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Thursday, January 11, 2018

... अब दलितों के लिये आये हैं कल तुम्हारे लिये आयेंगे

... अब दलितों के लिये आये हैं कल तुम्हारे लिये आयेंगे

भीमा कोरेगांव महाराष्ट्र का एक छोटा सा इलाका वहां दस दिन पहले एक मामूली सी झड़प हो गयी और वह फैलती हुई महाराष्ट्र की सत्ता के गलियारों से होती हुई देश भर के अखबारों की सुर्खियों में छा गयी। उस दिन से पहले देश में शायद ही कोई या बहुत थोड़े से गैर दलित होंगे जो इस इलाके को अथवा इस घटना के कारणों को जानते होंगे। भीमा गांव एक कथा है जो महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में ही सीमित है। बहुतों को मालूम ही नहीं होगा कि 1818 में यानी अबसे दो सौ साल पहले भीमा कोरेगांव में क्या हुआ था जबकि कुछ लोग इस बात पर बहस में लगे हैं कि इस गड़बड़ी के पीछे कौन थे और किन लोगों ने इसे भड़काया। बेशक , इसमें हिंदुत्व संगठनों की भूमिका का विश्लेषण किया जाना चाहिये। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण है यह जानना कि इस समय में इतने बड़े पैमाने पर हिंसा क्यों भड़कायी गयी, साथ ही मीडिया का एक वर्ग इसे इतने मसालों के साथ क्यों प्रकाशित कर रहा है। आगे चल कर भारतीय राजनीति पर इसका प्रभाव क्या होगा? 

इसका जवाब पाने के लिये हमें थोड़ा पीछे लौटना होगा। बाबरी मस्जिद तक। अयोध्या की बाबरी​ मस्जिद कम से कम 1948 तक एक एक स्थानीय मसला थी। लोग बहुत नजदीक से इस मसले को देख रहे थे और स्थानीय लोगों को इस दावे के बारे में मालूम था कि भगवान राम यहीं पैदा हुये थे। अयोध्या से दूर होते ही यह मामला विस्मृत होने लगता था ओर फैजाबाद के बाद तो संभवत: बहुत कम लोग इस बारे में जानते थे। लेकिन अगस्त 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने धर्म संसद बुलायी और एक प्रस्ताव पारित किनया कि श्रीराम जन्म भूमि  अयोध्या , काशी विश्वनाथ  तथा कृष्ण जन्म स्थन मथुरा में मंदिर बनाये जायेंगे। विश्व हिंदू परिषद  ने 25 सितम्बर 1984 को बिहार के  सीतामढ़ी से राम जन्म बूमि मुक्ति यात्रा आरंभ की और अयोध्या होती हुई 9 अक्टूबर 1984 को लखनऊ पहुंची। खबरों के मुताबिक उस दिन वहां तीन लाख लोग एकत्र हुये थे। इसी के बाद इंदिरागंदाी की हत्या हो गयी और यात्रा के बाद का कार्यक्रम रोक देना पड़ा। इसके बावजूद मंदिर - मस्जिद मसला देश बर में चर्चा का विषय बन गया। राजनीतिज्ञ और नेता दोनो अयोध्या के बारे में बातें करने लगे। संघ् परिवार के लिये यह एक मौका थ ओर इस पर किसी भी चर्चा को वे इस बात पर ले आते कि मुस्लिम समुदाय के लोग इस देश के नहीं हैं, वे बाहरी हैं। वे हमलावर हैं और उनहोंने मंदिरों को ढाहा है। इतिहासकार तथा विद्वान इस तर्क को गलत बताते रहे पर पर किसी ने नहीं सुना। बाद यह बी कहा जाने लगा कि मुस्लिम समुदाय के लोग विदेशी ताकतों के दलाल हैं। संघ ने बड़ी सफपाई से उनहें आस्तीन का सांप बना दिया। यह पूरी प्रक्रिया बहुतजिटल थी और इसे इतने संक्षेप में कहना मुमकिन नहीं है। अयोध्या ने देश के एक समाज को गैर बनाने के नये पथ प्रशस्त किये।

आजकल नहीं लिखा जा रहा है 

स्याही से कागज पर मुहब्बत

लिखा जा रहा है रक्त से 

धरती के सीने पर नफरत 

   अब यहां से आइये भीमा कोरेगांव की घटना पर। इस जंग की जयंती हल साल मनायी जती है महाराष्ट्र में। लेकिन देश के अन्य भाग में अधिकांश लोग इस बारे में नहीं जानते थे। हां, जिन लोगों को दलित राजनीति में दिलचस्पी थी वे जरूर जानते थे। आम जनता के लिये इसका कोई मूल्य नहीं था। इस साल हिंदुत्व संगठनों के उग्र नौजवानो के एक समूह ने दलितों के शां​तिपूर्ण जुलूस पर हमला कर दिया। बाद में दलितों ने भी हमला किया और यह अखबारों की सुर्खियां बन गया। मीडिया के कुछ भाग में यह कहा गया कि दलित भारतीय सेना का अंग्रेजों के हाथों  पराजय का जश्न मना रहे थे। यह भी बताया गया कि 18 वीं और 19वीं सदी में भारतीय क्षेत्र को जीतने वाली ब्रिटिश सेना में ज्यादातर दलित सैनिक थे। यह दलित समुदाय को अलग थलग करने की योजना की शुरूआत है। 

उसे दृष्टि दो ताकि वह देख सके 

कबीर , सूर , तुलसी और गालिब को

उसे मत दो हथियार , दे सकते हो तो दो

मबीर वाणी, रामचरित मानस

      अब सवर्ण समुदाय में यह कहा जा रहा है कि दलितों की मदद से ही भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी पैर जमा पायी और यहां औपनिवेशिक शासन की शुरूआत हुई। ऐसा मुसलमानों के साथ पहले किया जा चुका है मंदिर को सामने रख कर। इनका दावा है कि भारत हिुदुओं का देश हैं। सिखों को 90 के दशक में ही आतंकवादी घोषित कर दिया है इन्होंने। अब दलित हिंदु राष्ट्र के दायरे से अलग किये जा रहे हैं। चूंकि दलितों को बाहरी नहीं कहा जा सकता अइसलिये उन्हें अंग्रेजों का सहयोगी बनाकर अलग किया जा रहा है। मीडिया के कुछ भाग में बीमा कोरेगांव माले मसले हिंदू बनाम दलित कहा भी जाने लगा है। अब मुस्लिम बाहर के हो गये, इसाई औपनिवेशिक विरासत की पहचान हैं, दलित विदेशियों के मददगार हैं तो " हिंदुस्थान " में रह गये सवर्ण और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग।  

मत फैलाओ जहर 

नयी पौध विषक्त हो रही है

यह उसके खिलने का समय है 

भविष्य को बचा लो घृणा से, नफरत से   

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