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Wednesday, December 2, 2015

नमो-नवाज मुलाकात : अच्छे संकेत


2 नवम्बर 2015
सोमवार को पेरिस की सर्द सुबह अचानक भारत-पाक रिश्तों में ‘डिप्लोमेटिक क्लाइमेट चेंज’ हुआ। जलवायु परिवर्तन पर हो रही बैठक से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान में उनके समकक्ष नवाज शरीफ अचानक आमने-सामने आ गए। हाथ मिले। इस मुलाकात ने कड़ाके की सर्दी के बावजूद दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ को कुछ हद तक पिघला दिया। पहले खड़े-खड़े कुछ बतियाए, फिर दोनों एक सोफे पर जा बैठे और घुल-मिलकर बात करने लगे। दोनों के बीच क्या बातचीत हुई इसका ब्योरा तो नहीं मिल पाया है, लेकिन मौजूदा दौर में भारत और पाकिस्तान के तल्ख रिश्तों की पृष्ठभूमि में इस भेंट को खासा अहम् माना जा रहा है। उफा में तय पांच सूत्रीय समझौते के तहत दोनों देशों के बीच एनएसए स्तर की बातचीत होनी थी, लेकिन हुर्रियत से पाकिस्तानी एनएसए की मुलाकात को भारत की लाल झंडी दिखाए जाने और कश्मीर के बजाए आतंकवाद पर फोकस होने के मुद्दे पर यह बातचीत पाकिस्तान की तरफ से तोड़ दी गई। पेरिस की मुलाकात से दोनों प्रधानमंत्रियों ने एक नया संदेश देने की कोशिश की है। एक तरफ जहां प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत परवान नहीं चढ़ रही ऐसे में दोनों प्रधानमंत्री अपने स्तर पर इसे पटरी पर लाने की कोशिश कर सकते हैं। खासतौर पर तब जब अगले साल पाकिस्तान में सार्क समिट होना है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की शिरकत पर सबकी निगाह है। मोदी पाकिस्तान जाएं इससे पहले जरूरी है कि दोनों देश आपसी भरोसा बहाली की दिशा में कुछ कदम आगे बढ़ाएं। सीमा पर सीज फायर उल्लंघन और आतंकी वारदात होते रहे तो रिश्तों को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। जड़ता को तोड़ने के लिए सबसे ऊपरी स्तर पर बोल्ड स्टेप लेने की जरूरत है ताकि बातचीत की शुरुआत हो सके। दोनों प्रधानमंत्री इस बात को समझते हैं। दो दिन पहले ही शरीफ की तरफ से यह बयान आया है कि शांति और बेहतर रिश्ते के लिए वे भारत के साथ बिना शर्त बातचीत को तैयार हैं। खबर है कि इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच ट्रैक टू डिप्लोमेसी के कई दौर हुए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे जब भी बातचीत तय होती है हुर्रियत से मुलाकात जैसे मुद्दों पर जिद की वजह से वह नहीं टूटेगी। दोनों अकेले में मिले हैं और उन्हें देखकर लगता है कि गंभीर चर्चा हो रही है। दोनों के हाव-भाव देखकर लगता है शायद यह मुलाकात भारत-पाक संबंधों के बीच एक नया रास्ता खोले। मुलाकात का पेरिस में होना भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पेरिस अभी-अभी आतंकवाद का शिकार हुआ है। अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इससे भारत-पाकिस्तान संबंधों पर जमी हुई बर्फ पिघलेगी? अभी तक भारत सरकार दोनों देशों के बीच बातचीत तो छोड़िए, श्रीलंका में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने के लिए भी तैयार नहीं है। इस मुलाकात से यह बात भी साबित की जा सकती है कि भारत बातचीत के लिए गंभीर है क्योंकि नवाज यह संकेत देने में सफल रहे हैं कि पाकिस्तान भारत से बिना शर्त बातचीत करने के लिए तैयार है। हमें इसका जरूर ख्याल रखना होगा कि पाकिस्तान किसी विदेशी दबाव में तो ऐसा नहीं कर रहा है। इतिहास गवाह है कि अभी तक भारत-पाक के बीच की बातचीत कभी सफल नहीं हो पाई, वजह है पाकिस्तान की नापाक हरकतें, जो कुछ ऐसी होती हैं कि बात बिगड़ जाती है। लेकिन पाकिस्तान में नये सुरक्षा सलाहकार के आने के बाद नवाज शरीफ का सुर बदलना लाजिमी है। अगस्त में कश्मीर समेत सभी विवादित मुद्दों पर बातचीत का बहाना बनाकर पाक ने आतंकवाद पर एनएसए लेवल की बातचीत रद्द कर दी थी। तब सरताज अजीज पाक के एनएसए थे। वहां की सरकार को पता था कि अजीज भारत के एनएसए अजित डोभाल का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। इसलिए पहले उन्हें बदला गया। उनकी जगह रिटा. लेफ्टिनेंट जनरल नासिर खान जंजुआ को लाया गया। अब पाकिस्तान आतंकवाद पर भी बात करने को राजी है। पाक मीडिया की मानें तो प्रधानमंत्री मोदी ने पहले पहल की इस मुलाकात की। सही है बातचीत का कौन स्वागत नहीं करेगा, मगर सवाल वही है कि जब सीमा पार से बार-बार सीज फायर का उल्लंघन हो, जिसमें आम लोग मारे जाएं और आतंकवाद से लड़ते-लड़ते जवान और अफसर शहीद हो रहे हों तो क्या यह सही वातावरण होगा बातचीत के लिए? आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ चल सकते हैं, क्योंकि पाकिस्तान में नवाज शरीफ से अधिक ताकतवर सेना प्रमुख राहिल शरीफ हैं और पाक सेना का रवैया भारत के प्रति कैसा है यह पूरी दुनिया जानती है। इसलिए यह मुलाकात महज एक राजनैतिक संकेत है दुनिया के लिए, क्योंकि मोदी और शरीफ पेरिस में हाथ न मिलाते तो कुछ और ही चर्चा हो रही होती।

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