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Wednesday, December 2, 2015

असहिष्णुता और सेक्युलर का छद्म छोड़ें


1दिसम्बर 2015
देश में इस समय असहिष्णुता को लेकर बवाल मचा हुआ है। संसद से लेकर सड़क तक यह शब्द छाया हुआ है। असहिष्णुता को लेकर प्रश्न उठता है कि जिस शब्द को लेकर देश का बड़ा वर्ग माथापच्ची कर रहा है, उस शब्द को आम आदमी तो दूर की बात है, बहुसंख्यक पढ़े-लिखे लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं। इन हालात में बवाल मचाने से ज्यादा असहिष्णुता के बारे में लोगों को जाग्रत करने की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि कैसे इस पर अंकुश लगाया जाए? कैसे यह समस्या बढ़ी है? इस समस्या के बढ़ने की मुख्य वजह क्या है? ऐसे कौन लोग हैं? असहिष्णुता के बढ़ने का दारोमदार किसी एक वर्ग या कौम पर नहीं है, यह बात साफ है। असहिष्णुता का विरोध करने वाले लेखक, साहित्यकार, अभिनेता व अन्य लोग जो केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं, यदि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने के बजाय समाज में असहिष्णुता को खत्म करने पर बल दें तो यह ज्यादा कारगर होगा। केंद्र सरकार को झुकना भी पड़ेगा। पर देखा जाए तो किसी स्तर पर यह काम नहीं हो रहा है। अलबत्ता, विरोध के लिए विरोध हो रहा है। देश की बढ़ती असहिष्णुता से पीड़ित इन महान गैर-भाजपाई केंद्र सरकार विरोधी सहिष्णुओं के पास बढ़ती असहिष्णुता की काट का न कोई कारगर उपाय है, न कोई सक्षम सूत्र है और न कोई सामाजिक सिद्धांत है। जो कुछ है भी वह क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों और आपसी नफरत से संचालित है। रही मीडिया की बात, तो मीडिया हर उस घटना को, हर उस व्यक्ति को और हर उस बयान को जो सहिष्णुता की धज्जियां उड़ा सकता हो, आपसी नफरत को बढ़ा सकता हो, सियासी जंग में जहर घोल सकता हो, सुर्खियां बनाकर परोस देता है। आमिर के प्रकरण में एआर रहमान ने कहा कि कुछ महीने पहले उन्होंने भी ऐसी ही स्थिति का सामना किया था। उनका इशारा मुस्लिम असहिष्णुता की ओर था, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कुछ भी हिंसक नहीं होना चाहिए। हम बहुत ही सभ्य लोग हैं और हमें दुनिया को दिखाना चाहिए कि हमारी सभ्यता सर्वश्रेष्ठ सभ्यता है। अभी यह चल ही रहा था कि राजनाथ सिंह ने संविधान में लिखित सेक्युलर शब्द के अर्थ को लेकर एक नया शिगूफा पैदा कर दिया। धर्मनिरपेक्षता बनाम पंथनिरपेक्षता पर बहस चली है। सामाजिकता के विकास में भाषा और शब्दों की सार्वजनिक भूमिका है। योग विज्ञानी पतंजलि ने ‘महाभाष्य’ में कहा कि शब्द का सम्यक् ज्ञान और सम्यक् प्रयोग ही हितकारी होता है। वाल्टेयर ने कहा, यदि आप मुझसे तर्क करना चाहते हैं तो पहले अपने शब्दों की परिभाषा करो। सेक्युलरवाद या पंथनिरपेक्षता भारतीय विचारधारा नहीं है। अंग्रेजी शब्दकोशों में ‘सेक्युलर’ का अर्थ भौतिक/ इहलौकिक बताया गया है। सेक्युलर भौतिक संसार का पर्यायवाची है। भारत में भौतिकता और आस्था के बीच कभी कोई संघर्ष नहीं चला। भारत का धर्म संगठित पंथ नहीं है। इसलिए ‘धर्मनिरपेक्षता’ भारतीय जीवन पद्धति नहीं है। यहां धर्म का सतत विकास हुआ। ऋग्वैदिक काल में ही यहां जिज्ञासा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण का वातावरण व यथार्थवादी दर्शन का विकास हुआ। भारत ने प्रकृति के नियमों को ऋत या धर्म कहा। डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा, नियमों का पालन करना भी एक नियम है, एक कर्म है। धर्म का अर्थ कर्म है। अथर्ववेद कम से कम 3-4 हजार वर्ष पहले लिखा गया। तब ईसाइयत नहीं थी, इस्लाम भी नहीं था, लेकिन इसके पृथ्वी सूक्त में कहा गया है कि -हे धरती मां! आप विभिन्न भाषा- भाषी और विभिन्न धर्म वाले मनुष्यों को एक परिवार की तरह आश्रय व ऐश्वर्य दें। संविधान निर्माता इस तथ्य से परिचित थे। इसीलिए प्रस्तावना में प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य का उल्लेख हुआ। असहिष्णुता और सेक्युलर शब्दों काे इस तरह मसला बनाने से साफ जाहिर है कि इसके पीछे कोई एजेंडा है। देश एजेंडे पर नहीं चलता वह जनता के कल्याण से चलता है।

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