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Tuesday, December 5, 2017

बच्चों को बचायें

बच्चों को बचायें

शहर के एक बड़े स्कूल में चार वर्ष की एक बच्ची के साथ उसके शिक्षक ने बलात्कार किया। बच्ची के साथ क्या हुआ वह खुद नहीं बता सकती क्योंकि उसे अभी तक ये सब बातें मालूम ही नहीं हैं कि उसके साथ क्या हुआ? एक अबोध बच्ची के साथ ऐसी हरकत से मानवता शर्मसार है।  यह कोई ऐसी घटना नहीं है जो पहली बार हुई हो। पिछले कुछ सालों से हमारे देश भारत में जहां कहा जाता था किन यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमंति देवता: , वहां अचानक नारियों - ब​िच्चयों से लेकर बुजुर्ग महिला तक - से बलात्कार की खबरें रोजाना आ रहीं हैं। कुकर्म के इन मामलों का अगर अध्ययन करे तो लगता है कि यह हवस मिटाने के लिये नहीं किया गया है। यह एक अजीब मानसिक प्रक्रिया बनती जा रही है जहां मोह, माया, ममता ,नफासत सबकुछ समाप्त होता जा रहा है। कई ऐसे मामले सुने जाते हैं कि इस तरह की हैवानियत की शिकार बच्ची या लड़की चीखते चिल्लाते दम तोड़ देती है। ऐसा नहीं कि इस तरह की घटना अबे 20या 25 साल पहले नहींी होती थी। यह एक मनोवैज्ञानिक रोग हे जो हर काल में रहा है। फ्रायड ने इसे मूलगत पाप कहा है। सेक्स की यह भूख कभी मिटती नहीं है पर इसकी अभिव्य​क्ति इतने अमानुषिक ढंग से होनी शुरू हुई है यह एक चिंता जनक लक्षण है। यह हर क्षेत्र में हर समाज में हो रहा है।  ऐसा क्यों यह सवाल हर समझदार आदमी के जहन में अठता है। ऐसी हर घटना के बाद यही सोचने पर हम मजबूर हो जाते हैं कि आखिर इंसान इतना क्रूर क्यों हो जाते है? क्या हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां मानुष के वेश में अमानुष बढ़ते जा रहे हैं? यहां सबसे बड़ी बात हे कि हम अपनी ब​िच्चयों को ऐसे अमानुषों से कैसे बचायें? जिस स्कूल में यह घटना घटी वहां चारों तरफ सी सी टीवी कैमरे लग गये ओर सुरक्षा के कई व्यापक बंदोबस्त कर दिये गये हैं। पर क्या यह गारंटी दी जा सकती है कि ऐसा नहीं होगा। 

फोरेंसिक मनोविज्ञान के मुताबिक इक बलात्कारी चाहे वह शिक्षक हो या मजदूर, चाहे वह रिश्तेदार हो या कोई ओर करीबी जो इस तरह के कुकर्म करते हैं वे फोरेंसिक मनोविज्ञान के अनुसार घृ​णित अपराधी होते हैं। किसी बैंक को लूटने के बारे में सोचना और किसी बच्ची से बलात्कार के बारे में साचने की प्रक्रिया इक ही होती है केवल टार्गेट में फर्क होता है। अपराधी पहले योजना बनाता है ओर इक मोडस ऑपरेंडी विकसित करता है। हर चरण मे एक उत्तेजना होती है। अपराध की​ योजना बनाते वक्त , उसे अमल में लाने के दौरान ओर फिर उसके बाद भी।पुलिस से बचने की क्रिया इसे और उत्तेजक बनाती है। अगर वह पकड़ा भी जाता है तो इससे उत्तेजना कम नहीं होती ओर अगर जेल हो भी जाती है तो कई लोगों के लिये वह आगे की योजना बनाने के लिये मुफीद जगह हो जाती है। यही बलात्कारी के साथ भी होता है। बलात्कार को अंजाम देने के पहले वह टागेंट को चुनता है उसकी आदतों पर गौर करता है और फिर हमले की योजना बनाता है, अपराध के बाद बच कर निकल जाने की योजना बनाता है तब कहीं अपराध को अंजाम देता हे। इसमें भी चुनौतियां वैसी ही होती हैं जो एक बैंक लुटेरे के साथ होती हैं। बच्ची के साथ बलात्कार करने वाला अपराधी बेहद शातिर होता है , वह अपने शिकार के मानस का अध्ययन करता है ओर उसकी मानसिक ​स्थिति  का लाभ उठाकर उसके करीब जाता है। छोटी छोटी ब​च्चियां अक्सर इसकी शिकार हो जाती हैं। बच्चे असहाय हो जाते हैं क्योंकि वे बता नहीं पाते कि क्या हुआ उनके साथ। कुकर्मी इसलिये बच जाते हें। इसके लिये जरूरी है कि बच्चें की स्नेह की भूख को मां बाप मिटायें। ये कुकर्मी किसी दूसरे ग्रह के लोग नहीं हैं बल्कि हमारे आपके बीच के ही लोग हैं। बच्चें के स्वभाव में बदलाव को बरीकी से देखें, वह किसकी बात करता है कि शिक्षक या मित्र के अभिभावक  की प्रशंसा करता है। बच्चों के आचरण में बदलाव, उनके शरीर पर कोई निशान , उनका अक्सर डरा डरा सा होना या किसी खास आदमी के आने पर बच्चे का डर जाना इत्यादि कुछ लक्षण है जिसका विश्लेषण जरूरी है। 

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