CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, September 28, 2018

इसबार अयोध्या का फैसला

इसबार अयोध्या का फैसला
2019 में राजनीतिक चक्रवात पैदा करने का सूत्र सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या संबंधी फैसले से निकलता नजर आ रहा है । सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने गुरुवार को फैसला दिया कि मस्जिद में नमाज पढ़ने इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है। अदालत ने व्यवस्था दी कि 1994 के इस्माइल फारूकी से जुड़े संबंधी फैसले को बड़ी पीठ को प्रेषित करने की ज़रूरत नहीं है।सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से 1994 के फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अशोक भूषण इस दलील को यह कहते हुए खारिज  कर दिया कि 1994 का निर्णय आरोप के संदर्भ में था। न्यायमूर्ति भूषण ने मुख्य न्यायाधीश की ओर से फैसले को पढ़ते हुए कहा कि मस्जिद के संबंध में पूर्ववर्ती आदेश इस्लाम से जुड़ा नहीं है और यह सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के अधिकार कैद संदर्भ में है। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती आदेश का अयोध्या पर अंतिम  फैसले से कोई  संबंध नहीं है इसलिए इसे बड़ी पीठ के  संयोजन की कोई ज़रूरत नहीं है। चूंकि पूर्ववर्ती आदेश केवल अधिग्रहण से रोकने से संबंधित है इसका ज़मीन के मालिकाने से कोई लड़ना देना नहीं है। तीन जजों की पीठ इस मामले पर सुनवाई जारी रखेगी और 29 अक्टूबर को अपना फैसला देगी।
   यद्यपि न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर ने अन्य जजों से असहमति जाहिर करते हुए कहा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अटूट हिस्सा है इस बात पर विस्तृत विचार होना चाहिए और इसके लिए संविधान पीठ के गठन की आवश्यकता है ? उन्होंने कहा कि धर्म के लिए क्या अनिवार्य है इसका जिक्र इस्माइल फारूकी मामले में हो चुका है लेकिन इस संबंध में धार्मिक ग्रंथों का सहारा नहीं लिया गया है। अतएव इस मामले पर विस्तृत  पुनर्विचार की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले का प्रभाव इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले पर भी है और शिरूर मठ केस के अनुरुप इस पर विचार की ज़रूरत है।
    1994 में डॉ. इस्माइल फारूकी के आवेदन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के  पांच जजों की पीठ ने कहा था कि मस्जिद इस्लाम धर्म के रीति रिवाज का अटूट हिस्सा नहीं है। जजों ने कही नमाज़ तो कहीं पढ़ी जा सकती है इसके लिए मस्जिद कोई ज़रूरी नहीं है । डॉ. फारूकी ने  विवादित ढांचे के चदुर्दिक 67.7 एकड़ भूमि के अधिग्रहण को चुनौती दी थी।  विडंबना देखें कि भाजपा शासित राज्य हरियाणा में खुले में नमाज़ पढ़ने में बाधा पहुंचाने के मामले में मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि खुले में नमाज़ पढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। इसे केवल मस्ज़िद में ही पढ़ा जाना चाहिए।
     यह फैसला अयोध्या मामले को फिर आरम्भ कर देगा और फैसले का समय 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को बदल सकता है। नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में  2014 से राम मंदिर का वादा कर रहे हैं। अब आने वाले दिनों में अयोध्या को लेकर राजनीति गरमायेगी। बाबरी मस्जिद कांड के बाद जो सबसे खास बात हुई वह थी कि भारतीय समाज के ताने बाने बिगड़ गए। हालांकि , देश में हिन्दू - मुस्लिम तनाव सदा से रहा है पर बाबरी मस्जिद ढाहे जाने के बाद से राजनीतिक शब्दावली में साम्प्रादायिक हिंसा धर्म के साथ - साथ जाति में बदल गयी। भाजपा ने बड़ी आसानी से समाजवादी पार्टी और राजद जैसे  दलों को पराजित कर दिया। हिन्दू वोट बैंक बनाने का पार्टी का सपना धीरे-धीरे साकार होता दिख रहा है। 2004 और फिर 2009 में कांग्रेस के हाथों पराजित होने के बाद भाजपा ने सत्ता में आने के लिए हिन्दू हृदय सम्राट का पल्लू थाम लिया। 2017 में उत्तर प्रदेश चुनाव में मुख्यमंत्री के रूप में किसी को सामने के बजाय ने योगी आदित्य नाथ को लाने का फैसला किया। तय है कि राम मंदिर पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा था और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने " लोक कल्याण संकल्प पत्र" जारी किया था।
      पार्टी को इसका लाभ मिला पर विगत चार वर्षों में सियासी नज़ारा बदल गया और भाजपा के सामने नई  चुनौतियों आ गईं। पार्टी ने 2014 में "अच्छे दिन " की घोषणा की थी पर वह जुमला साबित हो गया। पार्टी ने 2014 में कांग्रेस पर जो आरोप लगाए थे वही लौट कर इनपर भी लगने लगे। शायद उन्हीं मामलात को दुबारा ठीक करने के लिये पार्टी 2018 में कई दलों का साथ छोड़ दिया। नरेंद्र मोदी सरकार अपनी सफलताओं की एक सूची प्रकाशित करने वाली है पर इसे तैयार करना उसे थोड़ा मुश्किल लग रहा है। पहले पार्टी अपनी क्षमता - योग्यता सिद्ध करने के लिए  पांच साल मांगती थी लेकिन अब वह 2022 तक कि मोहलत मांग रही है। लेकिन मतदाता अनमने से लग रहे हैं।
अब अयोध्या पर यदि कोई " अच्छा" फैसला आ जाता है नरेंद्र मोदी सरकार के लिये अच्छा अवसर आ सकता है। चूंकि पार्टी की विचारधारा के मुताबिक अयोध्या मामला आस्था से जुड़ा है इसलिए इसका राजनीतिक लाभ समाप्त नहीं होता। उधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी नरम हिंदुत्व को अपनाते हुए आगे बढ़ रहे हैं  इसलिए भाजपा को कोई मजबूत मुद्दा चाहिए। यही कारण है कि भाजपा के कुछ नेता कहते चल रहे है कि अगर कोर्ट का फैसला अनुकूल नहीं आया तो अध्यादेश का रास्ता भी अपनाया जा सकता है। अब , सुप्रीम कोर्ट शीघ्र निर्णय के पथ प्रशस्त कर रहा तो राम मंदिर के चतुर्दिक राजनीति सुगबुगाने लगी है।

0 comments: