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Wednesday, July 11, 2018

भारत अब अत्यंत दरिद्रों का सबसे बड़ा देश नहीं रहा

भारत अब अत्यंत दरिद्रों का सबसे बड़ा देश नहीं रहा
हमारा देश न जाने कब से दरिद्रों का देश रहा है। इसीलिए उनकी भावनाओं को आघात न लगे भगवान के भी ऐसे नाम गढ़े गए हैं जो दरिद्रों के हक में हों जैसे, दरिद्र नारायण, दीनबंधु इत्यादि। लेकिन पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब अत्यंत दरिद्रों का देश नहीं रहा। लेकिन इस खबर की  को लेकर खुशी जाहिर करने की बजाए इसे बहुत ज्यादा तरजीह नहीं दी गई। यह नहीं देखा गया हमने गरीबी मिटाने की 70 वर्ष पुरानी जंग का कुछ हिस्सा जीत लिया है। एक अमेरिकी थिंक टैंक ब्रूकिंग्स के अनुसार अब भारत से इस मामले में नाइजीरिया आगे हो गया है।ब्रूकिंग्स के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 7 करोड़ 30 लाख बेहद दरिद्र लोग हैं जबकि नाइजीरिया में आठ करोड़ 70 लाख ऐसे लोग हैं। यह वृद्धि अचानक नहीं हुई है बल्कि धीरे-धीरे हुई है। 1997 में देश के 42% लोग अत्यंत गरीबी में जी रहे थे अभी हाल में हान्स रोजलिंग के शोध के अनुसार 2017 तक यह अनुपात घटकर 12% हो गया यानी महज 20 वर्षों में 2 करोड़ 70 लाख लोग अत्यंत दरिद्रता से उभर कर बाहर आ गए। भारत के पड़ोसी देश जैसे बांग्लादेश ,पाकिस्तान और नेपाल भी इसी लीक पर चल रहे हैं।  यहां भी विकास हुआ है और यह भी 2030 तक अत्यंत दरिद्रता से उबर जाएंगे। चीन में अत्यंत दरिद्र लोग बिल्कुल नहीं हैं। वहां गरीबी महज 3% हैं।  ब्राजील भी 2030 तक उबर जाएगा और गरीबी से ऊपर उठ जाएगा। एक गरीब तब अत्यंत दरिद्र कहा जाता है जब वह डेढ़ सौ रुपए रोजाना से काम कमाता है। भारत में गरीबी मिटाने की नीतियों  की आलोचना होती रही है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि उनसे लाभ हुआ है और लोग बेहद गरीबी से ऊपर उठ गए हैं।
       काम के बदले अनाज कार्यक्रम जिसे बाद में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना का नाम दिया गया उससे लाभ हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में अनाज उपलब्ध होने लगा है। अपर्याप्त भंडार और विलंब से भुगतान के साथ साथ राशन की दुकानों की बहुतायत से यह कार्यक्रम नाकाम काम हो गया। 1983 में ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी योजना की शुरुआत हुई जिसके तहत हर भूमिहीन व्यक्ति को साल में सौ दिनों के रोजगार की गारंटी दी गई। इसके साथ-साथ और भी कई कार्यक्रम तैयार किए गए जिससे अनुसूचित जाति, जनजाति तथा बंधुआ मजदूरी से मुक्ति को बल मिला । 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम बना जिसमें 2009 में संशोधन कर उसका नाम महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम रखा गया। इसके अलावा बहुचर्चित कृषि ऋण माफी ने भी गरीबी दूर करने में अपनी भूमिका निभाई। यह सारी योजनाएं राज्य स्तर पर कारगर साबित हुईं। लेकिन भयंकर प्रचार और चुनाव पूर्व वर्ष होने के कारण कुछ ऐसा प्रदर्शित किया गया यह सब भारतीय जनता पार्टी के काल में हुआ है और नरेंद्र मोदी द्वारा दी गई योजना का यह परिणाम है।  यह सही नहीं है। क्योंकि भारत जैसे विशाल देश में बहुत कम समय में जादुई तरीके से गरीबी दूर नहीं की जा सकती। मोदी जी अपने पूर्ववर्ती नेताओं के किए का लाभ उठा रहे हैं । उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को जारी रखा है । उसके साथ ही आधार को जोड़कर उन्हें आर्थिक मुख्यधारा में शामिल कर लिया । उदाहरण के लिए कह सकते हैं कि मोदी जी ने मनमोहन सिंह की योजना को अपनाकर अपनी पीठ ठोक ली।
    अब मोदी जी के बाद जो लोग आएंगे वह भी इसी पथ का अनुसरण करेंगे कोई दूसरा रास्ता नहीं है। भारत ने जो लाभ हासिल किया वह आर्थिक विकास का परिणाम था। जैसे- जैसे विकास हुआ गरीबी घटती गई । 1993- 94 और 2009- 10 के बीच गरीबी घटी है। 2013 में अरविंद पनगरिया और मेघा मुकीम ने अपने शोध पत्र में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है। उन्होंने कहा है कि 2004 -5 तथा 2009- 10 के बीच हुए विकास से गरीबी घटी है। यद्यपि हमें बहुत दूर चलना है ।अभी भी  हम कई देशों से पीछे हैं । अभी भी हमारे देश में 7 करोड़ 30 लाख लोग दरिद्रता में जी रहे हैं। यानी हमारे देश के गरीबों की आबादी थाईलैंड, फ्रांस और इंग्लैंड से ज्यादा है। फिर भी, गरीबी घट रही है लेकिन मंजिल अभी बहुत दूर है।
   गरीबी को आंकने के पैमाने विशेषज्ञों के साथ बदलते रहे हैं। गरीबी को मापने के तरीके नए-नए उपाय सुझाते रहे हैं और साथ ही दूर करने के उपाय भी । भारत में गरीबी दूर हो रही है लेकिन दोषदर्शी अभी भी गरीबी को लेकर ही पड़े हुए हैं। अच्छा हो ,उनकी बातों को नजरअंदाज कर दिया जाए।

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