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Friday, October 27, 2017

बन्दूक से नहीं बनी बात तो ....

बन्दूक से नहीं बनी बात तो ....

मोदी जी ने चुनाव प्रचार के समय कश्मीर और पकिस्तान के मामले में अपनी बहादुरी का जो समां बांधा था और साढे  तीन वर्षों में उन्होंने कश्मीर मामले में जो किया उसे सबने देख लिया. इसी स्तम्भ में सन्मार्ग ने बहुत पहले सरकार से अपील की  थी कि बन्दूक की नाल से यह मामला नहीं सुलझ सकता तो “ भगतों “ को बड़ा नागवार लगा था और वे गाली गलौज पर उतर गए थे. आज मोदी सरकार ने वही किया. हालांकि यह बेहद महत्वपूर्ण घोषणा मोदी जी ने नहीं की  बल्कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने की. मोदी जी फौजियों के साथ दिवाली मनाने गुरेज चले गए थे. राजनाथ सिंह कि घोषणा के मुताबिक़ “ भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर श्री शर्मा बातचीत करेंगे और कश्मीर कि जनता की वैध  अपेक्षाओं के को समझने का प्रयास करेंगे. “ इस घोषणा से यह साफ हो गया कि मोदी सरकार ने स्वीकार  किया है कि बन्दूक की नाल से कश्मीर की  समस्या का समाधान नहीं नहीं हो सकता  और इसके ल्लिये नेता तथा जनता में वार्ता ज़रूरी है. अब यहाँ इमानदारी से यह स्वीकार करना होगा कि मोदी सरकार इस ज़ोर आज़माइश में 19 पड़  गयी है. कश्मीर में सत्तारूढ़ गठबंधन में भा ज पा भी शामिल है और जबसे यह सरकार सत्ता में आयी है तबसे भा ज पा कि जिद्द थी कि मामला बल पूर्वक सुलझा लिया जाएगा. इसके लिए सुरक्षा बालों को छूट दे दी गयी. सुरक्षा बालों पैलेट गन का प्रयोग किया जिससे कई लोग स्थायी तौर पर अंधे हो गए. देश के किसी कोने मैं ऐसा नहीं नुआ था. बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां  हुईं जिसमें आम आदमी भी शामिल था जो निर्दोष था. यहाँ तक कि शव यात्राएं भी बाधित हुईं और उसमें शामिल लोगों से धक्का मुक्की की गयी. कहा गया कि आतंकवादी आम आदमी का छद्म रूप धर कर  में आते हैं और जनता को आतंकवादियों से सहानभूति है. अब जबकि सरकार ने वार्ता कि घोषणा की और वार्ताकार के रूप में अपना प्रतिनिधि खुफिया बुरो के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को नियुक्त किया तो इससे यह साफ़ ज़ाहिर हो गया कि कश्मीर कि इच्छाशक्ति को बंदूकों से नहीं तोड़ा जा सकता, सरकार को वार्ता के लिए कदम बढाने ही होंगे. हकीक़त तो यह है कि एक ऐसी जनता के लिए जो 1980 से लगातार गवाँती आ रही है अब उसके पास खोने के लिए कुछ रह नहीं गया है. धरती का यह स्वर्ग खून के छीटों से बदसूरत हो गया है , केसर कि क्यारियों में बारूद कि गंध बस गयी. फ़ौजिउओन पर निर्दोष लड़कियों तथा महिलाओं से बलात्कार के भी आरोप लगे. हाँ यह सही है कि जनता भी दूध की धुली नहीं है. उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों को पनाह मुहैय्या कराई और उन्हें मदद की . पकिस्तान समर्थक जनता ने भी फौजियों पर कम जुल्म नहीं किये.वार्ता के लिए उठाया गया भा ज प् यह कदम यकीनन सबके लिए स्वागत योग्य होगा, खास कर जम्मू कश्ज्मेइ कि जनता के लिए. ऐसे कदम अतीत में भी उठाये जा चुके हैं. पूर्व प्रधानमन्त्री नर्सिंग्राओ का जूमला ही  था  वार्ता के संभावनाएं असीम है. वाजपेयी जी कहा करते थे “ इंसानियत के दायरे में.” यहाँ तक कि पूर्व प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह भी कश्मीर गए थे और वार्ता कि पहल की थी. एक बार जब कश्मीर विधान सभा ने स्वायतत्ता का प्रस्ताव पास किया था र्ताब कांग्रेस ने विरोध किया था और इस प्रस्ताव कि निंदा की थी. यह तय है कि पूर्व खुफिया प्रमुख दिनेश्वर शर्मा कश्मीर कि समस्या पर गंभीरता से सोचेंगे और उसे समझने कि कोशिश करेंगे. यह 1947 से राजनितिक मसला रहा है और इसके तार ना केवल दिल्ली से जुड़े हैं बल्कि इस्लामाबाद से से भी जुड़े हैं. यही नहीं भा ज पा के महासचिव राम माधव ने भी अतीत में इसके समर्थान में कहा है .  इस नियुक्ति का मतलब है कि दिल्ली में कुछ बदल रहा है और राजनाथ सिंह भी अपना अधिकार प्रदर्शित कर्ट रहे हैं यह लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है. फिलहाल इसके नतीजों कि चर्चा करना या कुछ निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी. देश कि जनता इसके नतीजों कि प्रतीक्षा  में है. 

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