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Monday, December 24, 2018

सावधान ! आपकी हर सांस पर सरकार की नजर है

सावधान ! आपकी हर सांस पर सरकार की नजर है

जी हां अब आपका कंप्यूटर सिर्फ भौतिक रूप में आपका है लेकिन उसमें सुरक्षित सभी डाटा सरकार की निगाहों में है । सोवियत संघ के जमाने में एक कहावत चलती थी कि आपके सोने का कमरा केजीबी की नजर में है। आज लगभग वही बात हमारे देश में है। सरकार ने 10 सरकारी एजेंसियों को यह दे दिया है कि वह आपके कंप्यूटर को इंटरसेप्ट करें और सभी व्यक्तिगत डेटा की समीक्षा करें । गृह मंत्री राजनाथ सिंह के विभाग द्वारा जारी यह आदेश अत्यंत विवादास्पद है। इसने  अपने प्रभाव के कारण आधार को भी पीछे  छोड़ दिया। देश में व्यक्तिगत निजता की वकालत करने वाले लोगों में इसे लेकर काफी चिंता है। सरकार के आदेश के मुताबिक है 10 एजेंसियां जिनमें इंटेलिजेंस ब्यूरो ,नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट, सेंट्रल बोर्ड आफ डायरेक्ट टैक्सेज, डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, सीबीआई ,नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी और रॉ तथा केवल जम्मू कश्मीर ,उत्तर पूर्व एवं  असम में डायरेक्टरेट आफ सिगनल इंटेलिजेंस इसमें शामिल है। इन्हें  यह अधिकार दिया गया है कि वह देश के भीतर किसी भी कंप्यूटर में एकत्र आंकड़ों देख सके तथा उनके द्वारा भेजे गए और प्राप्त किए गए किसी भी आंकड़े को बीच में ही देख सकें और उस पर रोक  सकें। सरकार के आदेश में यह भी कहा गया है जो व्यक्ति कंप्यूटर के प्रभार में होगा या फिर इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर होगा जिसके नेटवर्क पर कई कंप्यूटर चल रहे होंगे वह जांच एजेंसियों को मदद करने के लिए बाध्य है वरना उसे 7 वर्ष की सजा हो सकती है।
         इस आदेश के दूरगामी प्रभाव को देखते हुए कई सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्षी दल सरकार पर हमले भी करने लगे हैं । कांग्रेस के अहमद पटेल ने यह प्रश्न उठाया है कि फोन और कंप्यूटर इत्यादि की यह निगरानी क्यों? वह भी बिना किसी रोक के ! यह अत्यंत चिंताजनक है। एजेंसियों द्वारा इसके दुरुपयोग की पूरी आशंका  है। पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि भारत ओरवेलियायी  राज्य में बदल रहा है। कई और नेताओं ने सरकार के इस कदम की आलोचना की और भविष्य में इसके दुरुपयोग की आशंकाओं पर चिंता जाहिर की।
          यहां सवाल है कि यह आदेश हमारे लिए क्या मतलब रखता है । यानी हमारे रोजाना की जिंदगी में इसके क्या अर्थ हैं? कुछ भी नहीं । क्योंकि देश की दस बड़ी जांच एजेंसियों को एक व्यक्ति की जासूसी करने पर लगाए जाने  जैसे इस आदेश से आम जनता में बेचैनी हो सकती है । पिछले कुछ वर्षों से डिजिटल निजता पर बात चल रही है और इस अधिकार को अक्षुण्ण रखने की मांग की जा रही है। क्या जनता इसे स्वीकार कर लेगी। यह आदेश एक तरह से देश में आपात स्थिति की याद दिलाता है- ना कुछ कहो ,न कुछ सुनो। जनता की जुबान पर ताला जड़ देने की यह कोशिश है । इस आदेश के जारी होते ही आपके कंप्यूटर, लैपटॉप, टेबलेट और यहां तक कि फोन के डाटा के एक-एक बाइट सरकार की निगाहों में आ गया है या आ जाने का खतरा है। एक नहीं दस - दस एजेंसियों को यह अधिकार देकर सरकार ने ना केवल व्यक्तिगत निजता पर हमला किया है बल्कि अगर कुछ गलत होता है तो उस विशेष व्यक्ति की साख पर भी प्रभाव पड़ेगा। इस आदेश का एक और गलत प्रभाव होगा कि इसने किसी विशिष्ट तथ्य या स्थिति की बात नहीं की है बल्कि सभी कंप्यूटरों की कभी भी निगरानी का आदेश दे दिया है। यही नहीं आदेश में जो शब्द कंप्यूटर का इस्तेमाल हुआ है वह बड़ा ढीला ढाला  है। आदेश में सीधे कंप्यूटर लिख दिया गया है और उसके तहत इस डिजिटल युग में कई चीजें आती हैं यहां तक कि आपका मोबाइल टेलीफोन भी। जिसका कोई अलग से उल्लेख नहीं है। यानी अब अगर आप टेलिफोन करते हैं तो डर है कि सरकार आपकी बातें सुन ले। कभी इमरजेंसी के जमाने में ऐसा हुआ करता था। इससे जिस हालात के पैदा होने का डर है वह हमें चीन   में कम्युनिस्ट शासन कि याद दिलाता है। जहां कहते हैं के हर कमरे की दीवारों में माइक्रोफोन लगा रहता था और आपकी फुसफुसाहट  भी सुनाई पड़ती थी। यह नागरिकों के निजता के अधिकार का खुल्लम खुल्ला हनन है।
       

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