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Sunday, October 15, 2017

खस्ता माली हालत और उछलते शेयर बाज़ार

खस्ता माली हालत और उछलते शेयर बाज़ार

इन दिनों आमतौर पर शेयर बाज़ार में रौनक देखी जा रही जबकि देश की अर्थ व्यवस्था में गिरावट और खस्ताहाली दिख रहे हैं. हालत इतनी बिगडती जा रही है कि हमारे देश में भूखों की संख्या बढ़ रही है दूसरी चुनिन्दा अमीर लोग तेजी से अमीर होते जा रहे हैं. भूख का आलम यह है कि देश में 100 बच्चे लम्बाई के अनुसार कम वजन के हो रहे हैं और ग्लोबल हंगर इंडेक्स के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 119 देशों की सूची मे भारत  का स्थान 100 वां है. जबकि गत वर्ष भारत का स्थान 97 वां था. एक तरफ जहां देश के 9.6 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त पोषक भोजन मिलता है और हर तीन में से एक बच्चे का वजन लम्बाई के अनुपात में कम है वहीँ देश के 100 अमीरों की दौलत में पिच्च्ले साल के मुकाबले एक चौथाई से ज्यादा  वृद्धि हुई है. यह सब ऐसे समय में हो रहा है कि अर्थ व्यवस्था लुढ़कती जा रही है मध्य वर्ग गैस की बढती कीमतों से जोझ रहा है और छोटे व्यापारी तथा गरीब लोग अभी भी नोट बंदी  के आघात से  उबरे नहीं हैं. विपक्षी दल सरकार की आर्थिक नीतियों में भारी खामियां खोज रहे हैं , सत्तारूढ़ दल के भीतर से भी विरोध की आवाज़ सुनाई पड रही है. वित्त वर्ष 2017-18 की पहली छमाही में विकास दर तीन साल में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गयी . तिमाही विकास दर 6.1 प्रतिशत से घट कर 5.7 पर पहुँच गयी. विरोधी दलों का कहना है कि अर्थ व्यवस्था गर्त में गिरती जा रही है. लेकिन इस बीच हमारे देश में कारोबारी दुनिया का एक हिस्सा शेयर बाज़ार चमक रहा है. यह एक ऐसी विडम्बना है जो आम आदमी की समझ से बाहर है. अमरीका और यूरोप में अर्त्ढ़ व्यवस्था में हल्का झोंका आते ही वहाँ के शेयर बाज़ार डगमगाने लगते हैं जबकि देश की अर्थ व्यवस्था से हमारे शेयर बाज़ार बेपरवाह हैं. ऐसा क्यों हो रहा है? शेयर विशेषज्ञ श्रीनाथ कपूर के अनुसार “ बाज़ार की चमक अस्थायी है और इसका कारण है म्युचुअल  फंड का पैसा शेयर बाज़ार में लग रहा है और यह चमक अस्थायी है क्योंकि जिस दिन म्यूच्यूअलफंड के शेयर्स में लगा पैसा जैसे ही वापस लिया जाएगा बाज़ार क्रैश कर जाएगा.इससमय म्युचुअल फंड में बहुत निवेशकों  का पैसा लगा है इसलिए शेयर बाज़ार में चमक है. अगर शेयर बाज़ार के आंकड़े देखें तो इस वर्ष म्युचुअल फंड की सबसे ज्यादा खरीददारी सितम्बर महीने में हुई है. अबतक कुल खरीदारी 65 हज़ार 917 करोड़ रूपए है. “ मसलन वित्त वर्ष के पहले छमाही के अंत में 26 जुलाई को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 10,000 अंक के पार चला गया था और सेंसेक्स 32,000 का आंकडा पार गया था, यह अपने आप में एक रिकार्ड है.  दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था का आलम यह है कि व्यवसायियों को बैंको द्वारा दिया जाने वाला क़र्ज़ की गति घाट रही है. स्टेट बैंक के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि चालू वर्ष में अबतक कार्पोरेट क़र्ज़ केवल 5.1 प्रतिशत है जो 1951 के बाद सबसे कम है. श्री नाथ कपूर के अनुसार “ बाज़ार और अर्थ व्यवस्था का सह सम्बन्ध नहीं है. शेयर बाज़ार को अर्थ व्यवस्था के आईने में नहीं देखा जाना चाहिये. “ अगर ऐसा है तो अधिकाँश लोगों की यह धारणा सही नहीं मानी जा सकती है कि भारतीय बाज़ार की उछाल विदेशी निवेशकों के बूते है. हालांकि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने इस साल भी बाज़ार में निवेश किया है. वैसे कई लोगों का यह भी मानना है कि राजनितिक स्थिरता और आर्थिक सुधारों की रफ़्तार के कारण बाज़ार चाध रहा है पर यह कथन तर्क सांगत नहीं लग रहा है क्योंकि अर्थव्यस्था की खराब हालत पर होने वाली आलोचनाओं से बेपरवाह मोदी सितम्बर के बाद से बचाव  करते हुए नज़र आ रहे हैं. पिछले दिनों कंपनी सेक्रेटरीज की बैठक में उन्हें तीखे सवालों का ज़वाब देते नहीं बन रहा था. जी एस टी को ढीला करना  इसी का         संकेत है. नेल्सन एलिओत के सिधान्तों के अनुसार शेयर बाज़ार पैसा लगाने वालों का मनोविज्ञान अक्सर आशावाद से निराशावाद की तरफ बढ़ता दिखता  है और इसी से कीमतें तय होती हैं लेकिन भारत के बाज़ार में  इस वर्ष उलटा रूख दिख रहा है जो स्वाभाविक नहीं है. उधर विदेशी निवेशकों का म्युचुअल फंड में पैसा लगाना कई स्याह- सफ़ेद संभावनाओं की ओर इशारा करता है. 

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