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Friday, March 11, 2016

देश है तभी हम हैं

इन दिनों एक अजीब हवा सी बह रही है। देश का सारा विमर्श कन्हैया के भाषणों की प्रशंसा और आलोचना से चलकर बरास्ते मोदी की कामयाबी- विफलताओं से विजय माल्या के फरार होने पर खत्म हो जा रहा है। सारे देश में इसके अलावा ना खबर है ना चर्चा। बहस इस पर नहीं है कि जे एन यू में देश विरोधी नारे लगे, वे नारे हमारे सैनिकों की शहादत या शहीदों की कुर्बानी को अपमानित करते थे। ऐसे लोग कौन थे? बहस है कि कन्हैया ने क्या कहा? बहस है कि देश की अवधारणा क्या है? बहस है कि अभिव्यक्ति की आजादी क्या है? कोई ये नहीं पूछ रहा है कि जिस कश्मीर की बात को लेकर वे अफजल गुरू की फांसी पर बहस कर रहे हैं उस कश्मीर की हिफाजत के लिए जाने वाला सैनिक क्या सोचता होगा?
इश्क है हासिले जिन्दगानी
खून से तर है उसकी कहानी
आए मासूम बचपन की यादें
आए दो रोज की नौजवानी
जाने वाले सिपाही से पूछो, वो कहां जा रहा है
जे एन यू कैम्पस में आरोप लगा कि कश्मीर में फौज बलात्कार करती है। यह एक इल्जाम है सबूत कोई नहीं है। इस इल्जाम पर, कोई बहस नहीं है, इल्जाम लगाने वाले का कोई विरोध नहीं है। मोदी जी और भाजपा पर आरोप लगाये जा रहे हैं। मोदी को देश ने चुना है। आरोप लगाने वालें से अनुरोध है कि एक विकल्प लाएं और तब बात करें। अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब ये नहीं की गाली देने की आजादी हो, कुछ भी बोलने की आजादी हो,अभिव्यक्ति की भी सीमाएं हैं, यह ध्यान रखना जरूरी है। कन्हैया और उसके समर्थकों का तर्क है कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी हो तो लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत समानता है और उस खासियत की पहचान अब तक नहीं हो पाई है। एक पहचान समानता के रूप में हुई थी, लेकिन आग्रही और जिद्दी वर्ग ने हमेशा ऐसा माहौल बनाए रखा कि हम कभी भी इस बात का आम राय से ऐलान कर नहीं पाए। जरूरत पड़ने पर कभी-कभी सैद्धांतिक रूप से इसे मान लेते हैं, लेकिन व्यवहार में समानता का प्रभुत्व दिखाई नहीं देता। 'हम' की भावना वाले समाज के रूप में भी लोकतंत्र को परिभाषित नहीं होने दिया जाता। कुछ लोग धर्म, कुछ लोग जाति और कुछ भौगोलिक क्षेत्र की अपनी-अपनी अस्मिता का रोड़ा अटका देते हैं। उस रोड़े में कन्हैया का मनुवाद और जाति वाद का विरोध भी शामिल है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वच्छंदता दो शब्द हैं और इनमें फर्क भी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही कमाल था कि आपात काल के पीड़ित वर्ग को सत्ता मिल गई थी। वह अलग बात है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का ही कमाल था कि कार्यकाल खत्म होने से पहले ही जनता ने उन्हें नकार भी दिया था। अभिव्यक्ति की आजादी का उससे भी बड़ा कमाल देखिए कि उसी जनता ने आपातकाल लगाने वाली सत्ता को फिर सत्ता में ला दिया। यानी अब तक कुख्यात बताया जाने वाला आपातकाल तक हमारे लोकतांत्रिक न्यायतंत्र की मर्यादाओं से होकर गुजरा था। अगर इस पूरे मसले को सूक्ष्मता से देखें तो यह पूरा मसला विचारधाराओं का है। ठीक रोमन ग्लैडियेटर्स की तरह। वामपंथियों के ग्लेडियेटर्स कन्हैया कुमार और उमर खालिद हैं जो दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के ग्लेडियेटर्स से भिड़े हुए हैं। फ़र्क़ इतना है कि रोमन साम्राज्य के दौर में ये मुक़ाबले आम लोगों के मनोरंजन के लिए कराए जाते थे। जेएनयू का अखाड़ा गंभीर है। ये दो विचार धाराओं के बीच की लड़ाई है। ये नई लड़ाई नहीं है। यह संभव है कि भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद जेएनयू कैंपस में दक्षिणपंथी ग्लेडियेटर्स का मनोबल बढ़ा हो। कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा चाहिए. जेएनयू मुद्दे ने वामपंथी पार्टियों को अपना असर वापस लाने के लिए एक अवसर दिया है। वहीं कैंपस के अंदरूनी मामले को मोदी सरकार ने भी हवा देने की कोशिश की। वामपंथी विचारधारा वालों की सबसे बड़ी समस्या उनके अपने विचार हैं, जी हां व्यक्तिगत विचार। वो खुद को उच्च नैतिक स्तर वाला समझते हैं और दूसरों को खुद से नीचे। विचारधारा में कट्टर तो होते हैं लेकिन मौका पड़ने पर कभी-कभी सत्ता के करीब जाने के लिए अपनी विचारधारा बदल भी देते हैं। शायद ढुलमुल विचार के कारण ही उनका देश भर में पतन हुआ है। अगर गरीबी से आजादी चाहिए थी तो पश्चिम बंगाल में 34 साल सत्ता में रहने के बावजूद इस राज्य को गरीबी से आजादी क्यों नहीं दिलाई ? केरल में भी हुकूमत की लेकिन सत्ता में आने के बाद वो दूसरी पार्टियों से कितना अलग थे? अभी वो केवल त्रिपुरा में सत्ता में हैं जिसे एक अमीर राज्य तो नहीं कहा जा सकता? कन्हैया के भाषण को सोशल मीडिया पर खूब उछाला जा रहा है। इसमें शक नहीं कि भाषण जबर्दस्त था लेकिन ऐसे भाषण कैंपस में पहले भी दिए जा चुके हैं। ये दो विचारधाराओं के बीच की लड़ाई है जो अब कैंपस से बाहर आ चुकी है। मुश्किल ये है कि इस लड़ाई में इन्होंने देश को मोहरा बना दिया है। उन्हें याद रखना चाहिये कि देश है, तभी वे हैं।
कौन दुखिया है, जो गा रही है
भूखे बच्चों को बहला रही है
लाश जलने की बू आ रही है
जिन्दगी है कि चिल्ला रही है

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