CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Tuesday, June 13, 2017

शिक्षा का बाज़ारीकरण

शिक्षा का बाजारीकरण

अभी हाल में दो घटनाएं हुई जो हमारे देश कु शिक्षा के उन्नायकों की आंख खोलने के लिये काफी है। पहली घटना कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने निजी स्कूलों द्वारा अनाप शनाप फीस इत्यादि बढ़ाने पर रोक लगाते हुये एक कमिटी का गठन किया ज्​ो इसपर निगरानी रखेगी और दूसरी बिहार में स्कूल परीक्षा में नकल रोक दिये जाने पर बड़ी संख्या में बच्चों का फेल होना। हमारे देश में जहां ज्यादातर बच्चे कुपोषण के शिकार हैं वहां शिक्षा का लगातार महंगा होना और उसी के अनुपात में शिक्षा के स्तर का तेजी गिरना बड़ा घातक महसूस हो रहा है खासकर हमारे देश के भविष्य के लिये। एक परिवार जब अपने बच्चे को किसी निजी स्कूल में भेजता है तो उसे कितनी कठिनाइयों का मुकाबला करना होता है यह वही जानता है। यह एक तरह का शैक्षिक अत्याचार है। इस अत्याचार के प्रति राज्य सरकार सचेत हुई र्है यह संतोषजनक है। इन दिनो निजी स्कूल की स्थापना लोक क्ल्याण नहीं है। यह कारपोरेट दुनिया का आकर्षक निवेश है। इन स्कूलों में शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं होता ये तो एक उद्यम है। इसके पहले केंद्र सरकार ने एक नियम बनाया था कि स्कूलों में क्या क्या करना है पर उससे अभिष्ट की प्राप्ति नहीं हो सकी। अब हाल में जब मुक्त बाजार का दर्शन देश में व्याप्त हो गया तो शिक्षा आर्थिक शोषण का एक नया केंद्र बन गया। यहां गड़ा गया एक नया तकनीकी नाम ‘डोनेशन’ यानी दान। यह डोनेशन किसी मशहूर शिक्षा संस्थान में बच्चे का नामांकन कराने के लिये देना होता है। यह रकम इतनी ज्यादा होती है कि एक अमीर आदमी ही चुका सकता है। इससे जाहिर होता है कि निजी स्कूल शिक्षा का ‘भयानक असमान अवसर’ मुहैय्या कराते हैं। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोश ने जितना भी दबाव दिया कि सामाजिक मसलों पर व्यय घटाया जाय निजी शिक्षण संस्थानों ने उसका उतना ही लाभ उठाया। देश में ऐसे उद्यमियों का विच्कास हुआ जो एक तरह से शिक्षा का रैकेट चलाते हैं। इन दिनों मशहूर स्कूलों में कितना बड़ा र्रैकेट चलता इसका सहज अनुमान लगाना मुश्किल है। विज्ञापनों के बड़े बड़े होर्डिग्स से लेकर बच्चे के अबिवकों को स्कूल के एडमिशन टेबल पहुंचाने वाले दलालों की लम्बी सीढ़ी के बाद खुलता है डोनेशन का द्वार और तब होता है एडमिशन। यह आर्थिक रूप से बहुत ताकतवर नहीं होने पर असंभव है। यानी गरीब आदमी का बच्चा कथित स्तरीय शिक्षा नहीं ले सकता। रुपया इन दिनों शिक्षा खरीदता है। यानी अब केवल अमीर के बच्चे ही अच्छी शिक्षा और कौशल हासिल करेंगे तथ और अमीर होते जायेंगे एवं गरीब के बच्चे गरीबी के रौरव नर्क में पड़े रहेंगे। शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का तरीका तय होते ही रैकेट आरंभ हो जाता हे। इनका गेल्डेन तरीका है नामांक या एडमिशन को कठोर बना दिया जाय। इससे स्कूल चलाने वालों को डोनेशन की राशि बढ़ाने का अवसर मिल जाता है। अर्थशास्त्र में इसे मांग ओर आपूर्ति की ‘इलास्टीसिटी’ का सिद्धांत कह सकते हैं। यह सुनकर हैरत होती है कि देश के कई स्थानों पर मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिये 90 लाख रुपये डोनेशन देने होते हैं। इसके बाद पढ़ने के ठाट-बाट का खर्च।

विगत कुछ सालों से अंग्रेजी मिडीयम स्कूलों का क्रेज बुरी तरह बड़ा है। शिक्षा के व्यवसाई इस बाजार में कूद पड़े हैं। उनका कहना है कि हमें क्वालिटी शिक्षा देने के लिये लगने वाले खर्च तो अपने ही संसाधनों से पूरा करना है। और उन संसाधनों का आदार बच्चों से ली गयी फीस ही तो है। इसलिये फीस तथा डोनेशन की राशि में बेशुमार इजाफा कर दिया गया। यह वृद्धि अभिवकों पर प्रहार के रूप में महसूस की गयी। जो अमीर हैं उनके लिये तो कुछ नहीं पर जो गरीब हैं उनके बारे में सोचा है कभी किसी ने। बड़े निजी स्कूलों में शिक्षकों की क्वालिटी की बात होती है और कहा जाता है कि सरकारी स्कूलों में ‘कम्प्रोमाइज्ड’ होती है। अभिवक भ्गी शिकायत करते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई सही नहीं होती और प्रबंधन लुंज पुंज होता है। यही नहीं पाठ्यक्रम भी वैज्ञानिक नहीं होता। जबकि निजी एलिट स्कूलों में सबकुछ चकाचक होता है। यह दुष्प्रचार बेहद खतरनाक उपभोक्ता मनोवृति को जन्म देता है। अभिभावक

इन निजी स्कूलों के ग्लैमर के दीवाने होते हैं वे इसके बीर नहीं झांकते कि शिक्षा का स्तर क्या है या शैक्षिक ढांचा कैसा है। बच्चों को भारी और बोरिंग पाट्यक्रम का बोझ उठाना पड़ता है। ऊंची फीस देनी पड़ती है, सेशन चार्ज, डेवेलपमेंट फसि और ना जाने क्या क्या देना पड़ता है। कई बार तो लगता है कि ये स्कूल नहीं छोटे- छोटे सुपर मार्केट हैं जहां स्कूल ड्रेस के सिलने के लिये दर्जी से लेकर स्टेशनरी तक उपलब्ध है। यह एक बहुत बड़ा रैकेट है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार कहा था कि ‘शिक्षा का व्यवसाईकरण नहीं होने दिया जायेगा।’ यह संतोष की बात है कि राज्य सरकार ने इस ओर ध्यान दिया है। लेकिन सरकार को यह भी देखना होगा कि शिक्षा का स्तर सही रहे वरना सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की ऊंची तनख्वाह, अपर्याप्त विद्यालय भवन और शिक्षा का खराब स्तर इस सारे प्रयास पर पानी फेर देगा। क्योंकि ऊंची तनख्वाह के लोभ में शिक्षकों की बहाली के लिये भी धंधा शुरू हो जायेगा और अयोग्य शिक्षकों का तांता लग जायेगा। इससे लाभ के ब्दले हानि ही होगी। 

0 comments: