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Wednesday, August 16, 2017

मोदी जी का लाल किले से चौथा भाषण

मोदी जी का लाल किले से चौथा भाष

लाल किले की प्राचीर से प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को राष्ट्र को संबोधित किया. 2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व का यह अंतिम से पहले वाला  भाषण था. मोदी जी राजनितिक कला में भाषण कला में माहिर हैं.इस बार का भाषण उनके पिछले भाषणों से टोन और अन्तर्वस्तु से भिन्न था. अगर 2014 का उनका पहला भाषण  प्रेरणादायी और अच्छे इरादों से लबालब था तो बीच के दो भाषण योजनाओं की घोषणा और परिवर्तन के अजेंडा को आगे बढाने वाला था तो यह भाषण अपेक्षाओं – उम्मीदों को दुबारा जगाने तथा मतदाताओं को यह बताने वाला था कि क्या किया गया और अगले दो वर्षों में क्या किया जाना है. 2014 में अपने कार्यकाल के शुरूआती वर्ष में मोदी जी ने खुद को  “ अच्छे दिन ”   के वायदे को पूरा करने जैसी बातों पर केन्द्रित रखा तो इसबार उन्होंने उन उस बिम्ब योजना को समझाने कि कोशिश की  कि इसका सही अर्थ क्या होता है और उन्होंने वह पैमाना पेश करने का प्रयास किया जिससे अच्छे दिन कि पैमाइश कि जा सके. उन्होंने बहुत ही चालाकी से इस लक्ष्य को पूरा करने कि समय सीमा 2022 भी तय कर दी ,  यानी स्वतन्त्रता कि 75 वीं वर्षगाँठ तक की प्रतीक्षा अच्छे दिन की.  मतलब यह कहें कि यदि अच्छे दिन देखने हैं तो  अगले चुनाव में भी उन्हें विजयी बनाएं. अब बिजली , सड़क , पानी नारा नहीं रहा. अब नया सपना दिखाया जा रहा है पक्का घर , बिजली , पानी क्योंकि  सड़क का सपना तो अधिकाँश राज्यों में  तेजी से साकार हो रहा है.इस बार के भाषण में एक महत्वपूर्ण बात यह दिखी कि मोदी जी ने “ सबका साथ , सबका विकास ”  वाला जुमला त्याग दिया. इसके समर्थन में बस उन्होंने केवल तीन तलक वाली बात यह कह कर उठायी कि महिलायें इससे संघर्ष कर रहीं हैं. किसी भी विवादास्पद मामले पर उन्होंने जोर से कुछ नहीं कहा  , चाहे वह देशी नीति से जुडा हो  या विदेशी नीति से जुड़ा हो. उन्होंने उन मामलों को भी उठाया जिसमें  उनकी सरकार का सर नीचा होता है , लेकिन उन्होंने बड़ी सफाई से उन मामलों का ज़िक्र भर कर के छोड़ दिया. उन्होंने गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में लापरवाही के कारण  हुई घटना को दबी आवाज़ में स्वीकार किया , देश के विभिन्न भागों बाढ़ के विनाश का भी ज़िक्र किया और उन्होंने हल्के से यह भी माना कि नोटबंदी  से जितने फायदे की उम्मीद थी उतना फायदा नहीं हुआ. उन्होंने कालेधन जमा करने वालों को पकड़ने वाली अपनी बात को बड़ी चालाकी से मोड़ कर यह कहना शुरू कर दिया कि कालाधन बैंकों में आ गया है और वे टैक्स दे रहे हैं.

   देशवासिओं- भाइयों और बहनों  , यह स्मार्ट पोलिटिक्स है. कोई भी राजनीतिज्ञ जो वादा करता है या लक्ष्य को पूरे करने कि कोशिश करता है वह पूरा हो ही जाय, खासकर भारत जैसे देश में जहां भ्रष्टाचार का बोलबाला हो और पिछले दरवाज़े से काम कराने कि आदत हो , वैसे देश में  यह ज़रूरी नहीं है . इस लिए चालाक राजनीतिज्ञ के लिए अच्छा यह होता है कि जो हासिल किया जा चुका है उसपर आधारित कर कुछ नया करे और बदलाव के मुद्दे पर फोकस डाले ना कि मूल वायदे को मथता रहे. पूरे भाषण में जो बात बिलकुल स्पष्ट थी वह थी कि प्रधानमन्त्री जी प्रधान सेवक से राजनेता हो गए और यह बताने कि कोशिश करते रहे कि प्रधानमंत्री पर दोष नहीं लगाए जाने से अलग है यानी उस पर आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने बड़ी सफाई से मतदाताओं को यह भी बता दिया कि 2019 में जब वे वोट डालने  जा रहे हों तो उनके कार्यकाल के बारे में कैसे तय करें.

   जिन्होंने भाषण सूना वे मोदी जी के मुहावरे को सुन कर दांतों टेल ऊँगली दबा रहे होंगे. उन्होंने दिव्य,भव्य भारत का जो आकर्षक चित्र खींचा और स्वराज से ध्यान सुराज , भारत छोड़ो से भारत जोड़ो तक ले गए , चलता है के बदले देश बदल रहा है  यह सुन कर उनके भाषण कला की दाद देनी होगी.  उन्होंने जातिवाद और सम्प्रदायवाद को ख़त्म करने का आह्वान किया. जितनी बातें उन्होंने कहीं वह सब उनके पहले के  भाषणों  में एक तरह से पीछे जाकर संशोधन की  तरह था.  अगर मोदी जी के भाषण का राजनितिक – मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाय तो  साफ़ दिखेगा कि वे 2019 के चुनाव की योजना शुरू हो चुकी है. इसबार के भाषण में रोजगार और अर्थव्यवस्था के विकास की  चकाचौंध नहीं था बल्कि इस बार नोटबंदी और कालाधन था. वे नोटबंदी पर बोले, 3 लाख करोड़ रूपए के काले धन के बैंकों में जमा होने कि बात कह गए , बेनामी सम्पति के बारे में बोलते रहे. इससे साफ़ ज़ाहिर है कि नोटबंदी से तुरत लाभ नहीं हुआ तो क्या है लेकिन मोदी काले धन के शत्रु बने रहेंगे. पूरे भाषण में मोदी यह बताने कि कोशिश करते रहे कि बदलाव आ रहा है बेशक तेज नहीं है. हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं अतेव 2019 में साथ मत छोडिये. नौकरियों के बारे में उन्होंने यह कहते हुए गोल पोस्ट बदल दिए कि कौशल सिखा कर स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा रहा है और गरीब भी रोजगार देनेवाले बनते जा रहे हैं. कश्मीर के मामले में उनकी जुबान से शहद टपक रही थी. उन्होंने कहा कि जंग दिलों को जीतने कि चल रही है यहाँ गोली और गाली से काम नहीं चलेगा. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आतंकियों और पत्थरबाजों के आगे घुटने टेकेंगे. पकिस्तान के सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री जी की  बात 2016 के भाषण से बिलकुल उलटी थी. पिछली बार उन्होंने गिलगित – बल्तिस्तान , बलोचिस्तान इत्यादि के बारे में जमकर कहा था. इसबार वे पकिस्तान को नज़रंदाज़ करते से दिख रहे थे.   चीन से तानातानी पर वे बहुत कम बोले और जो बोले वह सैन्य शास्त्र में महत्वहीन था. एक व्याक्य में कहा जाय तो यह कि मोदी जी भाषण कला में अति प्रवीण हैं और इस बार वे मतदाताओं को संबोधित कर रहे थे.    

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