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Thursday, May 24, 2018

तेल की कीमतें 2019 में संकट पैदा कर सकती हैं

तेल की कीमतें 2019 में संकट पैदा कर सकती हैं

तेल की बढ़ती कीमतों से यदि सरकार ने अगर आम आदमी को कोई राहत दिलाने से इंकार कर दिया तो यह तय है कि  विपक्ष के साथ-साथ आम आदमी सरकार के खिलाफ ख्खड़ा हो जायेगा।  

2014 के आम चुनावों से एक साल पहले, भाजपा का सोशल मीडिया ग्रुप जश्न के मूड में था और मनमोहन सिंह सरकार को लगातार " धो " रहा था। भगत वृंद हर हमले को वायरल करते और जश्न का लुत्फ लेते। इनदिनों अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार जैसे स्टार उस सुपर गोल्डन जश्न को बग्हुत तेजी से भूलने की कोशिश में हैं और डरे हुये हैं कि कहीं उनदिनों की तेल वाली ट्वीट यदि किसी के हत्थे लग गयी तो यकीनन उनकी तो धुलाई हो जायेगी। उन दिनों कांग्रेस पर तंज करते हुये एक नया जुमला चला था कि "आपकी खुशी पेट्रोल की कीमतों की तरह बढ़ सकती है, क्या आपका दुख भारतीय रुपया की तरह गिर(कम) सकता है।" लेकि वक्त का पहिया अब घूम गया पूरा 360 डिग्री पर। पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें अब तक उच्चतम स्तर पर हैं। 20 मई को, पेट्रोल 84 रुपये प्रति लीटर पर बिक रहा था, जो अब तक की सबसे ज्यादा कीमत है। 22 मई को देश भर में पेट्रोल और डीजल की कीमतें लगातार नौवें दिन बढ़ीं क्योंकि तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) ने 1 9 दिन की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद उपभोक्ताओं को अंतर्राष्ट्रीय ईंधन की कीमतों में वृद्धि को निरंतर जारी रखा। यह  जून 2010 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पेश ईंधन मूल्य विनियमन की नीति की प्रभावकारिता के बारे में महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है जिसे बार बार मोदी जी तब दोहराते हैं जब उनसे कहा जाता कि उत्पाद शुल्क घटायें। इस से  एकमात्र तार्किक निष्कर्ष प्राप्त होता है कि सरकार केवल तभी हस्तक्षेप करती है जब वह राजनीतिक रूप से लाभकारी होता है। सााथ ही हो सकता है कि दबाव पड़ने पर सरकार कुछ दिखावटी कटौती कर दे क्योंकि इस साल के आखिर में तो कोई चुनाव है नहीं।  मोदी सरकार को सभी महत्वपूर्ण फैसले  2019 आम चुनावों ध्यान में रख कर करना है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व संग्रह अनुमानों के मुताबिक, सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों पर कर लगाने  से इस वित्त वर्ष के अंत तक 2.579 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कमाई हो ससकती है, जबकि ,2013 में 88,600 करोड़ रुपये का सकल राजस्व संग्रह हुआ था। 

मोदी सरकार की उत्तरदायित्व पिछली यूपीए सरकार की तुलना में कहीं अधिक है क्योंकि मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान, अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं थीं, जो आज की कीमतों की तुलना में लगभग दोगुनी हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी घरेलू खुदरा कीमतों के रिकॉर्ड  को छूने का एकमात्र कारण नहीं है। 2014 से मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में 9 गुना वृद्धि की है। एकमात्र उदाहरण है जब मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाकर 2 रुपये प्रति लीटर कर दिया था, जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होने वाले थे। 

मोदी सरकार के लिए ईंधन की कीमतें बढ़ाना प्रमुख सिरदर्द है। नौकरियों की कमी और लगभग अन्य सभी  क्षेत्रों में सरकार के कमजोर प्रदर्शन का प्रभाव भाजपा पर गंभीर हो सकता है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें और बढ़ने की संभावना है, फिर भी यह अभी खराब नहीं है। 

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