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Saturday, October 19, 2013

अपने मन का रावण मारें

10 अक्टूबर 2013 विजयादशमी आने ही वाली है। हम पराजित किस्म के लोग विजयादशमी मनाकर खुश होने का स्वांग भरते रहते हैं, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीराम को महाशक्ति दुर्गा ने विजयीभव का आशीर्वाद दिया था। महाशक्ति के आशीर्वाद से ही भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय पायी। सीता को उसके चंगुल से ही नहीं छुड़ाया बल्कि जो वचन उन्होंने विभीषण को दिया था - लंकेश कहकर, उस वचन को भी निभाया। बाद में अपने भाई लक्ष्मण के साथ पुन: अयोध्या लौटे और अवध की संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाया। यहीं नहीं उन्होंने मर्यादा की अद्भुत मिसाल कायम की। उस मर्यादा की जिसके कारण उनका एक नाम मर्यादा पुरुषोत्तम भी पड़ गया। लेकिन आज उसी देश की स्थिति क्या है जहां राम का जन्म हुआ था? हालात ठीक वैसे ही हैं जैसे राम के समय में थे। भारत की सभ्यता और संस्कृति व आध्यात्मिक शक्ति पर रावण की नजर थी, उसकी सेना और गुप्तचर अयोध्या की सीमा तक पहुंच चुके थे, स्थिति ये थी की कोई सुरक्षित नहीं था। महर्षि विश्वामित्र को इसका आभास था । इसलिए भारत को अखंड रखने के लिए, अपने यज्ञ को बीच में ही छोड़कर अयोध्या पहुंचते हैं और महाराज दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग लेते हैं। आज हम बाहर रावण का दहन करते हैं और अपने भीतर उसे पालते हैं। रावण का कद बढ़ता जा रहा है और राम बौने होते जा रहे हैं। अच्छे लोग हाशिये पर डाल दिए गए हैं। गाय की पूजा करेंगे और गाय घर के सामने आकर खड़ी हो जायेगी तो गरम पानी डाल कर या लात मार कर भगा देंगे। बुरे लोग नायक बनते जा रहे है। नयी पीढ़ी के नायक फिल्मी दुनिया के लोग हैं। राम-कृष्ण, महावीर, बुद्ध, गांधी आदि केवल कैलेंडरो में ही नजर आते है। यह समय उत्सवजीवी समय है, इसीलिए तो शव होता जा रहा है। अत्याचार सह रहे हैं लेकिन प्रतिकार नहीं। प्रगति के नाम पर बेहयाई बढ़ी है। लोकतंत्र असफल हो रहा है। देखे, समझें। और महान लोकतंत्र के लिए जनता को तैयार करें। बहुत हो गया ऊंचा रावण, बौना होता राम, मेरे देश की उत्सव-प्रेमी जनता तुझे प्रणाम। विजयादशमी संकल्प लेने का पर्व हैं ये उत्साह और जोश भरने का पर्व नहीं, बल्कि संकल्पित होकर देशसेवा के व्रत लेने का दिन है। अपने अंदर चरित्र निर्माण और देश निर्माण का व्रत लेने का पर्व है। वो भी व्रत कैसा, लाखों संकट क्यों न आ जाये, पर धैर्य नहीं खोना है। राम की तरह अटल रहना है। महर्षि वाल्मीकि की रामायण हो या तुलसी की श्रीरामचरितमानस अगर समय मिले तो पढ़े, पायेंगे कि राम ने सिर्फ दिया, लिया नहीं। जो देता है वही सर्वश्रेष्ठ है जो पा लिया वो कभी श्रेष्ठ नहीं हो सकता, सर्वश्रेष्ठ की तो बात ही भूल जाइये। यही कारण है कि राम के आगे सभी नतमस्तक हैं , कबीर की पंक्तियां हो या रविदास की पंक्तियां या इन पंक्तियों को पाकर किसी ने अपना जीवन धन्य-धन्य कर लिया हो, राम तो राम हैं, उन्हीं में समाने में आनन्द है, शायद विजयादशमी भी यही बार - बार कहता हैं कि जैसे राम ने रावण रूपी चरित्र का अंत कर दिया, आप भी अपने अंदर समायी हुई बुराई रूपी रावण का अंत कर लो, ताकि जीवन आपका राममय हो जाय।

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