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Saturday, March 5, 2016

शिव ही क्यों सत्य है


7 फरवरी को महाशिवरात्रि है। धार्मिक विषयों पर लिखना और खास कर आज के सामाजिक राजनीतिक परिवेश को देखते हुये लिखना संकटपूर्ण हैं। संकटपूर्ण इसलिये कि अबसे कुछ साल पहले एक सभा में स्व. प्रभाष जोशी ने अपने भाषण के दौरान सन्मार्ग के यशस्वी सम्पादक स्व. राम अवतार गुप्त पर कटाक्ष करते हुये कहा था कि लोग देवी देवताओं और भूत प्रतों पर लिख कर अखबारों का प्रसार बढ़ा लेते हैं। आज भी चूंकि , धर्म को लेकर एक विशेष वर्ग तत्ववाद का बखेड़ा कर रहा है ऐसे में धार्मिक विषयों पर कुछ कहना पक्षपात के आरोप से ग्रसित होना है। लेकिन शिव ही सत्य हैं तथा सुंदर है इसलिये इस अवसर पर लिखना एक आवश्यकता है। वह आवयकता है शिवलिंग के बारे में फैले भ्रम के निवारण की।

अक्सर ज्ञान गुमानियों को शिवलिंग को पुरुष जननांग बताते हुये सुना गया है और यही सबको बतया भी गया है। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि लिंग का अर्थ प्रतीक है। वायु संहिता में कहा गया है कि अव्यक्त से तीन गुणों वाली प्रकृति व्यक्त होती है, फिर उसी में लीन हो जाती है। सृष्टि के इस कारण को लिंग कहते हैं – अव्यक्तं लिंगामख्यातं। शिव प्रलयंकर हैं। सारी सृष्टि उन्हीं में समाती है। स्कन्दपुराण में लिंग को सृष्टिलय का प्रतीक बताया है। संपूर्ण सृष्टि का रूप दर्शन कठिन है। लिंग मूर्ति है, दृश्य है, प्रकट है इसीलिए उपासना में प्रतीक है। न्याय शास्त्र में लीनम् अर्थंगमयति – गूढ़ अर्थ बताने वाले को लिंग कहते हैं। पुनर्जन्म सिध्दांत में भी लिंग शरीर आया है। प्रत्यक्ष शरीर मृत्यु के बाद नष्ट होता है। सूक्ष्म शरीर लिंग है। यही आगे की यात्रा पर जाता है। शिवलिंग सम्पूर्ण दृश्य अदृश्य की मूर्ति है। मूर्ति का उपासना में प्रयोग है। शिव उपासना भारत की सनातन प्रीति है। धर्मशास्त्र में शिवो भूत्वा शिवं यजेत्-शिवमय होकर शिव की आराधना की बात है। मार्क्सवादी चिन्तक डॉ. रामविलास शर्मा ने पश्चिम एशिया और ऋग्वेद (पृ0 181-82) में रुद्र उपासना को समूची पश्चिम एशिया में व्यापक बताया है। पिचार्ड के चित्रग्रन्थ में लगभग दूसरी सहस्त्राब्दि ईसापूर्व की एक सीरियायी मुद्रा में वे हाथ में परशु लिए मौसम के देवता हैं। 11वीं सदी ई0 पूर्व के एक भग्न ईराकी स्तम्भ में वे सूर्य बिम्ब के नीचे परशु लिए अंकित हैं। वे हित्तियों के विशेष देवता थे ही। डॉ. शर्मा का निष्कर्ष है कि भारतीय देव प्रतीक ही दुनिया के अन्य देशों तक पहुंचा है। भारत का लोक जीवन शिव अभीप्सु है। शिव और लोकमंगल पर्यायवाची हैं। विश्व के प्राचीनतम् ज्ञान अभिलेख ऋग्वेद में शिव का उल्लेख 75 बार हुआ है। ‘त्रयम्बक यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्ध्दनम्, उर्वारुकमिव बंधनानर्मृत्योमुक्षीय मामृतात् (ऋग्वेद 7.59.12)’ ,यह महामृत्युञजय मंत्र के नाम से दुनिया में चर्चित है। रुद्र ही शिव हैं, शिव ही रुद्र भी हैं- ‘स्तोमं वो अद्य रुद्राय येमि शिवः स्ववां। (ऋ010.92.9)।’ वेद, पुराण और महाभारत कपोल कल्पित कविता नहीं हैं। इनमें इतिहास और विज्ञान के तथ्य हैं। उपनिषद् दर्शन ग्रन्थ है। रुद्र शिव श्वेताश्वतर उपनिषद् में भी हैं – एको रुद्र द्वितीयो नास्ति। यजुर्वेद का 16वां अध्याय रूद्र उपासना पर है। ऋषि, रुद्र का निवास पर्वत की गुहा मे बताते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं। चौथे मंत्र में वे रुद्र ‘शिवेन वचसा’ है, शिव हैं। पांचवें में वे प्रमुख प्रवक्ता, प्रथम पूज्य हैं। वे नीलकण्ठ ‘नमस्ते अस्तु नीलग्रीवाय’ हैं। (मंत्र फिर वे सभारूप हैं, सभापति भी हैं। (मंत्र 24) सेना और सेनापति भी (मंत्र 25) वे सृष्टि रचना के आदि मे प्रथम पूर्वज हैं और वर्तमान में भी विद्यमान हैं। वे ग्राम गली में विद्यमान हैं, राजमार्ग में भी। वे पोखर, कूप और नदी मे भी उपस्थित हैं। वायु प्रवाह, प्रलय, वास्तु, सूर्य, चन्द्र मे भी वे उपस्थित हैं। (मंत्र 37-39) मंत्र 49 में वे रुद्र फिर शिव ‘या ते रुद्रशिवा’ हैं। मंत्र 51 में वे इष्टफल दायक ‘शिवतम शिवोः’ हैं। वे ऋग्वेद में हैं, वे यजुर्वेद में हैं। एक जैसे हैं। रूद्र शिव हैं, शिव रूद्र हैं। ‘श्यम्वकं यजामहे’ ऋग्वेद में है, यजुर्वेद में भी (3.58) हैं। रामायण और महाभारत काल में है। उनके नाम पर ‘शिव पुराण’ अलग से उपलब्ध है। रुद्र शिव ऋग्वैदिक काल की और भारत की ही देव प्रतीति हैं। वे सम्पूर्ण अस्तित्व की विराट ऊर्जा का प्रतीक हैं। ठीक वैसे ही जैसे अदिति, अज, पुरुष आदि वैदिक देव प्रतीक हैं। पुराण कथाओं और भारत के लोकजीवन में वे शिव, रुद्र भोले शंकर भी हैं। वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश की देवत्रयी में एक विशिष्ट देव हैं। शिव हिन्दू दर्शन की निराली अनुभूति हैं, वे सत्य हैं और सुंदरतम हैं।

 

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