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Monday, May 14, 2018

मोदी जी के नेपाल यात्रा 

मोदी जी के नेपाल यात्रा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि भारत और विदेशों में भी एक निर्णायक व्यक्ति की है। प्रधानमंत्री जी दो दिवसीय नेपाल यात्रा कल समाप्त हुई। भारत के किसी भी नेता का नेपाल जाना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि सैकड़ों वर्षों से सभ्यता और संस्कृति का दोनों देशों में प्रगाढ़ सम्बंध रहा है। इस यात्रा में भी कई चीजें महत्वपूर्ण दिखीं। पहली तो मोदी जी की यह यात्रा घोषित तौर पर  राजनीतिक नहीं थी, इसे " धार्मिक और सांस्कृतिक " यात्रा कहा गया था। एक तरफ नेपाल की​ सरकार मालेदी जी को खुश रखने में जुटी थी दूसरी तरफ वहां की जनता इसका विरोध कर रही थी। हालांकि नेपाली मीडिया में ऐसा कुछ नहीं दिखा पर सोशल मीडिया में इसकी बाढ़ आयी हुई थी। वहां फेसबुक और ट्वीटर में अक्सर देखा जाता था कि लोगों ने लिखा कि "  ब्लॉकेड वाज क्राइम मि.मोदी " तथा " मोदी नॉट वेलकम। "  जनता चाहती थी कि मोदी 2015-16 की आर्थिक नाकेबंदी के लिये माफी मांगें। इस विरोध कने भी रंग थे। त्रिभुवन विश्वविद्यालय के झत्र 36 घंटे की भूख हड़ताल पर बैठे थे। बाकी नौजवानों ने ने रात 8 बजे काठमांडू की बत्रियां गुल करने की मांग कर रहे थे ता​कि मोदी जी देख सकें कि नाकेबंदी के दौरान काठमांडू दिखता कैसा था। विरोधकरने वाले छात्रों की एक विज्ञप्ती में कहा गया था कि" 2015 के भारी भूकम्प में 9000 लोग्का मारे गये थे और यहां की जनतता को उम्मीद थी कि भारत मदद करेगा , इसके बदले भारत ने 3 महीने की आर्थिक नाकेबंदी लगा दी। हम भारत के प्रधानमंत्री सेस्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमने इस नाकेबंदी को भूला नहीं है। " इसी तरह, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी(क्रांतिकारी माओवादी ) सहित कुछ राजनीतिक दलों ने  उनकी यात्रा के खिलाफ काठमांडू भर में विरोध का आयोजन किया था। हालांकि लोगों का विरोध मोदी जी के खिलाफ था पर उनका गुस्साा अपनी सरकार पर भी था। यह गुस्सा प्रधानमंत्री के पी ओली के चुनाव अभियान में भारत विरोधी बड़बोलेपन का नतीजा था। उन्होंने अपने भाषणों में जनता से बार बार अपील की थी कि भारत की आर्थिक नाकेबंदी को भूलेंगे नहीं। उन्होंने खुद नो ऐसा दिखाया था कि " हमेशा टांग अड़ाने वाले भारत के खिलाफ वे अपना पद तक त्याग सकते हैं।"पहली बार जब वे प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने भारत से बदला लेने के लिये चीन से सीमा समझौता किया। अब नेपाल की जनता इस तरह का विरोध प्रदर्शन कर अपने प्रधानमंत्री को ही अपमानित करना चाहती थी। 

  वैसे भी नेपाल की जनता के लिये मोदी केवल भारत के प्रधानमंत्री ही नहीं हैं बल्कि हिंदू प्रतीक चिन्ह भी हैं। इसलिये नेपाल की जनता मोदी जी को अपने देश के अलोकतांत्रिक अतीत से भी वाकिफ कराना चाहती थी। नेपाल के नौजवानों ने राजतंत्र के दौरान बहुत पीड़ा सही​ है। शाासन ने उनकी पढ़ाई लिखाई , जीवन यापन इत्यादि पर भी रोक लगा दी थी। कई पीढ़ियों तक नेपाल के नौजवान विदेशों में मज्9ादूर या भाड़े के सैनिक के तौर पर जीवन बिताये हैं। अपवादों को छोड़ दें तो कहा जा सकता है कि नेपाल के हर परिवार के एक या दो सदस्य रोजाना विदेशों में नौकरी के लिये घर छोड़ते थे और यह सिलसिला पीढ़ियों तक चला। औसतन रोज तीन नेपाली विदेशों में मरते थे।

1996 में नौजवानों का गुस्सा माओवाद राजशाही के खिलाफ भड़का। दस वर्षों में 250 साल पुरानी राजशाही ध्वस्त हो गयी। मोदी जी का आना कुछ ऐसा लग रहा था उन नौजवानों को कि नये धर्मनिरपेक्ष नेपाल में कोई हिंदुत्व का प्रचार करने आया है। नेपाली युवा चिंतित हो उठे थे। वे मोदी जी को अतीत के बिम्ब के तौर पर देख रहे थे। यही नहीं, मोदी जी की सरकार की क्षेत्रीय नीतियों की नाकामयाबी का भी यह सबूत  था। पहली बार 2014 में जब मोदी जी नेपाल गये थे उन्होंन वहां की सांविधानिक सभा की प्रशंसा में नेपाली में भाषण दिया था। भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की यह 17 साल में पहली यात्रा थी। यहां तक कि उन्होंने मधहेसियों से भी सहयोग की अपील की थी। इसके बाद धीरे- धीरे  वे प​श्चिम की ओर झुकने लगे। वे दक्षिण एशिया को एक जुट रखने में असफल हो गये। रोहिंग्या संकट में उन्हें नैतिक नेतृत्व नहीं दे सके ओर डोकलाम में बिनावजह टांग अड़ा कर खुद को असफल साबित कर दिया। 

  मोदी जी  की वर्तमान यात्रा कम से कम एक पड़ोसी को साथ रखने की चिंता से भरी यात्रा कही जायेगी। लेकिन शुरूआम में ही एक ही धर्म की बात उठाकर उन्होंने अच्छा नहीं किया। इससे नेपाल को मित्र बनाने के बदले उन्होंने उसे अपने से अलग कर दिया।     

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