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Friday, July 20, 2018

कानून से कुछ नहीं होगा

कानून से कुछ नहीं होगा
गुरुवार को संसद को संबोधित करते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने देश में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डाले जाने की घटनाओं की निंदा की और इसके लिए सोशल मीडिया पर झूठे समाचार और झूठी  सूचनाओं को जिम्मेदार बताया। लेकिन उन्होंने कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी । उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया के ऑपरेटरों से अनुरोध किया है कि हुए इस मामले पर नियंत्रण के लिए कुछ व्यवस्था करें।
इसके पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस के विरुद्ध कानून बनाने की सिफारिश की थी।कोर्टने कहा था कि राज्य सरकारें इस पर नियंत्रण रखने के लिए हर जिले में सुपरिटेंडेंट स्तर के एक अधिकारी की नियुक्ति करें । यही नहीं तुरत प्राथमिकी दर्ज की जाए और फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से 6 महीने के भीतर इस पर फैसला किया जाए। साथ ही भीड़ द्वारा पिटाई के शिकार व्यक्ति को मुआवजा दिया जाए।
अदालत के आदेश के साथ एक समस्या है। वह खास तौर पर उस आदेश से नहीं जुड़ी है बल्कि उससे जुड़ी दो कमजोरियों से संबद्ध है। पहली कि कोई भी कोर्ट किसी भी कानून को लागू नहीं कर सकता है और ना ही उसकी निगरानी कर सकता है।चाहे कितना भी कठिन कानून हो वह बेअसर हो जाता है तथा धीरे धीरे आदर तथा साख खो बैठता है। अब अगर हर अपराध के लिए अलग से विशेष कानून बने और उसे लागू करने के लिए कठोरतम व्यवस्था हो तो साधारण कानून अपराध के रोकथाम में अपना असर खो बैठेंगे। इसका साफ अर्थ है कि हर कानून के लागू करने के लिए बर्बर व्यवस्था हो और इससे सरकारी तंत्र को अपराध करने की छूट मिल जाएगी तथा भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा।
      सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की राज्यों और केंद्र में कानून और व्यवस्था के तंत्र अप्रभावी हो गए हैं और अदालत की सीधी निगरानी के बगैर कोई और उपाय नहीं है। जिससे आम आदमी न्याय पा सके। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट कानून और व्यवस्था के पहरुआ नहीं हो सकते सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे निर्देश हैं जिसका अभी तक पालन नहीं किया जा सका है। खास तौर पर 2009 में कोर्ट ने सभी गैर कानूनी धार्मिक स्थलों को तोड़ देने का आदेश दिया था लेकिन उसे आज तक लागू नहीं किया गया। यहां तक कि कई बार अदालत की पीठ ने सरकार के अधिकारियों को कार्रवाई की चेतावनी दी। इसके पहले 2006 में प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधार का आदेश दिया था लेकिन उस पर कान नहीं दिया गया । कई मामले और हैं जिस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका स्पष्ट अर्थ है कि केवल आदेश दे देने भर से कुछ नहीं होता जब तक उसे लागू करने वाला तंत्र कोई कार्रवाई ना करे। उल्टे ऐसा करने से कोर्ट का सम्मान घटता जाता है।
      भीड़ द्वारा की गई हिंसा तब तक नहीं खत्म होगी जब तक बुनियादी कानून के तहत  उस पर कार्रवाई ना हो ।ये लक्षण बताते हैं कि हमारे कानून व्यवस्था लागू करने के तंत्र और विधिक प्रणाली को जिस तरह से काम करना चाहिए उस तरह से नहीं कर पा रहे हैं। जब तक इसमें सुधार नहीं होगा तब तक लोग कानून को अपने हाथ में लेते रहेंगे। यही नहीं इसके लिए मीडिया भी दोषी है। भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार दिए जाने की घटना को पूरी तरह से हिंदुत्व के रूप में पेश किया जाना पूरी तरह गलत है। इससे दो सरल निष्कर्ष हासिल होते हैं । पहला पुलिस ,कानून और न्यायिक प्रणाली में सुधार किया जाए । कड़ा कानून बन सकता है लेकिन उसे लागू कौन करेगा और जब वह लागू नहीं होगा तो जनता ठगी सी महसूस करेंगे। दूसरा, जरूरी है कि पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रखा जाए । यही नहीं पूरे देश की सामूहिक मानसिकता नैतिकता और मनुष्यता में परिवर्तन के लिए देशव्यापी प्रयास शुरू हो वरना कानून से कुछ नहीं होने वाला।

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