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Wednesday, September 16, 2015

बदल रहा है बिहार, बदल रही है सियासत



बिहार विधानसभा चुनाव लड़ रहे दोनों बड़े अलायंस ने अपने-अपने साथियों के साथ सीटों का बंटवारा कर लिया है। राजद और महागठबंधन के घटक दलों में सीटों की संख्या पहले ही तय हो गई थी। सोमवार को यह काम राजग के घटक दलों-भाजपा, लोजपा, रालोसपा और हम ने भी कर लिया। कौन सी सीट किस दल को मिलेगी, अभी तय नहीं है। पर सभी पार्टियों ने अपनी-अपनी सीट तय कर ली है। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अपने राजग के घटक दलों के कोटे की सीटों का सोमवार को एलान कर दिया। भाजपा 160 ,लोजपा 40 ,जीतन राम मांझी की ‘हम’ को 20 और उपेन्द्र कुशवाहा की आरएलएसपी को 23 सीटें मिली हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राम विलास पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी के साथ बैठकर सीटों का वंटवारा किया। शाह ने राजग की एकजुटता का दावा करते हुए कहा कि मांझी नीत हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा और लोजपा के बीच मनमुटाव अब पीछे छूट चुका है और सभी मतभेदों को दूर कर लिया गया है। पासवान एवं मांझी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि कोई विवाद नहीं है। कोई तनाव नहीं है। आप सभी के मुस्कुराते चेहरे देख रहे हैं। शाह ने कहा कि मांझी की पार्टी के कुछ नेता भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ेंगे। मांझी पिछले कुछ दिनों से सीटों के बंटवारे को लेकर काफी मोलतोल कर रहे थे ,जब समझा जाता है कि भाजपा ने उनकी पार्टी को 13 से 15 सीटें देने की पेशकश की थी। मांझी लगातार पासवान पर निशाना साध रहे थे और दावा कर रहे थे कि दलित मतदाताओं के बीच उनकी पैठ ज्यादा है। लेकिन जो बिहार को जानते हैं उन्हें मालूम है कि बिहार बदल रहा है। एक जमाने में यहां बूथ पर कब्जा करके वोट डाले जाते थे और लोग उस वोट के बल पर गीनेज बुक में शमिल हो जाते थे। बाहुबल के सहारे कई बाहुबली विधान सभाओं और संसद में पहुंच जाते थे। बाहुबलियों का सहारा लेकर उन बूथों पर कब्जा जमा लिया जाता था, जहां पक्ष में मतदान की उम्मीद नहीं होता थी। बुलेट का भय दिखाकर स्वयं की बैलेट में मुहर लगाकर बॉक्स में डाल लिए जाते थे। तब यह कहा जाता था कि बिहार में जनता वोट कहां देती है। बिहार चुनाव की आहट आते ही अखबारों में बैलेट बनाम बुलेट बहस का प्रमुख विषय होता था। मतदाताओं की मर्जी से मतदान बिहार में सपना होता था। बाद में कई प्रशासनिक परिवर्तन हुए और शासन की दृढ़ता के कारण बिहार में चुनाव के कई मिथक टूटे। तब बिना बुलेट मतदान सपना था, आज बूथ लूटकर सत्ता पाना सपना हो गया है। जब बिहार की लोकतांत्रिक प्रकिया में बुलेट का प्रभाव कम हुआ तब जात-पांत की राजनीति ने जोर पकड़ लिया। ऐसी बात नहीं है कि पहले बिहार में जाति की सियासत नहीं होती थी। लेकिन बाद के हर चुनाव ने दबे- कुचले और पिछड़े तबकों को निडर मानसिकता का बना दिया। सियासत की बिसात पर जाति के मोहरे खड़े किए जाने लगे। लेकिन इन दिनों चुनाव के हालात बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण की आंधी सुस्त पड़ती दिख रही है। हर बार जात पांत और विकास के नाम पर लड़े जाने वाले बिहार चुनावों में इस बार राजनीतिक दलों के बीच नई जंग होती दिख रही है। विकास असली मुद्दा बन गया है। पैकेज के बाद पैकेज का प्रहार भले ही राजनीतिक लगे, फिर भी यदि इसका क्रियान्वयन हो तो विकास बिहार का ही होगा, जनता का ही भला होगा। ऐसा लग रहा है कि जाति की बेड़ियों में जकड़ा बिहार अब बदहाली के गर्त से निकलने के लिए छटपटाने लगा है। इसका संकेत वर्तमान के माहौल से मिलने लगा है। यह बिहार के सकारात्मक भविष्य का संकेत है।
सियासत के बदलते चुनावी जुमले का एक उदाहरण देखें। चुनाव के लिए भाजपा और जेडीयू ने तो दो नए गीत लांच कर दिए हैं। भाजपा सांसद और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी का गाना-
इस बार बीजेपी, एक बार बीजेपी,
जात पांत से ऊपर की सरकार चाहिए
बिजली पानी हर द्वार चाहिए।।
सबका विकास सबका प्यार चाहिए,
वापस गौरवशाली बिहार चाहिए…
यह गाना क्या संकेत देता है। जदयू भी इसी राह पर चलते हुए मनोज तिवारी की काट के लिए बॉलीवुड गायिका स्नेहा खनवलकर से यह गाना रिकार्ड करवाया है-
फिर से एक बार हो, बिहार में बहार हो।।
फिर से एक बार हो, नीतीशे एक बार हो।।
फिलहाल भाजपा और जदयू दोनों के ये गीत अब गांव -गांव पहुंचने लगे हैं। बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए जब दिल्ली समेत देश के दूसरे हिस्सों में चुनाव के दौरान बिजली, पानी और सड़क का मुद्दा चर्चा का प्रमुख विषय होता था, तब बिहार के चुनावों में इस मुद्दों पर किसी का ध्यान नहीं रहता है। बदलते हालात और सत्ता की सियासत में जोर अाजमाइश से क्या कुछ नया नहीं हो रहा है। हालात बदल रहे हैं। अब सरकार चाहे किसी की भी बनेगी, लेकिन विकास करना सबकी मजबूरी होगी। जनता जागने लगी है, होशियार हो चुकी है। वह जान गई है कि वह जनता है। सत्ता के दंभ में कोई कितना भी चूर क्यों न हो, जनता पांच साल बाद जनता होने का अहसास करा ही देती है। जनता को उसकी ताकत का अहसास अब बिहार के सियासी सूरमाओं को डराने लगा है।

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