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Sunday, July 17, 2011

सुरक्षा पर से घटता भरोसा


हरिराम पाण्डेय
15जुलाई 2011
मुम्बई विस्फोट की ताजा घटना के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुम्बई जाने की घोषणा इस बात का परिचायक है कि वे इससे कितने शर्मसार हैं और चिंतित भी। चिता का कारण है कि 26/11 की घटना के बाद सरकार ने आतंकवादी हमलों को रोकने के लिये जिन उपायों को लागू किया था और उनके बारे में बढ़-चढ़ कर बताया गया था सब निष्फल साबित हुए इसका बेहद नकारात्मक सियासी प्रभाव हो सकता है। आतंकवादी हमले रोकने में सरकार की नाकामी से आम जनता का , खास कर मुम्बई वासियों का जिनपर पांच बार हमले हो चुके, भरोसा घटता जा रहा है। आतंकवादी हमले रोकने में खुफियागीरी की मुश्किलों के बारे में सरकार चाहे जो दलील दे पर वह आम जनता का भरोसा नहीं वापस ला सकती। ऐसा एक दो बार होता तो हो सकता है लोग बात मान भी लेते लेकिन एक ही शहर में पांच बार हमले अलग ही बात कहते हैं। अगर लंदन, न्यूयार्क या मेड्रिड में एक बार हमला होने के बाद सुरक्षा एजेंसियां जनता को आश्वस्त कर सकती हैं कि ऐसा दुबारा नहीं होगा और उन्होंने अपने आश्वासन को पूरा कर दिखाया तो क्या कारण है कि हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियां ऐसा नहीं कर सकतीं? सरकार से जनता का यह सवाल बिल्कुल जायज है। पिछले हमलों के बाद की गिरफ्तारियों के बावजूद आतंकी संगठनों के पास फिदायीं हमलों का अभाव नहीं है। उनके गुटों में भर्ती होने और ट्रेंड हो कर काम करने वालों की कमी नहीं है। इससे जाहिर होता है कि उनके बारे में पता लगाने और उन्हें समाप्त करने तथा उनके संसाधनों को तबाह करने में पुलिस तथा सुरक्षा एजेंसियां कामयाब नहीं हैं। 13 जुलाई 2011 को जो हमला हुआ वह 1993, 2003 और 2006 की तरह ही था, जिन हमलों में एक ही तरह के 'मोडस ऑपरेंडीÓ का उपयोग किया गया था। ऐसे हमलों में बेहतर मोटिवेशन और मामूली ट्रेनिंग की जरूरत है न कि किसी खास प्रकार की विशेषज्ञता की। 2008 में जो हमला हुआ था उसकी 'मोडस ऑपरेंडीÓ इनसे थोड़ी अलग थी। इस घटना की जिम्मेदारी अभी तक किसी ने नहीं ली है और ना ही कोई आशाजनक सुराग मिला है। सुरक्षा एजेंसियां भूसे में सुई ढूंढ रहीं हैं। अलबत्ता एक शव में लिपटे इलेक्ट्रानिक सर्किट पाये जाने की खबर गंभीरता से जांच होनी चाहिये। अगर यह सही है तो चिंता की बात है क्योंकि यह विदेशी मदद से फिदायीं हमले का सूचक है। यदि यह गलत है तो समयबद्ध (टाइम्ड) हमले की घटना साबित होती है जिसे रासायनिक टाइमर या घड़ी वाले टाइमर या मोबइल फोन के टाइमर से अंजाम दिया गया है। 1993 में दाउद गिरोह ने जो मुम्बई में विस्फोट कराये थे वे केमिकल टाइमर से कराये गये थे जोकि आई एस आई ने मुहय्या कराया था। अधिकारियों का कहना है कि इस विस्फोट में अमोनियम नाइट्रेट का उपयोग किया गया है। सरकार को मालूम है कि सारी दुनिया में यह सर्व सुलभ विस्फोटक है तब भी नाइट्रोजन युक्त उर्वरक की बिक्री पर क्यों नहीं नजर रखी जाती है?
यह करतूत चाहे इंडियन मुजाहिदीन की हो या अन्य किसी की वह बताना चाहता है कि सरकार के दावों के बावजूद उन संगठनों की कमर अभी टूटी नहीं है। यह महज एक शहर की घटना नहीं है, सरकार को देश के सभी बड़े शहरों पर निगाह रखनी होगी। साथ ही , जबतक पाकिस्तान या आई एस आई के इसमें हाथ होने के पुख्ता सबूत ना मिल जाएं तब तक पाकिस्तान से चल रही वार्ता की प्रक्रिया पर इसका असर ना हो, यह सरकार की कोशिश रहनी चाहिये।

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