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Tuesday, July 24, 2018

सड़कों को ज्यादा जानलेवा बनाते हैं राजनीतिक दल

सड़कों को ज्यादा जानलेवा बनाते हैं राजनीतिक दल
मानसून सत्र के दौरान संसद की कार्यवाही को देखकर लग रहा है हर बार की तरह इस बार भी यह सत्र हंगामे की भेंट चढ़ जाएगा। कुछ भी सकारात्मक नहीं हो सकेगा। गुरुवार को मॉब लिंचिंग के दौरान गृह मंत्री के बयान से नाराज हो कांग्रेसी बाहर निकल गए। अविश्वास प्रस्ताव के दिन लोकसभा अध्यक्ष को कई बार कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। तीन दिन में दो  दिन का हश्र देखकर यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि आगे क्या होगा ?  अगर आगे ऐसा ही होता है तो लंबित पड़े विधेयकों को इस बार भी निपटाया नहीं जा सकेगा और जनता का पैसा यूं ही बर्बाद हो जाएगा । विधेयकों में मोटर वाहन संशोधन विधेयक बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसका संबंध सीधे आम जनता से जुड़ा हुआ है या या कहें लोगों की जिंदगी से जुड़ा हुआ है। आंकड़े देखेंगे तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। हाल में आए आंकड़ों के अनुसार 2017 में सड़क के गड्ढों की वजह से 3600 लोग मारे गए। कोलतार की काली सड़कों पर गिरा खून गाड़ियों के काले टायरों ने चाट लिया । 2016 में 17 के मुकाबले आधे लोग मरे थे। अगर इस संख्या की तुलना आतंकवाद से मरे लोगों की संख्या से की जाए जानकर हैरत होगी। 2017 में महज 803 लोग आतंकवादियों के हाथों मौत के घाट उतारे गए जिनमें नक्सलियों के हाथों मारे गए लोग भी शामिल हैं। इस लिहाज से देखें तो निर्दोष लोगों की जान लेने में सड़कों के गड्ढे आतंकवाद से ज्यादा बड़ी समस्या हैं। यह हालत तब है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा करते हैं कि देश में सड़कें बनाने का काम बहुत तेजी से चल रहा है । दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी थी तो उन्होंने शपथ लेने के बाद ही वादा किया था कि राज्य की सभी सड़कों को सुधार दिया जाएगा और गड्ढे पाट दिए जाएंगे। उत्तर प्रदेश को सड़कों के गड्ढे से मुक्त राज्य घोषित किया जाएगा। लेकिन ,आंकड़ों के अनुसार सड़क पर के गड्ढों से उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मौतें हुईं। 2017 में 987 लोग इसकी भेंट चढ़ गए। यह किसी भी राज्य में सड़क के गड्ढों से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है।  महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है। यहां 2017 में 726 लोगों की मौत हुई जबकि 2016 में 329 लोग मारे गए थे। भाजपा शासित राज्यों में सड़क के गड्ढे आने वाले दिनों में राजनीतिक मुद्दा बनते जा रहे हैं । अभी हाल में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने विरोध स्वरूप मंत्रालय के कार्यालय के सामने के फुटपाथ तोड़ दिये। हालात कुछ ऐसे हैं आम लोग गड्ढों को भरने के काम में जुट गए हैं। महाराष्ट्र में  खासकर मुंबई में नौजवान सोशल मीडिया पर गड्ढे वाली सड़कों को लेकर अभियान चला रहे हैं । 
      हरियाणा और गुजरात में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। सड़क पर गड्ढों के कारण होने वाली मौतों के मामलों में यह दोनों राज्य क्रमशः तीसरे और चौथे नंबर पर हैं। 2016 में इन दोनों राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं थी। लेकिन 2017 में मौतों के आंकड़े से पता चलता है कि हरियाणा में 2017 में  522 और गुजरात में उसी वर्ष 228 लोग मारे गए थे। प्रधानमंत्री के लिए यह एक चुनौती है।  क्योंकि वह खुद गुजरात के हैं और पीएम बनने के पहले अरसे तक गुजरात के  मुख्य मंत्री भी रहे हैं। यही नहीं  गुजरात का विकास मॉडल उनके प्रधानमंत्री बनने के कई कारणों में से एक है। प्रधानमंत्री की योजना है कि 2022 तक 80 हज़ार किलोमीटर सड़क बना देंगे ।मतलब, रोजाना 22 किलोमीटर सड़क बनेगी। लेकिन, जिस तरह गड्ढे बढ़ते जा रहे हैं उससे यह सवाल सामने आता है कि आखिर इन सड़कों की क्वालिटी क्या है?
      सड़कों के गड्ढे इन दिनों हमारे देश में राष्ट्रीय समस्या बन गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में इन गड्ढों से होने वाली दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या पर खासी चिंता जताई है और केंद्र से कहा है कि इस पर तुरंत कदम उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आतंकी हमलों से ज्यादा लोग अगर सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं और वह भी खासकर गड्ढों की वजह से तो हालत सचमुच भयानक हैं। 
    जहां तक सड़क में गड्ढों का सवाल है तो उसके लिए सरकारी अधिकारियों में व्याप्त करप्शन और लापरवाही मुख्य रूप से जिम्मेदार है। लेकिन सड़क पर चलने वालों की असमय मौत के लिए केवल अधिकारी ही जिम्मेदार नहीं हैं। इसके लिए राजनीतिक दल भी जिम्मेदार हैं।  सड़क निर्माण प्राधिकरण और नगर पालिकाएं भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। रखरखाव में लापरवाही भी एक कारण है। ऐसे में कोई दुर्घटना हो जाए उसके लिए सम्बद्ध अधिकारी पर कार्रवाई करने से संबंधित यह जो कानून पारित करने की जरूरत है वह हो नहीं पा रहा है। क्योंकि, संसद में हंगामा के कारण कोई काम नहीं होता है। मोटर वाहन संशोधन विधेयक में अधिकारियों पर जुर्माना लगाना का प्रावधान है। लेकिन यह विधेयक पास हो तब ना। सड़क की खराब डिजाइन और रखरखाव तथा अन्य समस्याओं से निपटने के बजाय अगर संबद्ध अधिकारी पर भारतीय दंड संहिता के तहत मामला दर्ज हो परिस्थिति तेजी से सुधरेगी।
     खबर है इस मसले को लेकर कई सामाजिक संस्थाओं ने प्रधानमंत्री को लिखा भी है और अनुरोध किया है की मोटर वाहन संशोधन विधेयक को लागू किया जाए। लोकसभा में पास होने के बाद यह राज्यसभा में अटका पड़ा है और इस बार की जो स्थिति है उससे तो लगता है कि फिर लटका ही रह जाएगा। इसकी एक वजह यह भी है कि सरकार की दिलचस्पी में कमी के साथ साथ आम आदमी भी ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा है। उसके लिए यह कोई मसला ही नहीं है। यही कारण है कि ना सरकार ना जनता और न ही मीडिया इसे कोई तरजीह  दे रही है।

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