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Tuesday, September 4, 2018

शिक्षक शिक्षण और शिक्षा

शिक्षक शिक्षण और शिक्षा
आज शिक्षक दिवस है। अगर इसके राजनीतिक स्वरूप को अनदेखा कर दें और सिर्फ शिक्षा पर बात करें जो इसका उद्देश्य है ज्यादा उचित होगा।  शिक्षा, शिक्षण और शिक्षक आपस में जुड़े हुए हैं । शिक्षक के बिना शिक्षण और शिक्षण के बिना शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती। शिक्षा शब्द संस्कृत के ‘शिक्ष्’ धातु से  बना है और इसका   अर्थ है ज्ञान प्राप्त करना। अंग्रेजी का  एजुकेशन शब्द असल में लैटिन भाषा का  शब्द है, जिसका  अर्थ है “आंतरिक ज्ञान का  विकास।  लेकिन यह विकास कैसे होगा ? क्या आधुनिक विश्वविद्यालयों खासकर भारत के विश्वविद्यालयों में शिक्षण की सुविधा है? हमारा देश भारत दुनिया के 5 शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और यहां काम करने वालों की संख्या यानी 15 से 64 वर्ष के बीच के लोगों की संख्या 86.10 करोड़ है। इस आबादी के मद्देनजर यह जानना जरूरी है भारत में भविष्यत् विकास के लिए शिक्षा क्यों आवश्यक है। हमारे देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों के एक तिहाई शिक्षकों के पद खाली हैं। भारत में विश्वविद्यालयों के छात्रों की कुल संख्या लगभग 3 करोड़ 66 लाख है। लेकिन  हमारे देश के विश्वविद्यालय दुनिया के 100 शीर्ष विश्वविद्यालय में कहीं स्थापित नहीं हैं। हमारे देश के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस का  रैंक दुनिया के विश्वविद्यालयों में 420 वां  है । हमारे देश के विश्वविद्यालयों का स्तर लगातार गिरता जा रहा है । 2014 में सर्वोच्च 328  रैंक था जो 2015 में 341 हो गया और 2016 में 354 तथा 2017 में 397 पर पहुंच गया। यह रैंक विश्वविद्यालयों के शोधपत्रों के आधार पर तय होते हैं।  कितने शोधार्थियों के शोध पत्र दुनिया के प्रभावशाली पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं और कितने शोधार्थियों द्वारा उन शोधों का हवाला दिया जाता है। अकादमिक शोध में प्रोफेसरों या यह कहें विश्वविद्यालय शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पढ़ाने के अलावा ये शिक्षक शोध में छात्रों को प्रवृत्त करते हैं । लेकिन हमारे देश भारत में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 5,606 पद खाली हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने 23 जुलाई 2018 को लोकसभा में यह जानकारी दी। देश के सर्वोच्च वरीयता प्राप्त शिक्षण संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कुल 2,802 शिक्षकों के पद खाली हैं । यह संख्या लगभग 34% है । 
      सुकरात   के मुताबिक संसार के सर्वमान्य विचार मस्तिष्क में स्वभावतः निहित हैं, उन्हें प्रकाशित करना ही शिक्षा है। अरस्तू का मानना था कि स्वस्थ मन और शरीर के सृजन ही शिक्षा  है। महात्मा गांधी की धारणा थी  कि शिक्षा  छात्रों के शरीर, मन और आत्मा में निहित सर्वोत्तम शक्तियों के सर्वांगीण प्रकटीकरण  है। इन सब में शिक्षक की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ।  विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की खाली जगह के कारण शिक्षा प्रभावित हो रही है । 15 - 20 वर्षों से विश्वविद्यालयों को नजरअंदाज किया जा रहा है । विश्वविद्यालयों में नए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है और शिक्षा की गुणवत्ता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। पहले जो अस्थाई शिक्षक हुआ करते थे उनके पास समय और जिम्मेदारी दोनों थी। क्योंकि उनकी सेवा सुरक्षित थी । लेकिन आजकल सारी व्यवस्था अनुबंध के शिक्षकों पर आधारित है। अनुबंध के शिक्षक की सेवा स्थाई  नहीं है तदर्थ तौर पर नियुक्त शिक्षकों का विश्वविद्यालयों से लगाव नहीं होता । सरकार का कहना है कि शिक्षकों की बहाली विश्वविद्यालयों द्वारा नियंत्रित होती है  और मंत्रालय तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग केवल इसकी निगरानी करते हैं। भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 23 जुलाई 2018 को लोकसभा में कहा विश्वविद्यालय चूंकि  स्वशासी संस्थान हैं इसलिए शिक्षकों के खाली पदों को भरना उनका कर्तव्य है।
          लेकिन अब यहां आती है बात  पैसों की।  शिक्षकों की नियुक्ति के लिए  पैसे जरूरी हैं। सरकार का कहना है उसके पास इसके लिए धन नहीं है ,इसलिए एक लाख या डेढ़ लाख रूपय महीने वेतन पर शिक्षकों की बहाली के बदले विश्वविद्यालय अनुबंध पर 4 या 5 शिक्षकों की बहाली कर लेते हैं । पश्चिमी देश उच्च शिक्षा पर बहुत ज्यादा खर्च करते हैं। आंकड़े बताते हैं की 2014 के सकल घरेलू उत्पाद का 5.68 प्रतिशत इंग्लैंड में 5 .22% अमरीका में  यहां तक कि नेपाल में 4.71% उच्च शिक्षा पर खर्च किया गया। जबकि, भारत में यह वह 4.13 प्रतिशत था । यही नहीं भारत में विश्वविद्यालय के  छात्रों की संख्या इन देशों से बहुत ज्यादा है। भारत सरकार को उच्च शिक्षा पर खर्च को बढ़ाना चाहिए और शोध पर ध्यान देना चाहिए।
      विख्यात शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार "ज्ञानार्जन की  कला शिक्षण-माध्यम से ही विकसित होती है। शिक्षण-प्रक्रिया के कई सिद्धांत हैं। जैसे क्रिया के माध्यम से सीखना, निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करना,अभिरुचि के अनुकूल समझ विकसित करना, उपलब्धताओं में से आवश्यकता  क्षमता के अनुकूल चयन करने की योग्यता विकसित करना , वैयक्तिक खूबी को उभारना इत्यादि ।" यह सारा कार्य शिक्षक ही करते हैं। शिक्षकों की अनुपस्थिति में शिक्षा का क्या होगा इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
   रूसो के अनुसार  मनुष्य , प्रकृति और वस्तु से  सीखता है । उचित शिक्षक के अभाव में  हम आज  प्रकृति और अपनों  से दूर होते जा रहे हैं । महज  भौतिकवाद पर  हमारा ध्यान  केंद्रित होता जा रहा है। मोह ,माया ,कोमलता, नफासत यह सारी चीजें खत्म होती जा रही हैं। यह शिक्षा का ह्रास है।  इस  ह्रास के लिए शिक्षकों की क्वालिटी और उनकी संख्या में कमी जिम्मेदार है।

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