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Wednesday, June 6, 2018

बेमेल शिक्षा और कौशल से बढ़ता असंतोष

बेमेल शिक्षा और कौशल से बढ़ता असंतोष
कई साल पहले एक फिल्म आई थी 3 ईडियट्स। इस फिल्म का नायक अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री के इस्तेमाल के बिना कौशल का विकास कर वैज्ञानिक बन गया। उस फिल्म के कथानक से सबक यह मिलता था कि ज्ञान हासिल करो डिग्री नहीं। आज हालात कुछ ऐसे ही हैं।
   महान दार्शनिक अरस्तु कहा करते थे कि "शिक्षा और कौशल में वही संबंध है जो गहने और विपत्ति में है। विपत्ति में गहने सदा सहारा बनते हैं। उसी तरह शिक्षा के साथ विकसित कौशल भी सहारा बनते हैं ।" लेकिन आज भारत में जो हो रहा है वह इसके ठीक विपरीत है। आज हमारे देश में इंजीनियरिंग , एम बी ए एवं शिक्षा की अन्य धाराओं में शिक्षित लोगों का एक बहुत बड़ा समूह बेरोजगार है।  वह भी ऐसे देश में बेरोजगार है जहां के नेता ताल ठोक कर कहते हैं हमारा देश तेजी से विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था का देश है। हमारे देश में शिक्षा और कौशल ऐसी ट्रेनिंग है कि वह हमारे नौजवानों को संतुलित होने से विमुख करते हैं। आज हमारी शिक्षा और कौशल हमारे छात्रों को यह नहीं समझा पा रहे हैं कि तेजी से विकसित होती व्यवस्था और बाजार के अर्थशास्त्र से कैसे निपटा जाए।
जहां तक विकास का प्रश्न है तो भारत अर्थव्यवस्था के तौर पर कितना विकसित हो रहा है यह तो नहीं मालूम लेकिन अगर आंकड़े देखें तो पता चलेगा की दुनिया कि हर 6 आदमी में एक भारतीय  है और जहां तक नौजवानों की बात है तो दुनिया के सभी नौजवानों में हर बारहवां नौजवान भारतीय है।  वह भी 25 वर्ष से कम उम्र का है । 
   विख्यात शिक्षाशास्त्री जी एन देवी के अनुसार "भारत में शिक्षा और कौशल संबंधी प्रयास एकदम विपरीत हैं।" व्हील बॉक्स के आंकडे आप अगर देखें तो पता चलेगा कि हमारे यहां पढ़े-लिखे बेरोजगारों का अनुपात 54.4 प्रतिशत है। ये आंकड़े तब और चौंका देते हैं जब यह पता चलता है कि कुल एमबीए के  61 प्रतिशत लोग और इंजीनियरिंग के 48% नौजवान बेरोजगार हैं। यह एक विशाल कार्यबल है जो हुनर के अभाव में बेरोजगार है। कुछ भी कर पाने में असमर्थ है और उन्हें लगातार कुंठा तथा निराशा घेर रही है।
  रोजगार संबंधी योग्यता आकलन करने वाली है संस्थाओं की रिपोर्ट है कि नए पढ़े-लिखे नौजवानों को बुनियादी तथ्यों का तक का ज्ञान नहीं है। इंजीनियरिंग पास नौजवान बेसिक चीजें नहीं जानते। उनमें कौशल की भयंकर कमी है। इसका कारण है अप्रचलित पाठ्यक्रम और  प्रशिक्षण का अभाव तथा पढ़ाने का दोषपूर्ण तरीका। यही नहीं, भारत में शिक्षा और कौशल दोनों बेमेल हैं। भारत में शिक्षा जगत कौशल के मानकों से अनजान है और नियोक्ताओं की अपेक्षा को पूरी नहीं कर पाते। इससे समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। यही नहीं शिक्षा और कौशल में मेल नहीं होने से समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। कौशल का उपयोग नहीं हो पाता और जहां कौशल का उपयोग होता है वह शिक्षा नहीं है । इसलिए ज्यादा पढ़े-लिखे नौजवानों को नौकरियां नहीं मिलती। जिस नौकरी के लिए वे खुद को योग्य समझते हैं उसका आवेदन करने पर निराशा हाथ आती है। इसलिए हाथ मलते हुए हुए कम शैक्षिक योग्यता वाले पदों के लिए आवेदन करने लगते हैं। मसलन एक इंजीनियरिंग ग्रेजुएट अगर इंजीनियरिंग के काम में अयोग्य हो जाता है तो वह चपरासी तक के लिए आवेदन करता है । अभी हाल में रेलवे के चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए बड़ी संख्या में बीटेक पास नौजवानों ने आवेदन किया था। इसका नतीजा यह होता है कि कम शैक्षणिक योग्यता वाले उस नौकरी से चूक जाते हैं। अक्सर सुना जाता है एम ए पास नौजवान ब्लू कॉलर जॉब के लिए अप्लाई करते हैं। नतीजा यह होता है जो लोग इस काम के लिए योग्य थे वह किनारे हो जाते हैं और उनकी जगह उच्च शिक्षा प्राप्त लोग काम पा जाते हैं । इसका नतीजा यह होता है की उच्च शिक्षा पर होने वाले निवेश का लाभांश घट जाता है और  निवेशक के लिए अतिरिक्त बोझ बन जाता है। भारत में यह निवेश सब्सिडी के रूप में होता है और यह अतिरिक्त बोझ करदाताओं के पैसे से उठाया जाता है । 
  आज की दुनिया तकनीकी भौतिक और जैविक क्षेत्रों के आपसी तालमेल और संभावनाओं से भरी है । जो देश इन स्थितियों में अपनी जगह बनाना चाहता है उसे थोड़ा गतिशील होना पड़ेगा। भारत की सबसे बड़ी ट्रेजडी है कि वह अपनी शिक्षा और कौशल के समक्ष आ रही चुनौतियों में ढिलाई दिखा रहा है और इसी से वैश्विक संदर्भ में पिछड़ता जा रहा है।
भारत दुनिया का सबसे नौजवान देश बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। दुनिया के कई देश लगातार उम्र दराज लोगों से या बुजुर्गों से बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में वहां श्रमिकों की कमी हो रही है और उनकी जगह भरने के लिए नौजवान श्रमिकों को लाया जाता है। इसलिए दुनिया भर की जनसांख्यिकी प्रोफाइल भारत की कामकाज करने वालों की आबादी के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
   आने वाले दिनों में जब कामकाज में ऑटोमेशन होगा तो नौकरियों में नुकसान होगा। लेकिन यह ज्यादा चिंताजनक नहीं है। इससे ज्यादा चिंताजनक है इसके बाद जो अस्थिरता तथा अनिश्चितता फैलेगी उस से कैसे निपटा जाए । एक तरफ तो ऑटोमेशन मानवीय प्रतिभा और कल्पना की उपज है और दूसरी तरफ इससे जो कार्य बल बेकार होगा उससे कैसे निपटा जाएगा । हमारे यहां शिक्षण संस्थान नहीं डिग्रियां बांटने के केंद्र खुल गए हैं। सोचिए ऐसी शिक्षा से क्या फायदा जो आपको रोजगार के लिए आवेदन करने के योग्य भी ना बना सके । दूसरी तरफ कौशल विकास के संस्थान जैसे आईटीआई वगैरह हैं उन्हें इस नजर से देखा जाता है मानो वे शिक्षण संस्थान नहीं है। यह जरूरी है कि हम अपने नौजवान में औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दें  क्योंकि लगातार बदल रही दुनिया में केवल रोजगार में बने रहना जरूरी नहीं उसमें कामयाबी हासिल करना भी जरूरी है।

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