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Friday, July 29, 2011

हिंदुत्व और नार्वे का खून खराबा


हरिराम पाण्डेय
27 जुलाई 2011
ओस्लो में 32 वर्षीय नार्वे वासी ब्रेविक ने धमाके कर 80 युवकों को मौत के घाट उतार दिया। मीडिया में कहा गया कि वह दक्षिणपंथी विचारधारा के आवेश में था, यहां कहने का अर्थ है कि वह हिंदुत्व की विचारधारा के आवेश में था। इन खबरों से हिंदुत्व के बारे में सुसंगत सोच वाले लोगों को बड़ी पीड़ा हुई और साथ ही वे सोचने में नाकामयाब रहे कि आखिर ऐसा कैसे हुआ और क्यों हुआ? जहां तक ब्रेविक का सवाल है तो इस खून खराबे के पहले उसकी सनक से ना आसपास का समाज वाकिफ था और ना पुलिस को इसका इल्म था। इस घटना के बाद सरकारी जांच और निजी अन्वेषणों से पता चला कि वह कुछ समय से इस सनक की गिरफ्त में था और इसके बारे में किसी को कुछ मालूम नहीं था। वह अर्से से विभिन्न वेब साइटों पर अपने विचारों को अभिव्यक्त करता रहा था। मनोविज्ञानियों का कहना है कि सनक कुछ अपने भीतर पनपती है और कुछ बाहरी उद्दीपक तत्वों से प्रोत्साहित होती है। बाहरी उद्दीपक तत्व ऐसे विचारों को अक्सर गलत दिशा की ओर मोड़ देते हैं। ब्रेविक की मनोवृत्ति भी कुदरत के इस नियम से अलग नहीं है। अच्छी शिक्षा दीक्षा के बावजूद ब्रेविक के दिलोदिमाग में सनक और अविवेकपूर्ण विचारों ने जन्म लिया तथा इंटरनेट के माध्यम से अन्य देशों के धर्म और संस्कृति से सीधे सम्पर्क के बावजूद उसकी सनक और विवेकहीनता में कमी नहीं आयी। उसकी इस अविवेकपूर्ण विचारधारा को उद्दीप्त करने वाले तत्वों में इस्लामविरोधी कट्टïर हिंदुत्व विचारधारा भी एक थी। उसके भीतर दो तरह की विचारधाराएं थीं पहली तो इस्लाम विरोधी और दूसरी इस्लाम से बढ़ते खतरे को नहीं भांप कर उसके प्रति उदारता से पैदा हुआ गुस्सा। हालांकि ये दोनों छद्म हैं और इनका हकीकत से कोई लेना देना नहीं है। यह विचारधारा ठीक वैसी है जैसे किसी बच्चे को अंधेरे में भूत का भय लगता है। इस्लाम के प्रति कथित खतरे के भय ने उसे संभवत: हिंदू संगठनों और कट्टïर आदर्शों की साइबर दुनिया में पहुंचाया। वह पहले से ही मुतमईन था कि इस्लाम खतरनाक है अत: जब वह वेब की दुनिया में हिंदू संगठनों के उन लेखों से दो- चार हुआ जिसमें मुसलमानों के हाथों हिंदुओं को सताये जाने और मुसलमानों के अवैध घुसपैठों के झूठे- सच्चे जिक्र थे। वह इन लेखों को इस्लाम के खराब होने के विषयनिष्ठï विश्लेषण मानने लगा। ऐसे में इस निष्कर्ष पर पहुंचना गलत होगा कि हिंदुत्वविचारों के प्रति उसकी चोंचलेबाजी ने उसके भीतर पल रहे इस्लामविरोधी क्रोध को उद्दीप्त कर दिया है। इसके विपरीत ऐसा लगता है कि वह हिंदुत्ववादी वेब साइटों पर पढ़े गये विचारों के आलोक में अपने विश्लेषण को सही मानता था। अपने देश में गुजरात और अयोध्या में भीड़ की सनक के उदाहरण हमने देखे हैं पर किसी एक आदमी की सनक का ऐसा उदाहरण अभी देखने को नहीं मिला है। प्रतिबद्धता के बल पर भीड़ की सनक को नियंत्रित किया जा सकता है। यह दूसरी बात है कि हमारे देश में अयोध्या और गुजरात जैसी सामूहिक सनक की घटनाओं पर काबू नहीं किया जा सका। इसका कारण था कि सरकार उसे काबू करने के प्रति प्रतिबद्ध नहीं थी। जहां तक किसी एक आदमी की सनक का प्रश्न है तो कोई भी सरकार चाहे वह कितनी भी प्रतिबद्ध क्यों ना हो उसे काबू नहीं किया जा सकता है। ऐसे में हिंदुत्व का या किसी भी धर्म का प्रचार करने वालों को गंभीरता से सोचना चाहिये।

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