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Sunday, August 13, 2017

पूजा – दक्षिणा में  सिक्कों का उपयोग हो ना कि नोटों का

पूजा – दक्षिणा में  सिक्कों का उपयोग हो ना कि नोटों का

इसमें खराब हो जाते हैं नोट , छापने में होती है देश को आर्थिक क्षति

 

हरिराम पाण्डेय

 

कोलकाता : मंदिरों में चढ़ावे , पूजा पाठ, दान या दक्षिणा के रूप में करेंसी नोटों या कहें कागज़ी नोटों के उपयोग से कई समस्याएं उत्पन्न हो रहीं हैं खासकर नए नोटों के खराब होने की समस्या अक्सर देखी जा रही है. इससे ना केवल सरकार को आर्थिक क्षति  पहुँचती है बल्कि उनके बदले नए नोट जारी करने में लगने वाले समय के दौरान बाज़ार में अचानक नोटों का आभाव हो जाता है. सरकार के अनुसार 2000 रूपए के एक नोट को छापने में 3.77 रूपए खर्च आते हैं. गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार यह खर्च लगभग 5.80 रूपए आते हैं. अब पूजन और चढ़ावे के दौरान पानी लगने या सिन्दूर , कपूर जैसे सिन्थेटिक रसायन लगने से नोट ख़राब हो जाते हैं या उनकी आयु घट जाती है.   

   इ पी डब्लू  के एक विश्लेषण के अनुसार देश में लगभग 11 सौ करोड़ रूपए एक साल में देश 19  बड़े मंदिरों में चढ़ावे के रूप में चढ़ते हैं. अगर इतनी ही रकम देश भर के पंडितों को दक्षिणा और अन्य पूजा विधियों में मिलते हों तो कुल 22 सौ करोड़ रूपए इस कार्य में लगे होते हैं.हालांकि यह विश्लेषण 2014 का है. वर्तमान में यह रकम और बढ़ी होगी.   मार्च 2017 की रिजर्व बैंक की रपट के अनुसार देश में चलने वाली सकल करेंसी 11 .73 लाख करोड़ का यह रकम लगभग 0.19% होती  है. रिजर्व बैंक के सूत्रों के अनुसार प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के समीप के बैंकों में रंग लगे या गले या खराब नोट कई बार समस्या बन जाते हैं  यही हाल किसी धार्मिक त्यौहार के दौरान जैसे गंगा सागर मेला यानी  मेलों के बाद वहाँ के बैंकों में खराब नोट आने लगते हैं. अगर मान लें कि एक वर्ष में 1 करोड़ रूपए के नोट खराब हो जाते हैं तो उन्हें छापने में देश के 3 करोड़ 77 लाख रूपए व्यय होंगे. साथ ही , इन नोटों के छपने में लगे समय के दौरान बाज़ार में नोटों कि कमी भी दिखेगी. इसका असर मुद्रास्फीति पर भी पड़ सकता है.

सिक्कों का उपयोग करें

इस मसले पर रिजर्व के अधिकारियों ने सन्मार्ग से बातचीत के दौरान बताया कि यदि लोग इस तरह के धार्मिक आयोजनों में सिक्कों का उपयोग करें इससे नोटों के मामले होने वाली परेशानी से बचा जा सकता है . सूत्रों का कहना है कि यदि लोगों में इस तरह का चलन शुरू हो तो रिजर्व बैंक विभिन्न बैंकों के काउंटर से 50 , 100 , 200 रुपयों के सिक्कों के पैकेट मुहैय्या करा सकता है. रिजर्व बैंक  के सूत्रों का कहना है कि अगर ऐसी पहल होती है और बात उन तक पहुंचती है वे इसे प्रोत्साहन देंगे .

   प्राप्त जानकारी के अनुसार देश में वर्तमान में 9,950 मिलियन सिक्के चल रहे हैं जिनमें 2200 मिलियन सिक्के मुंबई , 2050 मिलियन सिक्के कोलकाता 1500 मिलियन सिक्के हैदराबाद और बाकी सिक्के नोयडा में ढाले गए. अगर सभी प्रकार के धार्मिक कृत्यों में सिक्कों का उपयोग बढ़ता है तो इससे एक तरह से राष्ट्रीय क्षति भी कम होगी. क्योकि यह मान कर चलें कि इस तरह का कोई भी बोझ घूम फिर कर जनता के सर पर ही पड़ता है. पूजा का उद्देश्य सर्वजन सुखाय – सर्वजन हिताय भी है. पूजा करने वाले पंडित और पूजा कराने वाले लोग केवल पूजा ही नहीं करते - कराते बल्कि समाज को शांति और परोपकार कि राह भी दिखाते हैं . अगर दोनों पक्षों ने यह एक छोटी सी पहल की  तो वे समाज में प्रशंसा  के पात्र भी होंगे और पूरे विश्व के लिए मिसाल भी .

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