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Friday, October 27, 2017

विदेशी जासूसी एजेंसियों से सरकार ले रही है काम

विदेशी जासूसी एजेंसियों से सरकार ले रही है काम

कई विपक्षी राजनीतिज्ञों पर लगाए गए गुप्तचर , राष्ट्रीय  स्वायतत्ता को भरी ख़तरा

हरिराम पाण्डेय

कोलकता : आर्थर कानन डायल या स्टेनली गार्डनर अथवा हमारे  शरदेन्दु बनर्जी के कथानकों की भांति हमारी सरकार भी निजी विदेशी जासूसों कि सेवाएं ले रही है. सरकार का कहना है कि विस्देशों से बेतहाशा पूँजी के आगमन के कारन होने वाली कठिनाईयों का  सरकारी एजेंसिया मुकाबला नहीं कर पा रहीं है इस लिए विदेशी जासूसों कि सेवाएं ली जा रही है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि विगत कुछ वर्षों में विदेशों से भारी पूँजी को आमंत्रित किया गया जिससे आर्थिक घोटाले इत्यादि की  जांच के लिए देशी सुरक्षा एजेंसियों को तैयार नहीं किया जा सका. अब सरकार की इस अदूरदर्शिता के कारण अत्यन सवेंदनशील जांच का काम विद्सेशी जासूसों को सौपा जा रहा है. जहां तक खबर है कि ये जासूस उन विदेशी प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसियों से जुड़े हैं जिन्हें उन देशों  की  सरकारी एजेंसिया परदे के पीछे से चलाती हैं. सी आई ए और मोसाद पूरी दुनिया में इसके लिए बदनाम है. मसलन अमरीकी जासूसी एजेंसी पिनकर्टन एंड क्रोल को परदे के पीछे से सी आई ए चलती है और हमारी राष्ट्रवादी सरकार इस एजेंसी की  सेवाएं लेती है. यही नहीं न्यूयार्क की मिन्त्ज़ ग्रुप, कैलिफोर्निया की बर्कले रिसर्च ग्रुप इत्यादि सेवाएँ ली जा रहीं हैं. मिन्त्ज़ के ताल्लुकात पाक अधिकृत कश्मीरी संगठनों से है इसका खुलासा पहले भी हो चुका है. इन अजेंसिओं को भारतीय रिजर्व बैंक, सी बी आई , इन्फोर्समेंट डाईरेकटोरेट , सेबी जैसी संस्थाएं आर्थिक घोटालों की  जांच इन कंपनियों को सौंप रही है. सूत्रों के अनुसार जिन राजनीतिज्ञों कि जांच करवाई जा रही है उनमें विपक्ष के कई बड़े राजनीतिज्ञ भी शामिल हैं.  हाल ही में एक निजी एजेंसी के सहयोग  से , आयकर  विभाग के बड़े अधिकारिओं , शीर्ष राजनीतिज्ञों और मुंबई , दिल्ली , अहमदाबाद , एवं वडोदरा के बड़े व्यावसायियों  का नाइजीरिया , दुबई , ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड और अमरीका में काले धन को सफ़ेद करने का कारोबार पकड़ा  गया. इस जांच में आयकर अधिकारियों का एक दल भी शामिल था. इस दल को एक डायरी भी हाथ  लगी है जिसमें कई संदेहास्पद लेनदेन दर्ज है लेकिन उसमें  जिन राजनीतिज्ञों या व्यापारियों के नाम दर्ज हैं उनसे पूछ ताछ नहीं की गयी है.

   यहाँ एक सवाल उठता है कि बड़े राजनीतिज्ञों और व्यापारियों से जुड़े मामले क्या इन विदेशी एजेंसियों को दिए जा रहे हैं? ये विदेशी एजेंसियां किनके हित में काम कर रहीं है . इस तरह की गतिविधियों पर देश कि स्वायतत्ता को लेकर बड़े अधिकारी चिंता जाहिर कर रहे हैं. पाठकों को स्मरण होगा कि पिछले साल सन्मार्गने अमरीकी जांच एजेंसी एफ़ बी आई  के अफसरों के कोलकता में आकर पूछताछ करने सम्बन्धी एक खबर दी  थी. यह कदम राज्य सरकार को काफी नागवार लगा था. एफ बी आई को कोलकता आने की  न भारत सरकार के गृह विभाग ने अनुमति दी थी ना राज्य सरकार ने. बाद मेंसन्मार्ग की  जांच से पता चला कि उसे एन आई ए ने आने की  अनुमति दी थी.  

       सन्मार्ग को पता चला है  कि राष्ट्रीय संप्रभुता को प्रभावित करने वाला एक समझौता एन आई ए ने एफ बी आई से किया है और इसके लिए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अनुमति दी  है.एजेंसी से एजेंसी के बीच के इस समझौते के अनुसार एफ़ बी आई  को “जांच” के लिए जब चाहे भारत आ सकता है. इसके लिए किसी कि अनुमति की ज़रुरत नहीं है.

पिछले महीने सन्मार्ग ने एक रहस्यमय खुलासे के तहत अपने पाठकों को बताया था कि किस तरह सी आई ए कि पहुँच भारतीय आधार कार्ड के डाटाबेस तक है. भारतीय आधार कार्ड प्राधिकरण ने सी आई ए के पूर्व निदेशक जार्ज टेनेट कि कंपनी “ एल -1 आइडेंटिटी” से किया था . इस कंपनी के अन्य निदेशक हैं एफ बी आई के लुईस फ्रीह , होम लैंड सेक्युरीटी के पूर्व कार्यकारी निदेशक एडमिरल लॉय  इत्यादि. क्या इस डाटाबेस को विदेशी गुप्तचर एजेंसियों को इसलिए दिया गया है कि वे भारत में भारतियों पर जासूसी करें. यह देश कि स्वायतत्ता पर दूरगामी प्रभाव डालेगा. 

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