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Saturday, October 19, 2013

प्रचार की झंझा में मोदी का झांसा

17 अक्टूबर 2013 चुनाव नजदीक आ रहे हैं और इसमें चुनाव सर्वेक्षणों का बाजार गरम है। हालांकि अपने देश के मतदाताओं को समझना बहुत मुश्किल है पर ये लोग जुटे हैं सर्वेक्षणों में। कहा जा रहा है कि वे अगले पी एम होंगे। मोदी या उनके प्रचारक गुजरात को ही विकास का माडल बना कर पेश कर रहे हैं, पर सच क्या है? सीएजी के मुताबिक राज्य में हर तीसरे बच्चे का वजन औसत से कम है। सी ए जी ने अपनी इस ताजा रिपोर्ट में साफ किया है कि गुजरात में हर तीसरा बच्चा कुपोषण से पीडि़त है। यहां पूरक आहार प्रोग्राम के लिए 223 लाख 14 हजार बच्चे योग्य थे, लेकिन इनमें से 63 लाख 37 हजार बच्चे छूट गए। कुपोषण के मामले में लड़कियों की स्थिति तो लड़कों से भी बदतर है। लड़कियों के पोषण कार्यक्रम में 27 से 48 फीसदी तक कमी देखी गई। रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में 1 करोड़ 87 लाख लोगों को बाल विकास योजना का फायदा नहीं मिल पाया है। सीएजी ने मोदी के गुजरात मॉडल की तस्वीर पेश करते हुए कहा कि आंगनबाड़ी के 9 से 40 फीसदी केंद्रों में साफ पानी, टॉयलेट और इमारत की सुविधा नहीं है। राज्य में 75, 480 आंगनबाड़ी केंद्रों की जरूरत थी जबकि केवल 52, 137 केंद्रों को ही मंजूरी दी गई जिसमें से 50, 225 ही काम कर रहे हैं। यही नही, गुजरात की आर्थिक विकास दर में उछाल भी नहीं आ रहा है? क्यों? वित्त मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2005 से 2011 के बीच महंगाई काटने के बाद देश के प्रमुख राज्यों की प्रति व्यक्ति आय में इस प्रकार की प्रतिशत वृद्धि हुई है- महाराष्ट्र 12.5, तमिलनाडु 12.2, बिहार 12.0, हरियाणा 9.3, कर्नाटक 7.7 और गुजरात 7.7। इनमें बाकी अग्रणी राज्य तमाम समस्याओं से ग्रसित हैं, जैसे बिजली की अनुपलब्धि और चौतरफा भ्रष्टाचार। फिर भी इनकी विकास दर गुजरात से ज्यादा क्यों है? गुजरात की विद्वान दर्शिनी महादेविया ने यह गुत्थी सुलझाई। उन्होंने बताया कि मोदी के नेतृत्व में विकास बड़े शहरों पर केंद्रित हैं। छोटे शहरों और गांवों की हालत कमजोर है। गुजरात सरप्लस बिजली को बेच रहा है जबकि 11 लाख परिवार अंधेरे में हैं। यह बिजली इन परिवारों को मिलती तो इनकी क्रयशक्ति बढ़ती और गुजरात की विकास दर में इजाफा होता। राज्य की आबादी का बड़ा हिस्सा 'विकास' से वंचित है। यहां न रोजगार है, न पक्का मकान और न सड़क। इनकी स्थिति जैसी 10 वर्ष पहले थी वैसी ही अब है। इसलिये दूसरे राज्यों की विकास दर गुजरात से ज्यादा है। गुजरात में आर्थिक विकास शहरों के ऊपरी और मध्यम वर्गों में केंद्रित है। यहां सब ठीकठाक है परंतु राज्य की आधी आबादी विकास से वंचित है। दूसरे राज्यों में शहर और गांव में ऐसा अंतर नहीं दिखाई देता। अत: सब कुछ अच्छा होते हुए भी गुजरात की विकास दर सामान्य है। व्यक्ति का दिमाग स्वस्थ हो परंतु शरीर को लकवा मार गया हो, ऐसा गुजरात का विकास दिखाई देता है। यही कारण है कि रघुराम राजन के नेतृत्व में गठित कमेटी ने विकास के मानदंड पर गुजरात को 12वें स्थान पर रखा है जबकि उद्यमियों से बात करें तो गुजरात निस्संदेह पहले स्थान पर है। राजन कमेटी ने विकास के मानदंडों में सामान्य आबादी से संबद्ध सूचकांकों को महत्व दिया है, जैसे बाल मृत्यु दर, महिला साक्षरता, पेयजल जैसी घरेलू सुविधाएं और प्रति व्यक्ति खपत। इन मानदंडों में सुधार तभी संभव है जब कमजोर वर्ग की आय में वृद्धि हो। शहरों में बसे खुशहाल वर्गों की आय में पांच गुना वृद्धि हो जाये तब भी गुजरात 'पिछड़ा' ही माना जाएगा, क्योंकि इन सूचकांकों में सुधार नहीं हो सकेगा। शहरी ऊपरी वर्ग मस्त है इसलिए गुजरात मॉडल लोकप्रिय है, परंतु गरीब पस्त है इसलिए गुजरात 'पिछड़ा' है। अब सवाल उठता है कि विकास का ऐसा झांसा देकर और प्रचार के बल पर देश में छा जाने की कोशिश करने वाला क्या देश के अधिकांश गरीबों का हमदर्द होगा? मोदी को राम का अवतार बताने वाले क्या ऐसे ही रामराज्य की कामना करते हैं?

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