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Sunday, April 15, 2018

अब गलत को गलत कहना होगा

अब गलत को गलत कहना होगा

इन दिनों हमारे देश में लगातार ऐसी घटनाएं घट रही हैं कि  लगता है  कि गृह युद्ध की स्थिति आ गई है। हम 8 साल की बच्ची  से सामूहिक बलात्कार  और फिर  उस की  निर्मम  हत्या  की घटना पर चुपचाप बैठे हैं या हिंदू मुसलमान अथवा जनजाति के समीकरण ​ि0बठाने में लगे हैं।  बलात्कार ऐसा लगता है कि पुराने जमाने की तरह युद्ध का एक हथियार बन गया है। लेकिन, कठुआ में जो हुआ वह ऐसा नहीं था। यह साफ है कि वह बच्ची वहां के हिंदुओं और गूजरों के बीच जंगल और चारागाह को लेकर लंबी लड़ाई का शिकार हुई और इसमें जुड़ गई वहां की सामाजिक स्थिति जो अरसे से जातीय अनुपात  को बदलने को लेकर उस इलाके में फैली हुई है। वह  बच्ची इसी निर्ममता का शिकार हुई है। उसे पहले पकड़ा गया फिर   नशे की दवा दी गई और तब एक मंदिर में कई लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया।  बहुतों को याद होगा बोस्निया का वह बलात्कार, जहां इरादा था की इसके बाद जो बच्चे पैदा व7े सर्बियाई होंगे। यही नहीं 1971 के बांग्लादेश के युद्ध में पाकिस्तान के पंजाब से आए सैनिकों ने लगभग दो लाख  महिलाओं से इसलिए बलात्कार किया उससे जो बच्चे पैदा होगे वे पंजाबी होंगे।  पुरुषों द्वारा   यौन अपराध अपनी ताकत को साबित करने और अपनी आबादी  को बढ़ाने के इरादे से पहले भी कई बार किया गया है।  एमनेस्टी इंटरनेशनल ने महिलाओं को युद्ध का एक ऐसा शिकार बताया है जिसे  कोई जानता नहीं ना ही  इसके लिए उसे कोई सम्मान मिलता है। हार्वर्ड के विख्यात  प्रोफेसर  होमी भाभा   ने जातीय राष्ट्रवाद के उदय  को ऐसे विचार की संज्ञा दी है जिसमें कुछ लोग यह समझते हैं कि उनका उस क्षेत्र पर   दूसरों से ज्यादा अधिकार हैं या उनकी नागरिकता ज्यादा गंभीर है।  ऐसे लोगों के पास प्रचुर आर्थिक सामाजिक और कानून अधिकार भी हें फिर भी वह दूसरों को बर्दाश्त नहीं कर पाते।   कठुआ का समाज हिंदू बहुल है   और गूजर वहां जनजातीय  समुदाय के हैं। वे  गूजरों को बराबरी का दर्जा  देने को तैयार नहीं हैं।  वह लड़की जो इस घटना की शिकार हुई वह गूजर के समुदाय की थी। वह बच्ची राष्ट्रवाद  के जहरीले प्रभाव  का  ही शिकार नहीं हुई  बल्कि भारत में चल रहे  वर्तमान वहशीपन का भी  शिकार हुई है।  इस क्रूरता को ऐसे लोगों की मंजूरी मिली हुई है जो खुद को हिंदू एकता मोर्चा का सदस्य बताते हैं।  साथ ही सरकार की लंबी चुप्पी  भी इसके लिए  जिम्मेदार है यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बहुत देर तक चुप्पी साध रखी थी।  यह क्रूरता अभी और लोगों को शिकार   बनाएगी अभी तो केवल  दलित और मुसलमान  ही इसका शिकार हुए हैं  और धीरे धीरे महिलाएं भी इस सूची में शामिल हो रही हैं।   अभी हाल ही में एक भाजपा विधायक ने एक किशोरी को अपना शिकार बनाया, हम चुप रहे।  हमने चुप रह कर आबाध वैश्वीकरण और धार्मिक हिंदुत्व को मंजूरी दे दी।  एक तरह से हमने अपने फर्ज की तरफ से आंखें मूंद लीं। हम  खुद को लोकतांत्रिक  कहते हैं और हम ने मान लिया हमारी ट्रेन,  जो निजीकरण की तरफ बढ़ रही हैं, समय पर चलेगी , हमारे बच्चों के लिए रोजगार होगा, भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। बशर्ते हम कुछ सड़कों के नाम बदल दें, कुछ मूर्तियों को गिराकर उनकी जगह नई मूर्तियां लगा दें तो हो सकता है कि भविष्य में हमें इसका लाभ मिले और हमने ऐसा किया। किसी ने यह नहीं सोचा कि  यह ज्यादा दिन तक नहीं चलने वाला। गौर कीजिए, पहले उन्होंने अल्पसंख्यकों  पर हमले किए उसके बाद दलितों पर अब महिलाएं निशाने पर हैं। नेहरु और अंबेडकर पर उंगलियां उठायी जाती हैं। लेकिन वे ज्यादा यथार्थवादी थे और साथ में थोड़ा सीनिकल भी। आजाद भारत शवों  के ढेर पर बना बना है। लगभग  20लाख शरणार्थियों  के लहू से इसकी नींव भरी गई है। हमें उस संर्घष के लिए अब तैयार होना होगा जब सही कहने के लिये दंडित होना पड़े। लेकिन हमें अब कहना होगा कि  क्या सही है और क्या गलत है।

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