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Wednesday, October 11, 2017

अब शिक्षा में भी 5 सितारा संस्कृति

अब शिक्षा में भी 5 सितारा संस्कृति

सरकार ने उच्च सिक्षा के विकास के लिए या कहें कि उनकी गुणवता में सुधार के लिए एक अभिनव योजना “ गढ़ “ रही है.इस योजना के तहत सरकार देश में 20 विश्वविद्यालयों का चयन करेगी. इनमें 10 सरकारी होंगे और 10 निजी होंगे. इन विश्वविद्यालयों को श्रेष्ठ संस्थान का तमगा दिया जाएगा. यह चुनाव एक कमिटी करेगी जिसकी अध्यक्षता उच्च शिक्षा सचिव करेंगे और उसमें विस्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष और शिक्षा क्षेत्र की जानी मानी हस्तियाँ शामिल होंगी. संसद में इस आशय का एक विधेयक पेश किया जा चुका है और इसे मंज़ूरी के बाद चयन की प्रक्रिया आरम्भ होगी. इस प्रक्रिया में जिन सरकारी विश्वविद्यालयों का चयन होगा उन्हें 5 वर्ष तक 1000 करोड़ रूपए का वार्षिक अनुदान भी मिलेगा. यानी 10 चुने गए विश्व विद्यालयों को 10 हज़ार करोड़ का 5 वर्ष तक अनुदान की योजना कुछ ऐसी है मानो देश में शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है और देश के कुछ सिक्षा संस्थान या दुनिया के 100 शीर्ष संस्थानों में शामिल हो सके. उसे रैंकिंग मिल सके. यानी साड़ी कवायद रैंकिंग हासिल करने के लिए है.  यह योजना चूँकि अभी फकत कागजों पर है इसलिए उसके लिए कितनी तैयारी की गयी है यह तो मालूम नहीं है पर लगता है यह स्मार्ट सिटी जैसी ही कोई योजना है. लेकिन एक बात तो साफ़ है कि शिक्षा संस्थानों में व्याप्त असमानता तथा  असंतुलन में  और वृद्धि होगी. इस काम में भारत जैसे देश में कई अड़चनें  भी स्पष्ट दिखाई पड़  रहीं हैं. मसलन इस प्रक्रिया में क्या कई विश्विद्यालयों की स्वायतता बनी रहेगी या उन संस्थानों में नियुक्तुयों से लेकर अध्ययन – अध्यापन और शोध कार्य की क्वालिटी बनाए रखने के लिए कोई सरकारी स्वायत एजेंसी बनायी जायेगी या नहीं. यही नहीं छात्र संघों के दबाव तथा राजनितिक हस्तक्षेप को अप्रभावी बनाने के लिए क्या उपाय होंगे. यही नहीं इसमें निजी क्षेत्रों को शामिल करने की योजना से सरकार की मंशा  पर संदेह होता है. उच्च सिक्षा के लिए ज़रूरी है संसाधन, स्थान , फेकल्टी और चुस्त मशीनरी. इसकी ज़रुरत ज्यादा सरकारी कालेजों और संस्थान को है. देश के विभिन्न महानगरों में कई बड़े विश्वविद्यालय, जिनमें प्रचुर गुणवता है ,  अभी भी किराए के स्थान पर चलते हैं. निजी क्षेत्रों को इसमें शामिल किया जाना बड़ा अजीब सा लगता है. डॉ. अब्दुल कलाम कहा करते थे कि “ शिक्षा सार्वजनिक विकास का साधन है , किसी की मिलकियत नहीं.” अब सामूहिक विकास के इस आइडिया में निजी क्षेत्रो की बराबर की भागीदारी संदेह पैदा करती है. भारत एक विराट देश है जहां शिक्षा को लेकर भारी मोह है है. एक साधन हीन आदमी भी अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश करता है और इस क्रम में वह खुद तकलीफ उठाता है. सुनहरे कल का सपना लिए जब उच्च शिक्षा प्रोप्त ये बच्चे बाहर आते हैं तो उनमें से बहुत नौजवान  बेरोजगारी की कुंठा से ग्रस्त हो जाते हैं.  आंकड़े बताते हैं कि देश के 800 विश्व विद्यालयों , 39 हज़ार कालेजों , और 12 हज़ार शिक्षा संस्थानों से हर वर्ष साढ़े तीन करोड़ छात्र निकलते हैं. इस विराट ढाँचे में से केवल 20 को चुनकर उनपर सारी  ऊर्जा और संसाधन खपा देने की योजना का औचित्य आम आदमी की समझ से बाहर  है.इससे बेहतर तो यह होता कि केंद्र और राज्य स्तर  पर शिक्षा में व्यापक सुधार किया जाता , विस्वा विद्यालय अनुदान आयोग का विकेंद्रीकरण कर दिया जाता , उसे पारदर्शी बनाया जाता, भाई भतीजा वाद ख़त्म कजर दिया जाता और कुलपतियों की नियुक्ति में राजनितिक दखल बंद किया जाता तो शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता में खुद बखुद सुधार हो जाता. सरकार आधार कार्ड की अनिवार्यतया को लेकर जमीन आसमान एक कर सकती है पर उच्च शिक्षा को ठीक करने में इतनी कोताही क्यों? क्यों जब शिक्षा की बात आती है तो राजनितिक दल आपसी हमलों में लग जाते हैं. पूरी पारी संस्कृति ही चौपट हो जाती है. इसमें जो सबसे बड़ी बात है वहग है रैंकिंग के लिए इतनी छटपटाहट क्यों? क्या प्रतिष्ठा  ही केवल लक्ष्य है ? क्या रैंकिंग के बगैर प्रतिष्ठा हासिल नहीं हो सकती?  क्या जो किसी तरह की रैंक में नहीं हैं उन विश्वविद्यालयों को बंद हो जाना चाहिए या बंद कर दिया जाना चाहिए? यह टॉप की अवधारणा शिक्षा जैसे मानवीय क्षेत्र में आभिजात्य परियोजना भरी मुनाफे की मारकाट का फल है. यह मुनाफ़ा कमाने के लिए शिक्षा के प्रति आम आदमी की भावनाओं का दोहन करने की कारपोरेट की की चाल है जिसे  सत्ता की  मिलीभगत से पूरी करने की कोशिश हो रही है. यहाँ यह बता देना ज़रूरी है कि दुनिया में जो 100 टॉप संस्थान या विश्विद्यालय हैं उनमें से केवल 0.4 प्रतिशत छात्र ही निकलते हैं. उन 0.4 प्रतिशत अभिजात्य छात्रों की विश्व के ज्ञान विज्ञान  में क्या अवदान है यह मालूम नहीं हो सका है. क्या ये टॉप संस्थान भी यही करने जा रहे हैं? 

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