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Thursday, March 10, 2016

सरकार झुकी : ई पी एफ पर नहीं लगेगा टैक्स

10 मार्च 2016

अरुण जेटली ने मंगलवार को कर्मचारी भविष्य निधि से पैसे निकालने पर कर लगाने का प्रस्ताव वापस लेने की घोषणा की। उन्होंने यह प्रस्ताव बजट पेश करते हुए किया था। जेटली ने कहा कि वह इस नीति की समीक्षा करेंगे। सरकार ने बजट के दौरान ईपीएफ़ से पैसा निकालते समय उसके 60 प्रतिशत हिस्से पर कर लगाने की घोषणा की थी। इसका व्यापक विरोध हुआ था। राजस्व सचिव ने कहा था 1 अप्रैल, 2016 के बाद ये कर कर्मचारियों की तरफ से जमा कराए गए पैसे के 60 प्रतिशत हिस्से पर मिलने वाले ब्याज पर लागू होगा। सरकार के इस प्रस्ताव से 6 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे थे। ईपीएफ पर टैक्स वापसी की घोषणा निश्चित तौर पर राजनीतिक दवाब में की गई है, लेकिन क्या यह सरकार की कानूनी मजबूरी भी थी? कांग्रेस के उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने एलान के थोड़ी देर बाद ही इसका श्रेय लेते हुए कहा कि सरकार ने उनके दबाव में फैसला वापस लिया। बीजेपी की तरफ से इसका श्रेय परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी दिया जा सकता है, क्‍योंकि ईपीएफ पर टैक्‍स के प्रपोजल पर विवाद के बाद पीएम ने वित्‍त मंत्री को इस मसले को होल्‍ड करने की सलाह दी थी। इस रोलबैक की बड़ी वजहों की बात की जाए तो उसमें पांच राज्यों में चुनाव का होना है। ईपीएफ के निवेश तथा नियमन के लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) का गठन किया गया है, जिसके बोर्ड में सरकार, मजदूर संघ तथा कर्मचारियों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। सरकार द्वारा ईपीएफ पर टैक्स लगाने से पहले ईपीएफओ से कोई मशवरा नहीं किया गया था, जिस पर अगली मीटिंग में बड़ा विरोध होने की संभावना थी। भविष्य में ईपीएफ पर टैक्स लगाने की कोई भी योजना ईपीएफओ से परामर्श के बाद ही लानी होगी और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पुराने खातों और बचत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़े। जीएसटी के माध्यम से टैक्स सरलीकरण की बात करने वाली सरकार ने ईपीएफ पर दोहरे कराधान का प्रावधान कर एक गलत नजीर पेश की थी। ईपीएफ वेतनभोगियों के लिए सामाजिक सुरक्षा तथा पेंशन की महत्वपूर्ण योजना है, जिस पर जमा पैसे पर सरकार पहले ही टैक्स वसूल लेती है। इस बजट में ईपीएफ से निकासी पर टैक्स भुगतान का प्रावधान अगर लागू हो जाता तो आम जनता को दो बार टैक्स देना पड़ सकता था। ईपीएफ की बचत योजना 1952 से चल रही है, जिस पर 2016 के बजट से पुरानी जमाराशि पर टैक्स लगाने का प्रावधान आम जनता के साथ कानूनी विश्वासघात था। अगर यह रोलबैक नहीं होता तो भारत सरकार की आम जनता में साख प्रभावित होती, जिस पर पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था और मौद्रिक प्रणाली टिकी हुई है। कई उद्योगपतियों ने सरकारी बैंकों से लिए लाखों करोड़ के कर्ज नहीं चुकाए, और अपनी व्यक्तिगत संपत्तियां बना लीं, जिसकी क्षतिपूर्ति के लिए बजट में सरकारी बैंकों को 25,000 करोड़ की पूंजी दी जा रही है। निजी कम्पनियों को और भी पैसे की आवश्यकता है और उनकी निगाह जनता के पैसे पर है। ईपीएफओ द्वारा 8.5 लाख करोड़ से अधिक के पैसे का निवेश और नियमन किया जाता है, जिसे सरकार एनपीएस के माध्यम से शेयर मार्केट में लगाने की योजना बना रही है। शेयर मार्केट और आईपीओ में आम जनता अपने हाथ पहले ही जलाए बैठी है और सेबी इन कंपनियों के नियमन में विफल रही है। सरकार द्वारा संचालित यूटीआई में जनता पहले ही अपने पैसे खो चुकी है और अब ईपीएफ की बचत को शेयर मार्केट में लगाने से संकट होने पर आम वेतनभोगी की हालत भी किसानों की तरह हो जाती। भविष्य में इन मुद्दों पर विचार किए बगैर ईपीएफ तथा बचत योजनाओं पर टैक्स यदि लगाया गया तो वह न सिर्फ गैरकानूनी होगा, वरन् जनता के संकट को भी बढ़ाएगा, जिसके दबाव में वित्तमंत्री को इस बार के बजट में रोलबैक की शुरुआत करनी पड़ी। यही नहीं यह विडम्बना है कि भाजपा ने पूर्ववर्ती सरकार या साफ कहें मनमोहन सरकार को जिन मुद्दों पर घेरा था वह आज उन्हीं मसलों का समर्थन कर रही है। मसलन, जी एस टी​ , आधार कार्ड , विभिन्न मदों में सब्सिडी वापसी इत्यादि।

 

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