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Saturday, December 5, 2015

3 डिसेंबर 2015

सार्वजनिक अभिव्यक्ति हिंसा मुक्त हो

 

3 दिसम्बर 2015

 

असहिष्णुता पर बढ़ते विवाद के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि लोगों को अपने मन मस्तिष्क से विभाजनकारी विचारों को हटाना चाहिए तथा सार्वजनिक अभिव्यक्ति को सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना चाहिए। उन्होंने विभाजनकारी विचारों को असल गंदगी करार दिया जो गलियों में नहीं, बल्कि हमारे दिमाग में और समाज को विभाजित करने वाले विचारों को दूर करने की अनिच्छा में है। प्रणब ने कार्यक्रमों की श्रृंखला को संबोधित करते हुए भारत के बारे में महात्मा गांधी की सोच का जिक्र किया और कहा कि उन्होंने एक समावेशी राष्ट्र की कल्पना की थी जहां देश का हर वर्ग समानता के साथ रहे और उसे समान अवसर मिलें। सरकार के स्वच्छता अभियान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, बापू के अनुसार स्वच्छ भारत का मतलब स्वच्छ दिमाग, स्वच्छ शरीर और स्वच्छ वातावरण से था। साबरमती आश्रम में अभिलेखागर और शोध केंद्र का उद्घाटन करते हुए प्रणब ने कहा, भारत की असल गंदगी हमारी गलियों में नहीं, बल्कि हमारे दिमागों में और समाज को ‘‘उनके’ तथा ‘‘हमारे’ और ‘‘शुद्ध’ एवं ‘‘अशुद्ध’ के बीच बांटने के विचारों से मुक्ति पाने की अनिच्छा में है। प्रणब ने कहा, हमें प्रशंसनीय और स्वच्छ भारत मिशन को हर हाल में सफल बनाना चाहिए। हालांकि इसे मस्तिष्कों को स्वच्छ करने और गांधी जी की सोच के सभी पहलुओं को पूरा करने के लिए एक अत्यंत बड़े और वृहद प्रयास की महज शुरुआत के रूप में देखना चाहिए।राष्ट्रपति ने कहा, गांधी ने अपने जीवन में और मृत्यु के समय भी साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए संघर्ष किया। शांति एवं सद्भाव की शिक्षा ही समाज में विघटनकारी ताकतों को नियंत्रित करने और उन्हें नई दिशा देने की कुंजी है। उन्होंने कहा कि अहिंसा नकारात्मक शक्ति नहीं है। हमें सार्वजनिक अभिव्यक्ति को सभी तरह की हिंसा, शारीरिक और मौखिक हिंसा से मुक्त करना चाहिए। केवल एक अहिंसक समाज ही हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में खासकर वंचित लोगों समेत सभी वगरें के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। यहां प्रश्न सहिष्णुता या असहिष्णुता का नहीं है। आज हमारी सबसे बड़ी समस्या है समाज के कई कोनों से आती दुर्गंध। एक ऐसी दुर्गंध जिसे फैलाने में कई राजनैतिक दल और तथाकथित बौद्धिक वर्ग, जिसमें कुछ साहित्यकार और कलाकार भी आते हैं, अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं।आप कौन हैं और आपके पास क्या है, इसे भूलकर यदि आप अपनी मनोवृत्ति की गहराई में जाकर वस्तुस्थिति को सही-सही रूप में जांचेंगे तो आपको पता चलेगा। आप में शक्ति न हो, संयोग न हो, साधन का अभाव हो, तो आपसे ऐसे पाप न हों, यह बात अलग है। लेकिन, आप स्वयं ही उस परिस्थिति में हों तो क्या करोगे, इसे आप अपने हृदय की गहराई में छिपी वृत्ति के आधार पर जांचिए। जब आपके पास शक्ति, सामग्री, संयोगादि उपलब्ध हों, तब परीक्षा होती है। तो क्या असहनशीलता के मसले को बेवजह तवज्जो दी गई? प्रधानमंत्री मंगलवार को भी असहनशीलता पर बहस में तो शामिल नहीं हुए, लेकिन राज्यसभा में उन्होंने संविधान दिवस पर कहा कि संविधान देश को जोड़ने का काम करता है। इसको मनाने के पीछे हमारा मकसद आगे की पीढ़ियों को अपने संविधान बनाने वालों के योगदान और अपनी संस्कृति के बारे में बताना है। हममें कमियां हैं। संविधान रचने वालों के सामर्थ्य को हमें समझना होगा। हमें ऊपर उठने की जरूरत है। हम कानून बनाते हैं फिर दूसरे सत्र में और शब्द जोड़ने पड़ते हैं। अब राजनीतिक स्थितियां हावी हो जाती हैं। बहरहाल प्रधानमंत्री ने हाल में अपने भाषणों में सरकारों पर राजनीति हावी होने की बात बार-बार कही है। असहनशीलता पर विपक्ष का वार सरकार पर तीव्र रहा है। राहुल गाधी ने बहस के दौरान सरकार पर विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप लगाया। वित मंत्री कहते हैं कि ये बनावटी है। आवाजों को कुचलना नहीं चाहिए। राहुल गांधी ने कहा, मैं सरकार से कहता हूं कि लोगों की सुनों। पहले की ओर मत देखो। प्रधानमंत्री गाधी जी की सराहना करते हैं। उनका उदाहरण देते हैं, लेकिन जब साक्षी महाराज गोडसे को राष्ट्रभक्त बताते हैं तो प्रधानमंत्री चुप होकर सुनते हैं।केंद्र सरकार में मंत्री वी.के. सिह दलित बच्चों की तुलना पशुओं से करते हैं। ये बयान संविधान को सीधे चुनौती देता है। सुरक्षा हमारे लिए बहुत अहम है, लेकिन जब एक सैनिक के पिता को मार दिया जाता है तब भी प्रधानमंत्री चुप रहते हैं। सरकार स्किल इंडिया की बात करती है, लेकिन जबएफ टी आई आई के छात्र एक औसत व्यक्ति को प्रमुख बनाने का विरोध करते हैं तो प्रधानमंत्री चुप रहते हैं। तो क्या संविधान को सुशोभित कर सिर्फ संविधान दिवस तक सीमित रखना चाहिए? पीएम मोदी के स्तर पर जिस तरह का परिवर्तन सदन के अंदर प्रदर्शित किया जा रहा है संभवतः अब वह देश के पीएम की गरिमा के अनुकूल अधिक लग रहा है पर क्या उनका यह स्वरुप तब भी दिखाई देने वाला है जब उन्हें जीएसटी पर विपक्ष का समर्थन मिल जायेगा या वे भी केवल अपने बडे हित को साधने के लिए ही विपक्ष के साथ तालमेल बिठाने की किसी जुगत में ही लगे हुए हैं ? भूमि अधिग्रहण और जीएसटी जैसे मुद्दों पर सरकार को जिस कुशलता के साथ काम करना चाहिए वह आज तक नहीं कर पायी है क्योंकि राजग और संप्रग के दोनों विधेयकों में केवल कुछ मुद्दों पर ही व्यापक असहमति सामने आ रही है जिसे आम सहमति से देश हित में बीच के रास्ते के साथ शुरू किया जा सकता है क्योंकि इससे जहां सरकार को बदलाव को महसूस करने का अवसर भी मिलेगा वहीं विपक्ष भी अपनी आशंकाओं की समीक्षा करने में सफल हो सकेगा। यह मुद्दे आज सदन में जितना महत्व पा रहे हैं उससे यही लगता है कि आने वाले समय में कोई भी राजनैतिक दल दूसरे पर हमलावर होने का कोई भी अवसर छोड़ना नहीं चाह रहा है जिसके परिणीति देश के लिए इतनी बुरी साबित हो रही है।

 

 

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