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Friday, March 4, 2016

लम्बा भाषण पर कुछ मिला नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर अपने भाषण में कहा कि संसद की कार्यवाही का स्तर इतना गिर गया है कि सांसद के प्रश्न के जवाब से अधिकारी अब डरते नहीं हैं। तू-तू मैं-मैं में अफसरशाही बेफिक्र होती जा रही है। एक सांसद सरकारी अधिकारी के लिए पीएम से कम नहीं है। पीएम मोदी ने कहा कि अफसरशाही की जवाबदेही समाप्त होती जा रही है। संसद में ही इनकी जवाबदेही तय होती है। इसलिए यह आवश्यक है कि हमारी कार्यपालिका की जवाबदेही तय हो। यह एक चुनौती है जिसके लिए सामूहिक प्रयास करना होगा। अरबों रुपये की तनख्वाह जा रही है। भारत जैसे लोकतंत्र में हम देश के नागरिकों को अफसरशाही के ऊपर नहीं छोड़ सकते हैं। यही नहीं प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि लोग पढ़ कर आते हैं और तब मनोरंजन करते हैं। सार्वजनिक जीवन वाले व्यक्ति से सवाल पूछे जाते हैं, लेकिन कुछ लोगों से सवाल नहीं होते। असहिष्णुता के मुद्दे पर कटाक्ष करते हुए पीएम मोदी ने अब लोग बोल रहे हैं, लेकिन पहले नहीं कर पाते थे। दूसरों को उपदेश देना आसान है, लेकिन खुद आचरण वैसे रखें ऐसे लोग कम हैं। पी एम ने कहा कि अगर सदन नहीं चलता है तो सत्ता पक्ष का नुकसान ज्यादा नहीं होता, देश का नुकसान सबसे ज्यादा होता है और उससे भी ज्यादा विपक्ष के सांसदों का नुकसान होता है। सांसदों के पास सरकार से सवाल करने का मौका होता है। सरकार से सफाई लेनी होती है। अब बात अफसरशाही की जवाबदेही से शुरू हो। विख्यात इतिहासकार डा. बी. बी. मिश्र ने अपनी विख्यात पुस्तक ‘ब्यूरोक्रसी इन इंडिया’ में अपसरशाही की जवाबदेही की बात करते हुये यह बताने का प्रयास किया है कि दरअसल किन बातों पर वह निर्भर है। अफसरशाही की जवाबदेही के लिये सबसे महत्वपूर्ण है ‘विधायिका का प्रशासनिक राजनीतिकरण से दूर रहना। ’ जैसा कि प्रधानमंत्री ने संसद में कहा कि अफसरों के लिये एक सांसद की हैसियत भी पी एम के बराबर है। बात यहीं हास्यास्पद सी लगती है। अफसरशाही की व्यवस्था लोकतंत्र में जनता और सरकार के बीच सेतु के लिये की गयी थी। ध्यान रहे कि देश में संसदीय शासन व्यवस्था है ना कि सांसद शासन व्यवस्था। जिस देश में सांसदों बहुत से बाहुबलि हों उस देश में अगर सांसद अफसरशाही पर हावी हो जाय तो क्या होगा यह बताने की जरूरत नहीं है। लोकतंत्र में संसद का काम समाज में शासन के प्रति भरोसा पैदा करना है। अफसरशाही कानून के प्रति जवाबदेह है ना कि सांसद या संसद के प्रति। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में राजीव गांधी के भाषण का जिक्र करते हुये कहा कि ‘चर्चा के दौरान सदन की गरिमा और मर्यादा बनी रहे तो बात और अच्छे से रखी जा सकती है। यह उपदेश नरेंद्र मोदी का नहीं, भारत के पूर्व पीएम राजीव गांधी का है। ’ राष्ट्रपति की राय भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी का काफी समय सदन में बिताया है। सांसद सतपति के विचार की बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि सदन क्यों नहीं चलने दिया जाता है। इसलिए नहीं कि सरकार के प्रति रोष है बल्कि एक ‘इनफीरियरिटी कॉम्पलेक्स’ की वजह से ऐसा होता है, क्योंकि विपक्ष में भी अच्छे सांसद हैं लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया जाता है। मनरेगा पर पीएम मोदी ने कहा कि रोजगार योजना का इतिहास बहुत पुराना है। राजाओं के समय भी ऐसा होता था। 1972 में महाराष्ट्र की रोजगार गारंटी योजना। 1980 में नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट योजना, 1983 में भी ऐसी ही योजना आई। 1989 में भी जवाहर रोजगार योजना आई। 1993 में एम्प्लायमेंट इंश्योरेंस स्कीम आई। वाजपेयी जी की सरकार में संपूर्ण ग्रामीण योजना आई। 2004 में काम के बदले अनाज की योजना और फिर 2006 में नरेगा फिर मनरेगा। गरीबों की भलाई के लिए इस प्रकार की योजना चलाई जाती है। पीएम मोदी ने कहा कि गरीबी की जड़ें इतनी जमा दी गई हैं कि उसे उखाड़ने में समय तो लगेगा। एक तरफ तो पी एम कहते हैं कि दूसरों को उपदेश देना आसान है, लेकिन खुद कह रहे हैं कि ‘यह सच है कि इस देश में पिछले 60 साल में अगर गरीबी की समस्या को ठीक से देखा गया होता तो गरीब को गड्ढ़ा नहीं खोदना पड़ता। ’ दूसरी अपने पूरे भाषण में उन्हों यह नहीं बताया कि उनकी सरकार गरीबी की समस्या के समाधान के लिये क्या कर रही है। गरीबों के लिये मनरेगा चल रहा है पर उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने का कोई उपाय नहीं हो रहा है। पी एम ने कहा,‘कई बार उम्र तो बढ़ती है, लेकिन समझ नहीं बढ़ती है। इसलिए चीजें समझने में उन्हें समय लगता है। कुछ लोग तो समय बीतने के बाद भी चीजें समझ नहीं पाते। इसलिए विरोध करते हैं। विरोध करने का अपना तरीका ढूंढते रहते हैं।’ साथ ही उन्होंने कहा कि ‘हम लोगों को किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। मेक इन इंडिया का मजाक उड़ा रहे हैं? ये देश के लिए है। सफल नहीं हुआ तो उस पर चर्चा करनी चाहिए।’ उनकी बातों में इतना विरोधाभास क्यों? बकौल गालिब ‘वो हर एक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता? पी एम ने कहा , यहां कुछ लोग अखबार में क्या छपेगा, उसकी तू-तू मैं-मैं करके स्कोरिंग करते हैं। मीडिया में छा जाते हैं। पीण् एम ने कहा ,बांग्लादेश से सीमा विवाद हमने सुलझाया। आप कर देते तो कह सकते थे कि हमने कर दिया तो मोदी ये तुम्हारा अचीवमेंट कहां होता। 18 हजार गांव आजादी के बाद से अंधेरे में डूबे थे। हमने वहां बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा। आप पहुंचा देते तो हमें नहीं करना पड़ता।

हर एक बात पे कहते हो तुम , ‘तू क्या है?’

तुमही कहो कि ये अंदाजे गुफ्तगू क्या है?

 

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