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Tuesday, July 26, 2011

वही पुराना राग


हरिराम पाण्डेय
20 जुलाई 2011
अमरीका की विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन ने मंगलवार को पाकिस्तान से कहा कि वह आतंकवादी शिविरों को खत्म करे। भारत के दौरे पर आयीं अमरीकी विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन ने विदेश मंत्री एस एम कृष्णा के साथ भारत-अमरीका रणनीतिक वार्ता के दूसरे दौर के बाद कहा कि गृह सुरक्षा और आतंकवाद निरोधी कार्रवाई के मुद्दे पर विशेष बल दिया गया है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष दोनों देशों को आतंकवाद से बचाने के तरीके खोज रहे हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को स्पष्ट कर दिया गया है कि सभी तरह के हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करना उसी के हित में रहेगा। हिलेरी ने कहा कि हम इस बात में भरोसा नहीं करते कि ऐसा कोई आतंकवादी है जिसे किसी सरकार द्वारा सुरक्षित पनाह या मुक्त मार्ग प्रदान किया जाना चाहिए क्योंकि इस तरह की आतंकवादी गतिविधि को अगर नियंत्रित नहीं किया गया तो बाद में उसके नतीजों को संभालने में बहुत कठिनाई होगी। कृष्णा के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस में अमरीकी विदेशी सचिव ने कहा कि मुंबई में 2008 के आतंकवादी हमलों के बाद अमरीका ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया था कि षड्यंत्रकारियों को न्याय के कठघरे में लाने में सहयोग देना पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी है। हिलेरी के अनुसार अमरीका ने समान तौर पर ही पाकिस्तान को स्पष्ट कर दिया है कि इस काम को पारदर्शिता से पूरी तरह और तत्काल करने में उसकी भी विशेष वचनबद्धता होनी चाहिए। बैठक के बाद जारी एक संयुक्त वक्तव्य के मुताबिक कृष्णा और हिलेरी दोनों ने क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिए और पाकिस्तान के भविष्य के लिए वहां आतंकवादियों की पनाहगाहों को समाप्त करने के महत्व पर जोर दिया। यदि सच कहा जाय तो यह वही पुराना राग है जो अब तक अमरीका भारत से वार्ता के बाद अलापता रहा है। यकीनन इससे भारतीय जनता बिल्कुल प्रभावित नहीं है। जब भी भारत के किसी शहर पर हमला होता है तो इसी तरह के बयान जारी हो जाते हैं। इससे हमें मूल मसले से अपना ध्यान नहीं हटाना चाहिये। अमरीका किसी चालाक व्यवसायी की तरह मीठी- मीठी बातें कर भारत को अपने शिकंजे में लेना चाहता है ताकि पूर्ववर्ती परमाणु समझौते की शर्तों में संशोधन किया जा सके। वह चाहता है कि भारत को परमाणु बिजली बनाने के लिये यूरेनियम की आपूर्ति पर थोड़ी पाबंदी लगा दी जाय, जो कि पूर्ववर्ती समझौते की शर्तों में शामिल नहीं है। वह चाहता है कि समझौते में संशोधन के इकरारनामे पर भारत हस्ताक्षर कर दे और फिर वह मनमुताबिक संशोधन कर डाले। भारत को इस झांसे में नहीं आना चाहिये। लेकिन इस मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी खटक रही है।
दूसरी तरफ जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, वहां की सरकारी एजेंसियां ही भारत में उपद्रव के लिये साधन और धन मुहैया करा रही हैं। इस बात का प्रमाण यही है कि जब भी भारत उससे सम्बंध सुधारने की कोशिश करता है और वहां की जनता भी समर्थन करने लगती है तो अचानक भारत में उपद्रव करा दिया जाता है। वह चाहे कारगिल का हमला हो हो मुम्बई पर आक्रमण या मुम्बई में विस्फोट या अन्य कोई इस तरह की घटना। अत: भारत को अमरीकी झांसे से बचने के साथ ही पाकिस्तान के प्रति सतर्क रहना होगा। उसे यह सोच कर शांत नहीं रहना होगा कि पाक से दोस्ती की बात चल रही है तो शांति रहेगी। भारत के सम्बंध में दोनों अविश्वसनीय हैं।

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