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Thursday, April 12, 2018

भारत नेपाल संबंध

भारत नेपाल संबंध

 नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली पिछले हफ्ते अपनी  तीन दिवसीय भारत यात्रा पर नई दिल्ली आए ।15 फरवरी को सत्ता संभालने के बाद ओली की  यह पहली विदेश यात्रा थी और प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दूसरी  भारत यात्रा थी । अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के साथ तीन   नए समझौते हस्ताक्षरित  किए। पहला कृषि में भागीदारी , इसके साथ ही अंतर्देशीय जल मार्ग के संयोजन और भारतीय रेलवे की पटरियां काठमांडू तक बिछाया जाना शामिल है। समझौतों की संख्या देख कर ऐसा लगता है पुराने दिन अब लद  गए ।  एक वक्त था जब दोनों देशों के बीच समझौतों की लंबी फेहरिस्त होती थी।  इस बार इन तीन  समझौतों को ही  दोनों सरकारों ने काफी महत्वपूर्ण बताया है और कहा है कि  इससे दोनों देशों के बीच सम्बन्ध  और  बढ़ेंगे।  दोनों प्रधानमंत्रियों ने भारत नेपाल के बीच बनने वाली पेट्रोलियम पाइपलाइन का भी उद्घाटन किया।

     ओली  की अपने दक्षिणी पड़ोसी के देश यात्रा को अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर बड़ी सावधानी से देखा जा रहा है।  इसके दो कारण है पहला, चुनाव प्रचार के दौरान ओली के भारत विरोधी बयान और यह कहना वे  चीन से संबंध बढाने को प्रतिबद्ध हैं  और भारत पर निर्भरता   घटाएंगे साथ ही  कई बकाया मामले भी सुलझाएंगे।उनकी भारत यात्रा की लंबी अवधि से प्रतीक्षा थी । हालांकि , इसमें बड़बोलापन  ज्यादा था।  दोनों पक्षों ने विवादास्पद मसलों  को यह कहते हुए ताक पर रख दिया  की  दोनों मुल्क द्विपक्षीय रिश्तों में आशाजनक  नजरिया रखते हैं । दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने प्रदर्शित किया कि  हमारे द्विपक्षीय संबंध  पुनः पटरी पर आ गए हैं। दोनों प्रधानमंत्रियों ने मतभेदों को सामने रखा ही नहीं।  उनकी  इस मुलाकात  में  दिखावा ज्यादा था। दोनों ने द्विपक्षीय  समस्याओं पर ध्यान दिया ही नहीं।  इसके पहले के पी ओली 2016 में भारत यात्रा पर आए थे।  उस समय वह यह कहते हुए लौटे थे कि दोनों देशों में गलतफहमियां दूर हो गई हैं। उस वक्त  जब वे लौटे थे तो दोनों देशों का कोई संयुक्त बयान नहीं आया था। इस बार 12 बिन्दुओं  वाला संयुक्त बयान जारी हुआ है।  लेकिन इनमें कहीं भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय मामलों का  जिक्र नहीं है। एक सकारात्मक बात यह दिख रही है के संविधान में संशोधन ,जो इसका आंतरिक मामला है,   का संयुक्त बयान जिक्र है। हालांकि पिछली बार भी यह मामला दोनों देशों के प्रधान मंत्रियों के बीच द्विपक्षीय वार्ता में  उठा था । यद्यपि,   ओली की यात्रा से पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि इस बार दोनों देशों के बीच शांति और मैत्री समझौते पर बात होगी। क्योंकि श्री के पी ओली को  दो तिहाई बहुमत हासिल हुआ था। चुनाव प्रचार के दौरान  ओली ने लगातार कहा था कि वे  1950 के समझौते में संशोधन करेंगे क्योंकि यह नेपाल के प्रतिष्ठा के  प्रतिकूल है।  इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण है कि वे  1950 के समझौते वो फिर से डिजाइन करने के नाम पर उसे समाप्त करना चाहते थे।  श्री ओली   की यात्रा की समाप्ति पर जो बयान जारी किया गया उसमें समझौते में संशोधन का कोई जिक्र नहीं था।  जबकि,  पिछली  यात्राओं के बाद के बयानों में इसका जिक्र था।  भारत नेपाल प्रख्यात व्यक्तियों का  समूह भारत नेपाल के बीच के सभी दोतरफा  समझौतों का अध्ययन कर रहा है ताकि वह संबंधों में सुधार के लिए  दोनों सरकारों को अपना प्रतिवेदन  सौंप सके।  लेकिन सरकारी स्तर पर यदि बातचीत ना हो तो दोनों देशों के बीच के  समझौतों  में सुधार की संभावना बहुत कम है।

   दोनों मुल्कों  के बीच सीमा विवाद एक दूसरा  मसला है जिसके कारण अक्सर दोनों देशो में कई तनाव हो चुका है ।  दोनों देशों के लोगों के बीच संबंधों के लिए जरूरी है दोनों तेअफ़ के मामलों को पहले सुल-  झाया जाए जिसमें सुस्ता और कालापानी प्रमुख हैं । चार  बरस पहले दोनों देशों के बीच इस समस्या पर  विदेश सचिव स्तर पर समझौता हुआ था पर अब तक एक बार भी बातचीत नहीं हुई।  भारत आने  के पहले श्री ओली   पर दवाब था कि वे इस मामले पर बातचीत करें लेकिन वार्ता में यह मसला नहीं उठा।

   भारत और नेपाल के बीच एक और मसला है नोटबंदी का । नोटबंदी से भारत में आने वाले नेपाली नागरिकों को भारी घाटा उठाना पड़ा  है , क्योंकि  भारतीय नोट नेपाल में भी खरीद बिक्री के लिए वैध माध्यम  हैं।  नेपाली नेता और अधिकारी कई बार इस मामले को भारत सरकार के समक्ष नेपाल में पड़े भारतीय नोट को  बदल देने की मांग की पर  कुछ नहीं हुआ। श्री ओली ने  भारत यात्रा पर प्रस्थान करने से पहले  कहा था कि वे  नोटबंदी का मसला उठाएंगे पर यहां  आ  कर उन्होंने  इस पर कोई बात नहीं की।   इसी तरह कई  और मामलों , जो व्यापार और आवागमन से जुड़े थे, पर बातचीत नहीं हो सकी।  लेकिन इस मुलाकात से दोनों देशों के रिश्तो में कुछ सकारात्मक कदम  उठे  हैं,  जैसे पहली बार ऐसा हुआ है की दोनों देशों के बीच संप्रभुता के सम्मान पर  बातचीत हुई।  यही नहीं , यह मसला भी उठा कि भारत नेपाल के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देगा। दूसरी बात है कि ओली ने भारत को स्पष्ट संकेत दिया है कि वह भारत से आर्थिक कूटनीति पर संबंध केंद्रित करना चाहता है ताकि संपन्नता जैसे मसले पर भारत की मदद पा सके।  इस संदर्भ में दोनों देश राजनीतिक और अन्य  मुद्दों  को छोड़कर  आर्थिक और विकास के मसले पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

     चूँकि  भारत और   चीन  नेपाल पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए  आर्थिक विकास के माध्यम से जोर लगा रहे हैं।  पड़ोसियों से संबंध के मसले पर श्री ओली ने कहा कि नेपाल  के लिए भारत प्रमुख है साथ  ही  चीन भी।  हम पड़ोसियों से लाभ को देखते हुए आर्थिक विकास  को प्रमुखता देंगे। अपने पड़ोसियों के वैध हितों  का सम्मान करते हैं और उनके खिलाफ हम अपनी जमीन से कुछ भी नहीं होने देंगे।  कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि  श्री ओली  अपने देश के आर्थिक विकास और संपन्नता के लिए भारत और चीन से भारी निवेश की  योजना बना रहे हैं।  अब देखना है कि  श्री ओली की  चीन यात्रा  में  क्या होता है, इसी  से  इस क्षेत्र की जियो पॉलिटिक्स की भविष्य की राह निकलेगी।

 

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