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Wednesday, September 12, 2018

तेल के उत्ताल से जनता बेहाल

तेल के  उत्ताल से जनता बेहाल
सच दिनोंदिन क्रूर होता जा रहा है। 2008 की जुलाई में कच्चे तेल की कीमत 132 डॉलर प्रति बैरल थी और उस समय भारत में तेल की औसत कीमत 50 रूपये  62 पैसे प्रति लीटर थी। जनवरी 2016 में कच्चे तेल की कीमत 30.33 डॉलर प्रति बैरल हो गई और उस समय तेल की औसत कीमत 59 रुपए 99 पैसे प्रति लीटर थी। कीमतों का यह एक  उदाहरण है। क्योंकि कच्चे तेल की कीमत लगभग 75% गिरी जो 132 डॉलर प्रति बैरल से 30 दिसंबर 53 डॉलर प्रति बैरल हुई लेकिन तेल की कीमत देश में 18% बढ़ गई। एक दूसरा उदाहरण देखिए। मई 2014 में कच्चे तेल की कीमत 108 डॉलर प्रति बैरल थी और उस समय भारत में तेल की औसत कीमत 72 रुपए 14 पैसे थी। भारत 2018 में 75.35 डॉलर प्रति बैरल की दर से तेल खरीद रहा है और 8 सितंबर 2018 को दिल्ली में 80 रुपए 38 पैसे प्रति लीटर और मुंबई में 87 रूपए 70 पैसे प्रति लीटर पेट्रोल बिका और कोलकाता में इसका मूल्य 83 रुपए 30 पैसे था। तेल की कीमतों का यह कैसा क्रूर मजाक है। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक लतीफा चल रहा है वह है" जीडीपी बढ़ रहा है यानी गैस, डीजल और पेट्रोल की कीमत बढ़ रही है।" यही नहीं, एक और लतीफा चल रहा है ,"जन्मदिन की बधाई देते हुए  कहा जा रहा है , आपकी खुशियां पेट्रोल की कीमत की तरह बढ़ें और आपका गम रुपए की कीमत की तरह लगातार कम हो।" डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरती कीमत और तेल की बढ़ती कीमत में कहीं कोई अंतर्संबंध  है तो यह कि  कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि का प्रभाव वित्त व्यवस्था पर होता और रुपए गिरने का प्रभाव डॉलर के लिए है ।भारत अपनी जरूरतों का 83 प्रतिशत तेल आयात करता है और कहा जा रहा है कि डॉलर की बढ़ती कीमत से आयात महंगा हो गया है। ऐसा तब होता है जब लाई जाने वाली वस्तु  की कीमत घटती हो और जिस चीज को लाया गया उस से उत्पादित वस्तु की कीमत बढ़ती हो। लेकिन यहां तो टैक्स के कारण ऐसा हो रहा है । तेल की कीमतों से संबंधित आंकड़े देखें। फकत 2017 - 18 में केंद्र और राज्य सरकारों ने सिर्फ पेट्रो उत्पादों से 5. 53 लाख करोड़ की आय की थी। यानी रोजाना 1,515 करोड़ रुपयों की आमदनी केवल पेट्रोल उत्पादनों से हुई थी। इनमें राज्यों ने 573 करोड़ और केंद्र ने 942 करोड़ रोजाना बटोरे थे। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों की लेवी की आय भी शामिल थी। 2014 -15 से 2017- 18 के बीच केंद्र और राज्य सरकारों ने 18 लाख 23 हजार 760 करोड़ रुपए एकत्र किए थे। इसमें राज्यों ने 7.19 लाख करोड़ और केंद्र ने 11.0 4 लाख करोड़ रुपए उगाहे थे। उगाही की यह राशि मांग के बढ़ने और कीमत के बढ़ने से और बढ़ती गई। 2014 -15 में 3,32,619 करोड़ों रुपए से यह राशि बढ़कर 2017 -18 में 5,53,013 करोड़ रुपए हो गई।  सिर्फ तेल उद्योग से सरकार की आय में आश्चर्यजनक 166 प्रतिशत वृद्धि हुई और यह वृद्धि केवल 4 साल में हुई। यही नहीं, लेवी की  वृद्धि से सीमा शुल्क ढाई गुना बढ़ गया और आबकारी शुल्क 99,184 करोड़ रुपयों से बढ़कर दो लाख 29 हजार 19 करोड़ हो गया। कीमत  बढ़ने - घटने के फार्मूले भी दिलचस्प हैं । कच्चे तेल की कीमत बढ़ने और डॉलर की कीमत गिरने से भला हो केंद्र सरकार का राजस्व 2014 15 और 2017- 18 के बीच 12.44 लाख करोड़ रुपयों  से बढ़कर 19.47 लाख करोड़ रुपया हो गया और राज्यों का राजस्व 15. 91 लाख करोड़ से बढ़कर 25.02 लाख करोड़ हो गया।
     पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत घटाने  के लिए  उन्हें  जीएसटी के तहत लाने कि लगातार मांग हो रही है। कहा यह जा रहा  है कि जीएसटी के तहत आने से अन्य टैक्सों की  दर घट जाएगी। लेकिन यहां प्रश्न उठता है कि राजस्व में घाटे को कैसे पूरा किया जाएगा। इस वर्ष राज्यों ने लेवी से 2. 09 लाख करोड़ कमाया है। अब राजस्व का घाटा राज्य कैसे पूरा करेंगे और घाटा यदि केंद्र द्वारा पूरा किया जाता है तो वह कौन सा जादू है जिससे कीमतें कम हो जाएंगी। यह पूरा मसला अहेतुक राजनीतिक बड़बोलेपन में फंसा हुआ है। क्योंकि आर्थिक मसलों पर सरकार का रुख राजनीतिक प्रतिबद्धताओं पर निर्भर करता है। सरकार का कहना है कि इसने सब्सिडी लगभग खत्म कर दी है और उससे जो बचत हो रही है उसे ढांचे को सुधारने  तथा  क्षेत्रों में विकास के लिए लगाया जा रहा है। बेशक केंद्र सरकार का खर्च 1.6 लाख करोड से बढ़कर 2.6  लाख करोड़ हो गया है और अगर कुल खर्चों को इसमें जोड़ दिया जाए तो यह राशि 16. 63 लाख करोड़ से 22.17 लाख करोड़ हो गई है। वास्तविकता यह है कि तेल से होने वाली आय मुद्रा संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है। पेट्रो राजस्व का केंद्रीय कर राजस्व में 17% हिस्सा है और राज्यों के कर राजस्व में 8%  यह है की बड़ी बड़ी बातें जो होती हैं उनके लिए धन टैक्स से आता है और ऐसे कुछ टैक्स हैं  जिसे देने के लिए उपभोक्ता मजबूर हैं। सार्वजनिक वाहन की दलील लुभावनी है लेकिन ऐसे देश में यह किस तरह संभव होगा जहां औसतन 10 हजार लोगों पर 4 बसे हैं।

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