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Friday, May 25, 2018

सकारात्मक एजेंडा के साथ सामने आये विपक्ष

सकारात्मक एजेंडा के साथ सामने आये विपक्ष

कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में, देश के लगभग सभी रंगों के  विपक्षी नेता उपस्थित थे। कर्नाटक विधानसभा चुनावों के साथ विपक्षी बलों को एकजुट करने में सफल नतीजे के फलस्वरूप अब  आम चुनाव में ज्यादा मोर्चे नहीं खुलने की संभावना है। लेकिन, विपक्षी नेताओं का अंदाज  नरेंद्र मोदी को आगे अपमानित करने जैसा लग रहा है क्या ? मोदी भाजपा के लिये पहली श्रेणी के वोट बटोरू नेता है और इनकी लोकप्रियता में कमी के बावजूद अभी भी काफी ताकतवर हैं। प्राथमिक वोट हथियार बने रहे और उनकी लोकप्रियता में डुबकी के बावजूद अभी भी मजबूत हो रहे हैं। जब से मोदी बीजेपी का पर्याय बन गये तब् ासे वे और शक्तिशाली हो उठे हैं। विपक्षी दल  अंततः इस वास्तविकता को समझ चुके हैं कि उनमें विभाजन के कारण ही मोदी राज्य के बाद राज्य पर फतह पाते आ रहे हैं।  इसके अतिरिक्त, इनमें से कई विपक्षी दल यह भी कह रो हैं ज्क मोदी धर्मनिरपेक्षता को चोट पहुंचा रहे हैं और साथ ही संविधान को भी आघत पहुंचा रहे हैं और लोतंत्र की हिफाजत करने वाले संस्थानों को विचलित कर रहे हैं। 

लेकिन, नरेंद्र मोदी के खिलाफ जन असंतोष के बिना भाजपा को हराने में संयुक्त विपक्ष क्या  सफल रहेगा? यही नहीं, बिना किसी व्यक्त्वि  सामने पेश किये क्या यह विपक्ष मोदी की ताकत के मुकाबले खड़ा हो सकता है ? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन्हें गठबंधन को अंकगणित  के पहले हल करना होगा।  गणना के साथ पेश किया गया है। अभी कुछ वक्त है और इसमें यह देखना होगा कि मोदी आमचुनाव समय से पहले सर्दियों में करवा लेंगे या बाद में।  अभी भी कई अनुत्तरित प्रश्न हैं। 1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ जब कांग्रेस (संगठन) सभी विपक्षी दलों के साथ मिलकर (समाजवादी पार्टी से जनता दल से लोक दल तक जनसंघ तक) एक जुट हुआ तो जनता पर असर नहीं पड़ा था।   लेकिन आपात काल के बाद  इंदिरा गांधी को उसी समूह द्वारा पराजित किया गया । राजीव गांधी के लिए, वह 1984 में 404 सीटों के साथ  सत्ता में आये लेकिन पांच साल बाद जब पूरा विपक्ष भ्रष्टाचार ण्के मसले पर एकजुट हो गया तो पराजित हों गये। अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि वह क्या मुद्दा है जिस पर सम्पर्णा विपक्ष नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक जुट होगा? अगर यह "संविधान की रक्षा" या "लोकतंत्र को बचाने" आदि की तर्ज पर होगा तो मान कर चलें कि यह सब चलने वाला नहीं है। क्योंकि , आपातकाल की अवधि के दौरान चलाने के दौरान संस्थानों को विचलित करने के आरोप भी  लगे थे।  नरेंद्र मोदी ने बड़ी चालाकी से  सत्ता का केंद्रीयकरण किया और लोतंत्र के स्तम्भों में छोटे - छोटे टुकड़े निकाल उसे कमजोर कर दिया लेकिन यह प्रक्रिया ऐसी नहीं कि साफ साफ दिखे और जनता को आकृष्ट करे। इसे समझने के लिये जनतता जबतक जागेगी तब तक बहुत देर हो चुकी रहेगी।  आम आदमी इस बात में अधिक रुचि रखता है कि सरकार उसके दैनिक जीवन, मुद्रास्फीति, मजदूरी और जीवन स्तर आदि को कैसे प्रभावित करती है। इसके अलावा, सकारात्मक एजेंडा, जैसे लोग और अपने देश और उसके भविष्य के बारे में अच्छी बातें, सुनना पसंद करते हैं। 2014 में, भ्रष्टाचार और मुद्रास्फीति के खिलाफ गुस्सा इतना ज्यादा  था कि बीजेपी ने इसका उपयोग  किया, लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि "विकास" और "अच्छे दिन" के नाम पर जनादेश मिला था। अतएव, मोदी के खिलाफ एक नकारात्मक अभियान पर्याप्त नहीं होगा, भले ही अंकगणित विपक्ष के पक्ष में हो। बेशक, मोदी की विफलताओं की गणना की जा सकती है और उनके वादे का उपयोग किया जा सकता है - लेकिन क्या वह प्रधान मंत्री के खिलाफ लहर को बदलने के लिए पर्याप्त होगा? एक और कारण है कि क्या ये मोदी विरोधी हवा को बढ़ा सकते हैं शायद नहीं। क्योंकि, इनमें से कई पार्टियां बीजेपी सरकार के खिलाफ लोगों के बीच क्रोध उत्पन्न कर उसे चुनाव जीतने के लिए उसका उपयोग करने में सफल नहीं रही हैं। मिसाल के तौर पर,उचित मुआवजे का वादा करने के बाद किसानों और उनके मुआवजे के मुद्दों को उठा नहीं रहा है। कांग्रेस को इस मोर्चे पर सबसे दोष दिया जा सकता है। 

कांग्रेस जैसी पार्टियां सोशल मीडिया और विशाल रैलियों से परे लोगों तक कैसे पहुंचेंगी? संयुक्त विपक्ष के लिए सफल होने के लिए, यह जरूरी है कि वे बल्कि  एक नकारात्मक अभियान में बदलने के बजाय मोदी के मुकाबले देश के लिए  एक सकारात्मक एजेंडा लेकर आएं, । इसके बाद उन्हें राज्यों में जमीन पर कार्रवाई करने के लिए तंत्र विकसित करने चाहिए जहां बीजेपी और मोदी के खिलाफ कुछ हद तक बात की जा सकती है। पूरी तरह से संख्याओं पर निर्भर होने से केवल प्रतिपक्ष को गिना जा सकता है और नरेंद्र मोदी को मजबूत बनाया जा सकता है। यदि विपक्ष चाहता है ऐसा ना हो तो कई रणनीतियों को तैयार करना होगा और महत्वाकांक्षी भारतीयों के लिए सकारात्मक अभियान चलाना होगा। वर्तमान शासन की असफलताओं पर जोर देने के अलावा, उन्हें अपने प्रभावशाली संख्याओं के पूरक के लिए सपनों को बेचना होगा - केवल तभी उनके पास 2019 जीतने का मौका होगा।  

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