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Thursday, October 5, 2017

गरीबी का बच्चों पर असर

गरीबी का बच्चों पर असर

हल में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ( आई एल ओ )  और एक आस्ट्रेलियाई संस्था “ वाक फ्री फाउंडेशन “( डब्लू एफ एफ )  की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में खास कर भारत में गुलामों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. भारतीय खुफिया ब्यूरो (आई बी) ने दो दिन पहले भारत सरकार को एक नोट भेजा है कि इस रिपोर्ट में भारत की साख कम करने क्षमता बहुत ज्यादा है और इसके मुकाबले की कोशिश होनी चाहिए. दोनों रपटें अपने आप में काफी अहमियत रखती हैं. गुलामों की तादाद बढ़ना समाज और राष्ट्र के लिए कई स्तरों पर खतरनाक है. आई बी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जबरन काम करवाने, बाल मजदूरी और मानव तस्करी को रोकना ज़रूरी है. ये ही गुणक हैं जो गुलामी को बढ़ावा देते हैं. जहां तक समाज विज्ञान का सवाल है उसके अनुसार गरीबी और गैर बराबरी गुलामी का भाव पैदा करती है ,  गुलामी आक्रोश पैदा करती है और आक्रोश का इज़हार व्यापक सामाजिक अपराधों के रूप में होने लगता है.  अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सर्वे के अनुसार घरेलू नौकरों पर जुल्म , निर्माण स्थल पर काम करने वालों पर दबाव , छोटे छोटे अघोषित कारखानों में काम करने वाले और सेक्स वर्कर के तौर पर काम करने वालों के गुलाम बनाने के खतरे ज्यादा हैं. ख़ास कर गरेरेबी और गैर बराबरी के महाजाल में फंसे बच्चे आरम्भ से ही गुलाम मानसिकता के होते हैं और इनका गुलाम बन जाना सरल है. दो दिन पहले ही गुजरात में एक दलित किशोर को केवल इसलिए चाकू मर दिया  गया कि उसने मूंछ रखी थी. मनोशास्त्री जॉन डी रिच के अनुसार “ गरीब घर में पैदा हुए बच्चों में आचरण सम्बन्धी दोष होने लगता है जो कई बार या यों कहें ज्यादा संवेदनशील बच्चो में अपराध में बदल जाता है. अभी हाल में कीस विश्वविद्यालय के कुलपति अच्युत सामंत ने एक मुलाक़ात में बताया कि “ अगर समाज को अपराध मुक्त और जिम्मेदार बनाना है तो गरीबों के बच्चों को उनके निजी सामाजिक वातावरण से हटा कर उन्हें  अच्छी शिक्षा देनी होगी. क्योंकि गरीब बच्चे जब स्कूल में आते हैं तो उनके सीखने तथा उनके भाषिक मुहावरों में भारी अंतर होता है.”  जो बच्चे समाज में अच्छी तरह घुल मिल जाते हैं और सदाचरण करते हैं उनके लिए उनके माता पिता  का संवेदनशील होना ज़रूरी है. इसके लिए ज़रूरी है कि आय का जनक खुद को अपने परिव३आर का अंग समझे. कई बार तो ऐसा देखने में लगता है कि पिता केवल आमदनी के श्रोत के रूप में होता है. ऐसे परिवार अगर गरीब है तो अच्छी शिक्षा दीक्षा के अभाव में गलत साथ पकड़ कर पथ विमुख होने लगते हैं और वहीँ से गुलामी का बोध शुरू होने लगता है. जो माता पिता  अर्थोपार्जन के लिए कठोर संघर्ष करते हैं वे आचरण के प्रति लापरवाह हो जाते हैं और बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते. ऐसे वातावरण में पले बच्चे अक्सर समस्याओं के जादुई समाधान पर भरोसा करने लगते हैं और उसके नहीं होने पर गलत काम करने लगते हैं. आतंकवादी या मानव बम ऐसे ही बच्चे बनाए जाते हैं. यह अवस्था भी एक तरह से गुलामी का ही रूप है. गरीबी और गैर बराबरी तनाव पैदा करते हैं और ऐसे तनावग्रस्त लोग अतिरिक्त आय के लिए साधन खोजने लगते हैं. ऐसे लोग अपने आत्मसम्मान पर लगातार हमला महसूस करते हैं और जब तुलनात्मक तौर पर अमीर लोगों से अपनी तुलना करते हैं तो तनाव तथा अवसाद मेविन आ जाते हैं. यहीं से अपराध की और पहला कदम आरम्भ होता है. अब्राहम मासलोव के अनुसार भोजन , वस्त्र और आवास बुनायादी ज़रूरतें हैं और इनकी उपलब्धता में कमी उस आदमी या उस समूह को अपराध की और उत्प्रेरित करती है. अपराध केवल वह नहीं है जिसकी  अदालत में सुनवाई हो या जिसकी पुलिस इत्यादि में शिकायत हो बल्कि वह भी अपराध है जो समाज के विहित नियमों से परे है क्योकि यहीं से आपराधिक सोच पनपती है और इस तरह के सोच वाले व्यक्ति का उपयोग किसी भी तरह से किया जा स्क्साक्ता है. यही विचार गुलाम बनाने वालों को समाज में प्रवेश की राह देते हैं. यह एक प्रक्रियागत तरिका है. भारत अंग्रेजो का गुलाम कैसे हुआ? अंग्रेजों ने सबकुछ अपने हाथ में ले लिया और साधन हीन बना कर देश को उनका ज़ुल्म मानने पर मजबूर कर दिया. आज जो समाज में आर्थिक असमानता बढ़ रही है वह समाज को गुलामी की तरफ ही ले जा रहा है. 

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