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Tuesday, January 31, 2017

बजट : एक हाथ से दे एक हाथ से ले

बजट : एक हाथ से दे एक हाथ से ले

आज देश का बजट है। सरकार ने इसे एक महीना पीछे सरका लिया हैइसके चाहे जो कारण हों पर बज सदा से जनता और उसकी माली हालत को बनाने – बिगाड़ने वाला रहा है। इसलिये वह चर्चा का विषय रहा है। यह बजट दर असल बहुत महत्वपूर्ण इस लिये है कि यह इस सरकार का अंतिम ऐसा बजट है जो इसके अगले चुनाव पर असर डालेगा। पिछले चुनाव में मोदी जी ने बहुत उम्मीदें दिलायीं थी। इस बजट में उन उम्मीदों को पूरा करने का अंतिम अवसर है। क्योंकि इस बजट के बाद आर्थिक स्थिति को सुधरते सुदारते 2019 आ जायेगा।

एक कथा है कि एक बार मंत्री जी ने भेड़ों की सभा में घोषणा की कि सभी बेड़ों को एक इक कमबल दिया जायेगा। सब बेड़ें खुश हो गयीं और उनकी हर्षधनि से फिजां गूंजने लगी। इसी बीच एक भेड़ ने कहा कि यारों कम्बल का ऊन कहां से आयेगा? सबकी बोलती बंद। जाहिर था कि ऊन के लिये तो उन्हीं बेड़ों को मूड़ा जाता। वही बात इस बार के बजट में होने वाली है। जैसे मसल के लिये लें कि वित्त मंत्री ने वादा किया था कि कारपोरेट टैक्स की सीमा 2018-19 तक 25 प्रतिशत कर दी जायेगी। फिलहाल यह टैक्स 30 प्रतिशत है और सेस इत्यादि मिलाकर 34 प्रतिशत आता है। अगर अरूण जेटली सही बोलते हैं तो इसका एक हिस्सा इस बजट में कम होना चाहिये वरना उस साल अचानक 5 प्रतिशत टैक्स घटाने से आर्थिक स्थिति में भारी गड़बड़ी हो सकती है। अतएव विश्लेषकों का मानना है कि इस बजट में सरकार कारपोरेट टैक्स 27 या 28 प्रतिशत कर सकती है। उल्लेखनीय है कि इंग्लैंड ने कारपोरेशन टैक्स को 20 प्रतिशत कर दिया है और ट्रंप इसे 15 प्रतिशत करने की बात कर रहे हैं।अगर भारत के कारपोरेट टैक्स को घटा कर 27 अथवा 28 प्रतिशत कर दिया गया तो 30 प्रतिशत पर्सनल टैक्स तर्क संगत नहीं रह जायेगा उसे घटाना ही पड़ेगा। वरना विपक्ष को एक मौका और मिल जायेगा शोर मचाने का। वैसे ही यह सरकार ‘सूट-बूट की सरकार के नाम से बदनाम है।’ अतएव पर्सनल टैक्स की सीमा को 27 या 28 प्रतिशत लाना होगा या कहें की करने की जरूरत पड़ सकती है। इसके साथ ही आयकर में छूट की सीमा 3 लाख करने की बात है। ऐसे में पर्सनल टैक्स में लाभ का असर केवल वेतनभोगी वर्ग या मध्यवर्ग को हासिल हो सकता है। गरीबों का क्या होगा? सोचिये बजट के बाद ही पांच राज्यों में चुनाव है। ऐसे क्या हो सकता है कि बजट पांचों राज्य में हवा पलट दे। इसका उभर है यू बी आई यानी यूनिवर्सल बेसिक इनकम। यह पश्चिमी देशों के सोशल सिक्यूरिटी की अवधारणा से प्ररित है। सभी बेरोजगार व्यस्कों को आधार कार्ड के माध्यम से बैंकों में 1500 रुपये हर महीने दिये जाने हैं ताकि वे जीवन यापन कर सकें। देश में लगभग 20 करोड़ बेरोजगार नौजवान हैं। इनके हिसाब से यह राशि करीब 3 लाख करोड़ बैठती है। क्या सरकार के पास इतना धन है? अतएव सरकार महात्मागांदा ग्रामीण रोजगार योजना को इसमें शामिल कर सकती है। और हो सकता है कि पहले वर्ष में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को ही यह दिया जाय। अब अगर सरकार कारपोरेट टैक्स घटाती है, पर्सनल टैक्स घटाती है और बीपीएल का खर्च बढ़ाती है तो इतना धन उसके पास नहीं है और उसे कहीं और से धन का बंदोबस्त करना पड़ेगा।हो सकता है इसका कुछ भाग प्रत्यक्ष कर और परोक्ष कर में वसूली बढ़ने से पूरा हो जाय। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रत्यक्ष कर में 8-9 प्रतिशत वृद्धि हुई जबकि परोक्ष कर में 15-16 प्रतिशत वसूली बढ़ी है। लेकिन बाकी के लिये सरकार को सर्विस टैक्स पर निर्भर होना पड़ेगा। इस साल से जी एस टी लागू हो रहा है साथ ही वर्तमान सर्विस टैक्स की दर 14 प्रतिशत (अधिभार मिलाकर 14.5 प्रतिशत ) से बढ़ाकर अगर 18 प्रतिशत किया जाता है तो सरकार को 4 प्रतिशत का लाभ होगा। इधर सरकार ने जीएस टी से राज्यों की अर्थव्यवस्था को कम से कम पांच साल तक प्रभावित होने से बचाये रखने का वादा किया है। अतएव वह परोक्ष करों में ज्यादा ऊपर नीचे नहीं कर सकती। यही नहीं जी एस टी की दर तय करने के लिये मुख्यमंत्रियों की एक कमिटी जिममेदार होगी ना कि केंद्र सरकार। अतएव सरकार के हाथ में केवल प्रत्यक्ष कर ही घटाने बढ़ाने को बचे।

इसके साथ ही यह पांच राज्यों में चुनाव का वक्त है यानी भाजपा की अग्निपरीक्षा। नोटबंदी के के कारण बने घावों पर मरहम लगाने का समय है यह और प्रत्यक्ष करों का सीधा असर पड़े उससे पहले उसमें कटौती जरूरी है।

अब बजट के जरिये आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की जहां तक बात है तो सरकार के पास उत्पादन बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं है। उत्पादन बढ़ाने के लिये जरूरी है ढांचागत सुदार में निवेश। जिन क्षेत्रों में ढांचागत सुधार का असर नहीं होता है उनमें जी एस टी या परोक्ष टैक्स दरों में मामूली कटौती की जा सकती है। लेकिन ओ चाटने से प्यास नहीं बुझती। इसके लिये जरूरी है कि आमदनी के स्रोत बढ़ाये जाएं और यह टैक्स में वृद्धि के अलावा कोई रास्ता नहीं है। यानी व्रिमंत्री एक हाथ देंगे और दूसरे हाथ से ले लेंगे। भड़ों को कम्बल देने के लिये भेड़ों का ही मुंडन किया जायेगा।   

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