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Wednesday, June 27, 2018

विश्वास बहाली सबसे जरूरी

विश्वास बहाली सबसे जरूरी

जम्मू-कश्मीर में पीडीपी- भाजपा गठबंधन के टूटने के बाद राज्य अधिक अनिश्चितता की ओर बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य कई कठिन दौर से गुजर चुका है और बढ़ती अशांति इसे और अधिक संकट में डुबा सकती है। स्थिति को ताकत से संभालने के  नरेंद्र मोदी सरकार के  दृष्टिकोण से राज्य में शांति नहीं कायम हो सकी। वास्तव में, कई लोगों का मानना ​​है कि आज की स्थिति 2007 से भी खराब है। जब कुछ लोग  कश्मीरियों को भड़काने और उनके खिलाफ अश्लील टिप्पणियां करने में  लगे थे तो अदूरदर्शी   सरकार ने उन लोगों को (जिनमें से कई सत्तारूढ़ भाजपा का समर्थन कर रहे हैं) रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया , तो कश्मीरियों में भारी  भावनात्मक दुराव हो गया। एक बार भरोसा टूटने   के बाद, इसे फिर से कायम करना बेहद मुश्किल हो जाता है। सरकार को तेजतर्रार या हिंसा समर्थकों के उकसावे में आने के बजाए भरोसा कायम करने , सर्वसम्मति बनाने और आत्मविश्वास निर्माण उपायों को करना  करना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि कश्मीर की अनिश्चित वास्तविकताओं को देखते हुए  देश की सुरक्षा दरकिनार कर दी जाय। भाजपा नेताओं ने अक्सर कहा है कि भारतीय सेना को राज्य में खुली छूट दे दी गयी थी। फिर भी, हिंसा को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हो सकी और उल्टे  हमारे सामने एक और जटिल स्थिति उत्पन्न हो गयी है। यह याद रखना चाहिए कि सेना का काम राजनीतिक समाधान  ढूंढना नहीं है क्योंकि उन्हें इसके लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। यह काम राजनीतिक नेतृत्व का है और यह अपना काम करने में इच्छुक देखी गयी है। भाजपा को 2019 के लिए अपनी गणना और अपने महत्वपूर्ण मतदाता वर्ग को ध्यान में न रख कर  देश के सर्वोत्तम हितों में राज्य में बढ़ती अशांति को कम करने के साधन ढूंढने चाहिए। इसे अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए "टुकड़े- टुकड़े " गिरोह जैसे शब्दों का उपयोग करने से बचना चाहिये और उन लोगों को भी  हतोत्साहित करना चाहिए जो ऐसा कह रहे हैं बेशक वे सरकार के समर्थक ही क्यों ना हों।  कहने में ऐसे शब्द कोई उद्देश्य नहीं हैं बल्कि सोशल मीडिया में भड़काऊ प्रवृत्तियों को पैदा  करने के लिए काम करते हैं। चूंकि राज्य गवर्नर के शासन के एक और कार्यकाल से गुजर रहा है ऐसे में  केंद्र सरकार को तनाव को कम करने के अवसरों पर ध्यान देना चाहिए। पहले ही बात चल  रही है कि गवर्नर का शासन में कैसे केंद्र सरकार भुजाओं के जोर वाली कायम करेगी। सरकार के लिए समझदारी होगी यदि वह औसत कश्मीरी को और अलग - थलग होने  से बचाये। वर्तमान  गवर्नर का कार्यकाल जल्द ही समाप्त हो रहा है (और उसकी अवधि को विस्तारित करने की संभावना भी नहीं है), सरकार को ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति करने पर विचार करना चाहिये  जिसके पास दक्षता और अनुभव का सही मिश्रण हो। ऐसा व्यक्ति हो जो राज्य के बेहतर प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सैन्य और राजनीतिक दृष्टिकोण दोनों की बारीकियों को समझता हो।  

सरकार जो कुछ भी तय करती है, उसे ध्यान में रखना चाहिए कि इसे पुनर्निर्माण की कठिन प्रक्रिया शुरू करने के लिए भारत के लोगों और विशेष रूप से कश्मीर (साथ ही भारत में अल्पसंख्यकों) के लिए सही संकेत भेजने की जरूरत है। खोया हुआ विश्वास, अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते अपराधों और जम्मू-कश्मीर में बढ़ते संघर्ष के साथ, सरकार इससे इनकार नहीं कर सकती है। इसे विश्वास बहाल करने और लोगों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के लिए तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है।  प्रदर्शनप्रिय सरकार को गहन संदेशों के महत्व का एहसास होना चाहिए जो भारत के सामाजिक ढांचे को  हुये नुकसान को पूर्ववत बनाने  में मदद करे।

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