों। ठीक है कि सारे मतभेद रातोंरात नहीं खत्म होने वाले, लेकिन दोस्ती को लेकर दोनों पक्षों के इरादे मजबूत होंगे तो एक न एक दिन हम आपस की तमाम उलझनें सुलझा ही लेंगे। विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने ठीक ही कहा है कि भारत-पाक का रिश्ता सही रास्ते पर आ चुका है। अब इस पर मजबूती के साथ आगे बढऩे की जरूरत है। लेकिन जो हालात हैं वे हिना की कम तजुर्बेकार और जवान ऐसे नेता के वश की बात नहीं है,जिनका पहला ही कदम भारत पाकिस्तान कूटनीति पर पड़ा है। सबसे पहले जरूरी है कि पाकिस्तानी सेना और आई एस आई के सोच में बदलाव आये। सेना को भारत के प्रति अपने सोच में बदलाव की जरूरत को महसूस करना ही होगा। खबर है कि अमरीका के हाथों अपमान के बाद पाकिस्तानी सेना आत्मनिरीक्षण के दौर से गुजर रही है। यदि इससे सेना के सोच में बदलाव आया तो इस क्षेत्र की सियासी- कूटनीतिक हालत बदल सकती है।

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