CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, July 18, 2018

बर्बर होता हमारा समाज

बर्बर होता हमारा समाज
जिस समाज के संस्कार में "अहिंसा परमो धर्मः" का उपदेश है  वह समाज लगातार हिंसक और बर्बर होता जा रहा है। एक ऐसा देश जहां औसतन हर तीसरे दिन एक निर्दोष को भीड़ द्वारा पीट- पीट कर मार डाला जाता है । पिछले 2 महीनों में 20 लोगों को पीट-पीटकर मार डाला गया। कहीं बच्चा चोरी की अफवाह उड़ती है तो कहीं गौ मांस बेचे जाने की। सोशल मीडिया में इस तरह की अफवाहें फैलती हैं और फिर भीड़ पागल हो जाती है। पिछले शनिवार को कर्नाटक के बीदर में एक इंजीनियर को इसलिए पीटकर मार डाला गया कि उसके खिलाफ बच्चा चोरी की अफवाह थी । यही नहीं महाराष्ट्र के धुले में सोशल मीडिया के जरिए ही अफवाह फैली और स्थानीय लोगों ने 5 लोगों को पीट-पीटकर मार डाला । यहां से हजारों किलोमीटर दूर त्रिपुरा में  एक आदमी को इसी अफवाह के कारण मार डाला गया। यानी ऐसी वारदात एक क्षेत्र में नहीं देश भर  में हो रहीं हैं। यह सब घटनाएं सोशल मीडिया पर बच्चा चुराने की अफवाह फैली के बाद ही हुईं। देश के 8 प्रांतों में विगत 2 महीनों में 20 लोगों की हत्या की जा चुकी है। इन सब के पीछे अफवाहों की भूमिका खास रही है।इसका कारण ही भीड़   पर कोई कार्रवाई नहीं किया जाना।  रिपोर्ट के मुताबिक भीड़ द्वारा मारे जाने के 15 मामलों में हुई 27 हत्याओं के पीछे कई कारण हैं । पहला कारण है कि इसमें में एक बाहरी आदमी का शामिल होना ,दूसरा अंधेरे में बाहर निकलना और अनजान रास्ते से जाना, रास्ता पूछने के लिए किसी से बात करना और बच्चों को प्यार से चॉकलेट देना इत्यादि । सर्वे के मुताबिक जहां यह घटनाएं घटी हैं वह पिछले 3 महीनों में बच्चा चोरी कोई घटना नहीं घटी है। इसके पहले साल भीड़ ने जिन लोगों को मारा उनमें अधिकांश घटनाएं गौ हत्या की थी और अचानक यह प्रवृत्ति बदल कर बच्चा चोरी की अफवाहों में बदल गई।  सर्वे के मुताबिक 97 प्रतिशत घटनाएं 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद घटी है और 25 जून 2017 तक इन घटनाओं में मारे जाने वाले 25 लोगों में 21 अल्पसंख्यक समुदाय के थे।                 लेकिन अचानक इस अपराध का रुख बदल गया और विगत एक वर्ष में जो लोग मारे गए उनमें किसी धर्म विशेष के लोग नहीं थे । इससे साफ जाहिर होता है राजनीतिक दल और खास राजनीतिक विचारधाराओं का समर्थन करने वाले लोग झूठी अफवाहों पर बिना सोचे समझे विश्वास कर लेते हैं । ध्यान   देने लायक बात है कि पिछले 10 वर्षों में शिक्षा और रोजगार के मौके नहीं बढ़े जबकि इंटरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ गया । बेरोजगार , शिक्षित , अर्धशिक्षित तथा अशिक्षित लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा समय गुजारते हैं और नौजवानों को विशेषकर बेरोजगार नौजवानों को अफवाहें तैयार करने और उन्हें फैलाने यह मशीन या कहे तंत्र का हिस्सा बनाना सरल है । अब क्योंकि सोशल मीडिया पर इंस्टैंट मैसेजिंग एप्लीकेशंस हैं जो अफवाहों को फैलने और फैलाने का जरिया बन रहे हैं इसलिए जरूरी है कि इन पर कानूनी शिकंजा कसा जाए। अभी हाल में वाट्स एप ग्रुप के एडमिन को कुछ सुविधाएं मिली हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है । अभी वाट्स एप की खबरों या तस्वीरों अथवा वीडियो के स्रोत का सही- सही पता लगाना बड़ा कठिन है।
    अपराध मनोविज्ञान के अनुसार भीड़ के बर्बर और हिंसक होने के कई कारण हैं। कानून हाथ में लेकर किसी को आनन-फानन में अपराधी घोषित कर उसे दंड देने की इस प्रक्रिया का मुख्य कारण आम आदमी का प्रशासन और न्याय व्यवस्था पर घटता भरोसा है और साथ ही इनका डर भी कम होना है।
       2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी हिंदुत्व के नाम पर गौ रक्षा की आड़ में का दौर शुरू हुआ। हिंदू राष्ट्र और गाय की राजनीति के तहत यह सब शुरू हुआ। भीड़ ने मान लिया भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, इसलिए घटना के बाद आसानी से बचा जा सकता है। लोगों ने इसका लाभ उठाना शुरू कर दिया । अभी हाल में  कुछ गिरफ्तारियां हुईं हैं इनमें 25% से भी कम लोग दसवीं तक पढ़े थे 20% लोग प्राइमरी तक पढ़े थे और बाकी कभी स्कूल गए ही नहीं । सभी लोग घटना के समय नशे में थे और या तो दिहाड़ी मजदूर थे अथवा बेरोजगार नवयुवक महाराष्ट्र के सहायक पुलिस निरीक्षक के अनुसार गांव में शिक्षा गरीबी के कारण सरकारी तंत्र और समाज के खिलाफ गुस्सा भड़कता है यहीं दबा हुआ गुस्सा भीड़ की हिंसा के रूप में हमारे सामने आता है।
       आंकड़े बताते हैं हमारे देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी 15 से 64 वर्ष की आयु के लोगों की है । काम करने के योग्य या जनसंख्या का अधिकांश भाग बेकार बैठा है और हमारी सरकारी इन्हें देश के निर्माण के लिए सही दिशा में ले जाने की बजाय यूं ही छोड़ रखी है ,जिससे इनका गुस्सा भड़कता है और वह भीड़ की शक्ल धारण कर हिंसक घटनाओं को अंजाम देता है। यह राजनीतिक तंत्र असफलता का सबूत है और देश के लिए खतरनाक है। जिस सोशल मीडिया को अफवाह फैलाने के लिए सरकार छोड़ रखी है क्यों नहीं उसी सोशल मीडिया को जागरूकता फैलाने के काम में लगाने की कोशिश करें। लेकिन पिछले दो महीनों में कई बड़े नेताओं के ट्वीट और सोशल मीडिया पर संदेशों का सर्वेक्षण करें तो उनमें से किसी भी नेता ने पीट-पीट कर मार डालने वाली घटनाओं के खिलाफ जोरदार ढंग से बोलने की कोशिश नहीं की है। उल्टे हाल में केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने झारखंड में एक  मांस के व्यापारी को पीट-पीटकर मार डालने वाले अपराधियों का सम्मान किया । ये घटनाएं सब बताती हैं कि हम आजादी के 70 साल के बाद भी सभ्य समाज नहीं बन सके और जयंत सिन्हा जैसे हार्वर्ड पढ़े मंत्री भी ऐसी बर्बरता को हवा दे रहे हैं। इसका स्पष्ट अर्थ है हमारी राजनीति हिंसक और अपरिपक्व है। इसे रोकने के लिए एक तरह से नए सांस्कृतिक परिवर्तन की जरूरत है।हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार कोकहा कि ऐसी वारदात रोकने के लिए सरकार सख्त कानून बनाये ताकि अपराधियों में कानून का डर पैदा हो।भीड़ तंत्र की खतरनाक गतिविधियों को सामान्य चलन नहीं बनने दिया जा सकता। लेकिन जब मन्त्री इस चलन को प्रोत्साहित करें तो क्या कानून लागू हो सकता है। 

0 comments: