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Friday, September 25, 2015

इरादा क्या था यह तो बताएं

सरकार ने इन्क्रिप्शन नीति को वापस ले लिया है। इसमें जो सबसे प्रशंसनीय तथ्य है वह है इस नीति को वापस लिये जाने में दिखायी जाने वाली तेजी। इस नीति का उद्देश्य इंटरनेट सुरक्षा था। लेकिन इसमें जो प्रावधान थे वे इस उद्देश्य के प्रतिगामी थे। दरअसल इन्क्रिप्शन का अर्थ है साइबर की दुनिया में अपने द्वारा ​लिखे गये संदेशों को वही देख सकता है जिसके लिये यह लिखा गया है। इसमें सोशल मीडिया एक बड़े आधार वाला है जिसे वे सब देखते हैं या पढ़ते हैं जो साइबर विश्व में लिखने वाले से जुड़े हैं। लेकिन बात यहां तक ही नहीं है इसके आगे भी है। इसी दुनिया में आतंकी, अपराधी और अन्य शरारती तत्व हैं जो इरादतन आपके साइबर माध्यम में चोरी से घुस आते हैं और गलत तथा भ्रामक सूचनाएं छोड़ जाते हैं जिसे देखने या पढ़ने वाला समझता है कि वह अधिकृत प्रेषक द्वारा भेजी गयी हैं। ऐसे ही तत्वों को रोकना इस नीति का उद्देश्य था। इस नीति का अधिकार क्षेत्र केवल काॅरपोरेट कम्पनियों और सरकारी महकमों तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसकी जद में आम आदमी भी आ रहे थे। विकीलिक्स के बाद लगभग सभी मोबाइल फोन उपयोग कर्ताओं को व्यक्तिगत गोपनीयता का थोड़ा बहुत ज्ञान हो ही गया है। यह नीति वाट्सएप, फेसबुक , वाइबर , ट्वीटर और इस तरह के अन्यान्य माध्यमों में लिखे गये संदेशों और ई मेल को तीन महीने तक मिटाने से रोकती थी तथा यह सहूलियत देती थी कि सरकार इस पर नजर रख सके। यह एक तरह से ​निजता के अधिकार पर पाबंदी का प्रयास था। इसीलिये इस नीति का तीव्र विरोध हुआ और विरोध के परिणाम तथा उसकी तीव्रता को देखते हुए सरकार ने फौरन उसे वापस ले लिया। आशा है कि इस पर उठे विरोध से सरकार ने उचित सबक लिया होगा, जिसकी झलक नए प्रारूप में देखने को मिलेगी। संदेश यह है कि आज के दौर में आम लोग, खासकर इंटरनेट का ज्यादा उपयोग करने वाली युवा पीढ़ी गैरजरूरी निगरानी व नियंत्रण को पसंद नहीं करती। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ई-कॉमर्स और ई-शासन के बढ़ते चलन के साथ अनेक देशों में इन्क्रिप्शन नीति की जरूरत महसूस की गई है। साइबर संपर्क व संवाद बढ़ रहा है। इसके मद्देनजर ऑनलाइन सुरक्षा से संबंधित नई दिक्कतें सामने आ रही हैं। इसे देखते हुए भारत में भी मजबूत इन्क्रिप्शन नीति की जरूरत समझी गई है। नई ऊंचाइयों की तरफ जाने के बजाय सरकार के कारिंदे अपने ही लोगों की निगरानी पर तुले हैं। डि​जिटल मीडिया के लिए प्रस्तावित इस नई नीति में कुछ ऐसी ही हरकत नजर आती है। सरकारी व्यवस्थाओं में नई खोजों, नए उपकरणों और नई चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करने की प्रवृत्ति कम है और रवैया है रोक का, डर का, और कानूनी दांवपेंच में चीजों को उलझाने का। आम लोगों के डिजिटल व्यवहार और वर्चुअल दुनिया की बढ़ती लोकप्रियता से सरकारें घबरा गई हैं। भारत सरकार भी क्या मान बैठी है कि वर्चुअल दुनिया में अगर वाकई लोकशाही आ गई तो उसकी नीतियों, नारों और दावों, वादों की सुध कौन लेगा। लगता तो यही है कि अपने राजनीतिक और वैचारिक एजेंडे की खातिर सरकार डिजिटल अभिव्यक्ति को दबाना चाह रही है। और इसके दायरे में जाहिर है सबसे पहले वही लोग आएंगे जो अपने उसूलों, विचारों, नागरिक जवाबदेहियों और राजनैतिक चिंतनों और चिंताओं की वजह से सरकार की हां में हां नहीं मिलाते हैं और सत्ता व्यवस्था के हमलों के खिलाफ एक प्रतिरोध बनाए रखते हैं। इस प्रतिरोध की एक धारा इधर नए मीडिया में फूटी है तो डंडा लेकर सरकार वहां भी पहुंच गई है। पहले सेक्शन 66 ए को लेकर विवाद थमा भी नहीं कि अब ये सेक्शन 84 ए और उसकी ये इन्क्रिप्शन नीति। अभी तो सोशल मीडिया को इस नीति से अलग रखा गया है। जबकि वहां तो एक पूरी की पूरी अदृश्य हिंदूवादी सेना है जो हर विरोधी विचार पर अपनी नफरत का जाल फेंक देती है, और नए विचारों को तहस-नहस कर अट्टहास करती रहती है। काश, इस तरह की नीतियों में उन ‘डिजिटल शूरवीरों’ के लिए भी कोई नियम कायदे और कानून बनते। सरकार का ध्यान उन पर भी जाता, उसका इरादा तो उन लोगों पर नजर रखने का लगता है जिनका डिजीटल आचरण उसकी निगाह में ‘पवित्र’ या ‘शुद्ध’ नहीं। दरअसल भारत सरकार इन्क्रिप्‍टेड यानी कूटबद्ध संदेशों और डेटा पर अपनी पहुंच मजबूत करना चाहती है। इसलिए सिर्फ देश में पंजीकृत मैसेज सेवाओं के इस्‍तेमाल की अनुमति देने जैसे सुझाव दिए जा रहे हैं। साइबर मामलों के एक विशेषज्ञ का कहना है कि एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया की बात कर रही है और दूसरी तरफ इस प्रकार का इंस्‍पेक्‍टर राज लाने की तैयारी की जा रही है। क्‍योंकि ड्राफ्ट के मुताबिक, इन्क्रिप्‍टेड संदेशों का इस्‍तेमाल करने वाली सेवाओं को भारत में पंजीकृत होना आवश्‍यक होगा जबकि वाट्स एप जैसे तमाम मैसेज एप्‍लीकेशन देश के बाहर से संचालित होते हैं। ऐसे में या तो वाट्स एप का इस्‍तेमाल करना गैर-कानूनी हो जाएगा वरना वाट्स एप जैसी सेवाओं को भारत में पंजीकृत होकर सरकारी नियमों का पालन करना होगा। सरकार के इस कदम की चौंतरफा आलोचना हुई और इसे डिजिटल इमरजेंसी तक करार दिया गया। वाट्स एप जैसी सेवाओं के भविष्‍य पर भी सवाल खड़े होने लगे थे।

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