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Friday, April 27, 2018

कश्मीरी आतंकवाद खतरनाक राह पर

कश्मीरी आतंकवाद खतरनाक राह पर
जम्मू कश्मीर के शोपियां में पिछले हफ्ते के आख़िर में एक मुठभेड़ में 13 आतंकी मारे गए थे।  इनमें ज्यादातर स्थानीय थे और नौजवान थे। आंकड़े बताते हैं कि घाटी में आतंकवाद में शामिल होने वाले नौजवानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।  हर तीसरे दिन एक नौजवान आतंकवादी बन रहा है। 2016 में आतंकवाद में शामिल होने वाले नौजवानों की संख्या अट्ठासी थी जो 2017 में बढ़कर  126 हो गई। यह पिछले 7 वर्षों में सबसे बड़ी संख्या है। कश्मीर में 2010 से 2015 तक लोकल आतंकवादियों की संख्या बहुत कम थी और इस पर  कट्टरपंथियों का कंट्रोल था। 90 के दशक के अंत से कश्मीर में आतंकवाद में धीरे धीरे लोकल नौजवान हिस्सा लेने लगे। अचानक इनकी संख्या बढ़ने लगी। अब जबकि हुर्रियत पार्टी अध्यक्ष बदल गए हैं ।  नए अध्यक्ष मोहम्मद अशरफ शहराई के पदभार संभालने के बाद और उनके पुत्र जुनैद के आतंकवाद में शामिल हो जाने के बाद घाटी का रुख बदल गया है। जुनैद पिता का कहना है कि उनका पुत्र कश्मीर में और कश्मीरियों के साथ हो रहे अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। उन्होंने खुद अपने बेटे को आत्मसमर्पण के लिए कहने से इंकार कर दिया। यह पहला मौका है जब हुर्रियत के बड़े नेता के परिवार के बहुत करीबी सदस्यों ने आतंकवाद का का दामन थामा। इससे वहां आतंकवाद में स्थानीय नौजवानों की संख्या तेजी से बढ़ सकती है।  क्योंकि ,पहले यह समझा जाता था की हुर्रियत के बड़े नेता नेता गिरी की मलाई चाटते हैं और अपने लोगों को आगे बढ़ाने तथा दौलत इकट्ठा करना एक काम में जुटे रहते हैं। नेतागिरी तो केवल एक पर्दा है। अब अगर किसी तरह से या किसी विशेष मौके पर जुनैद का सफाया हो जाता है तो घाटी जलने लगेगी।
फिलहाल घाटी के आतंकवाद में जो नौजवान शामिल हो रहे हैं वे कलम और लैपटॉप छोड़कर बंदूक के उठाने वाले लड़के हैं। वह अच्छी तरह जानते हैं उनके पास समय नहीं है। पिछले हफ्ते मारे गए ज्यादातर लड़के साल भर पहले ही आतंकी बने थे। पुलिस की रिपोर्ट बताती है की हाल में 16 आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया इनमें ज्यादातर नौजवान थे।  खतरनाक यह तथ्य है कि जितने युवा आत्मसमर्पण कर रहे हैं या मारे जा रहे हैं उससे कहीं ज्यादा इसमें शामिल हुए हैं। यह एक नई रुझान है और यह कश्मीरी आतंकवाद को एक नया रूप दे सकती है। इस स्थिति से आतंकित होकर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था कि "पता नहीं कि इससे दिल्ली इससे भयभीत है या नहीं है लेकिन मैं तो भयभीत हूं ।" उमर अब्दुल्ला की बात गौर के काबिल है । अनंतनाग में मुठभेड़ में शामिल कई नौ जवानों  से आत्मसमर्पण करने के लिए बार-बार अपील  के बावजूद उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया यहां तक कि उनके मां बाप ने भी अपील की पर किसी ने आत्म  समर्पण नहीं किया। उनमें से एक के  पिता के मुताबिक उनका परिवार हिंसा के खिलाफ है। लेकिन 2016 की अशांति के दौरान एक की गिरफ्तारी और उसके बाद 45 दिन की कैद ने शायद उन्हें  बदल डाला और  आतंकवाद के अंधेरे गर्त में डाल दिया।  आत्मसमर्पण की अपील को इनकार करने का यह पहला मामला है ,ऐसा नहीं है । अभी हाल में अन्य नौजवानों ने भी ऐसा किया है। मां-बाप विवश हो जाते हैं। ये नौजवान तो यह समझ कर आतंकवाद में शामिल हो रहे हैं वह आजादी की जंग लड़ रहे हैं । लेकिन ऐसा नहीं है। वह मतलबी और स्वार्थी नेताओं के हाथों में पड़ जाते हैं । उन्हें  यह मालूम नहीं  है कि आजादी एक सपना है । वे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के "डीप स्टेट " के रूप में काम करने लगते हैं । इन्हीं के माध्यम से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी भारत में आतंकवादियों को धन भेजती है ।जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने मिलकर घाटी के अभिभावकों से अपील की कि वे अपने बच्चों को आतंकवाद में जाने से रोकें और हिंसा का रास्ता छोड़ने के लिए कहें। नौजवानों की मौत सबके लिए पीड़ादायक है। उन्होंने स्थानीय लोगों से भी अपील की कि वे मुठभेड़ की जगह में जाने से बचें क्योंकि वहां अक्सर घायल होने या मर जाने की आशंका बनी रहती है । यहां तक की जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी कई बार ऐसी अपील की है लेकिन इसका असर हो रहा है या नहीं हो रहा है या आगे चल कर होगा या नहीं पता नहीं चलता है। क्योंकि ,युवा लगातार आतंकवाद में शामिल हो रहे हैं। इसके कई सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण हैं। जिनमें प्रमुख हैं मुस्लिम राष्ट्रवाद का उदय, धार्मिक विचार और सुरक्षा बलों द्वारा अपनाई जा रही कड़ी सशस्त्र नीतियां । वे खासकर इन लोगों को , जो नौजवानों को भड़का रहे हैं, यह नहीं समझा पा रहे हैं की ऐसी जंग से  कुछ हासिल नहीं होगा । चाहे जितना अंतरराष्ट्रीय दबाव हो भारत किसी भी हिस्से को अलग करने पर राजी नहीं होगा और ना स्वतंत्र घोषित करने की इजाजत देगा। आतंकवाद चाहे जितना भी प्रबल हो जाए। उधर , कश्मीर का मामला दुनिया भर में इसकी चर्चित है कि पाकिस्तान उसे मदद दे रहा है और यह है कि पाकिस्तान आगे भी ऐसा करता रहेगा।
   हमारे देश ने कई हिस्सों में आतंकवाद का मुकाबला किया है। सबसे ताजा उदाहरण तो नागा आतंकवाद है । कई दशकों तक संघर्ष के बाद उसे काबू में लाया जा सका। बहुत लोग मारे गए तब कहीं जाकर संघर्षविराम हुआ। मिजो उग्रवाद और पंजाब का उग्रवाद जिसे पाकिस्तान ने समर्थन दिया था भूलने वाला नहीं है।  भारत सरकार हमेशा से आतंकवाद से मुकाबले के लिए दृढ़ रही है। हाल में कश्मीर में जो फिर से शुरू हुआ है उसका उद्देश्य केवल पर्यटन के मौसम में आम जनता का रोजगार खत्म करना  है और उन्हें हताश कर सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर देना है। इससे हालात और बिगड़ेंगे और अलगाववाद बढ़ने लगेगा । यह आंदोलन अभी कट्टरपंथियों के कब्जे में है। सरकार को चाहिए युवा युवा वर्ग को सुविधाएं मिले और शिक्षा मिले ।

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