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Thursday, December 27, 2018

धरती का बिछौना और आकाश का ओढ़ना

धरती का बिछौना और आकाश का ओढ़ना

थोड़ी देर से ही सही भारत में सर्दियां शुरू हो चुकी हैं। लगभग, हर जगह तापमान 10 डिग्री के नीचे है और इसका प्रभाव सब पर है, चाहे वह बड़ा हो या छोटा ,गरीब हो या अमीर। लेकिन अमीरों को थोड़ी राहत है क्योंकि उनके पास ओढ़ने बिछाने और पहनने के लिए प्रचुर कपड़े हैं रहने के लिए घर है और गर्मी पाने के अन्य के साधन भी है मतलब रूम हिटर इत्यादि इत्यादि। लेकिन गरीबों के लिए मौसम हमेशा विपत्ति दे कर आता है , चाहे वह सर्दी हो या तेज गर्मी। जो लोग दिन और रात सड़कों, फुटपाथों या फिर परित्यक्त पड़ी नालियों ,मंदिरों की सीढ़ियां  और भी कई जगह  अपनी जिंदगी गुजारते हैं उनके लिए कुछ नहीं है ।यह मत भूलिए ,अभी और भी लोग हैं जिनकी पीड़ा, जिन का दुख ना हम बोल सकते हैं, ना जानते हैं  और ना सुना गया है।  इस साल अभी तक शीतलहर से मरने वालों की संख्या अखबारों में नहीं आई है।  बहुत बड़ी संख्या में लोग  रैन बसेरा में सोते हैं और यह स्थिति घर विहीन आबादी के बारे में बहुत कुछ बताती है। इन  लोगों के साथ जो बच्चे होते हैं उनमें प्रतिरोध क्षमता कम होती है और वह कम वजन के होते हैं जिसके कारण सर्दियों के शिकार होकर मर जाते हैं । गरीबी बेरोजगारी और गिरते स्वास्थ्य  व खराब मानसिक स्थिति इत्यादि के कारण सर्दियों के प्रभाव से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाती है। लगता है कि तंत्र ,हालात और माहौल के बाद अब मौसम भी गरीबों का दुश्मन होता जा रहा है। गर्मी में तपता हुआ एक गरीब  सोचता है कि कब बारिश आएगी और थोड़ी राहत मिलेगी।  जब बारिश आती है तो वह इसके जाने का इंतजार करता है कि सर्दियां आए तो कुछ कपड़े इत्यादि मिलें। लेकिन भयानक  सर्दी में फिर गर्मी की कल्पना मन में उभरने लगती है। गरीब न गर्मी में ठीक से रह पाता है ना बरसात में ना सर्दी में। ऐसा नहीं कि यह हालात बदले नहीं जा सकते।  बेघरबार लोगों के लिए एक विस्तृत नीति और सोच के अभाव के कारण ऐसा नहीं हो रहा है। कई कल्याणकारी योजनाओं से कुछ ही लोग लाभ पाते हैं । एक जमाना था जब सरकार रात में अलाव का इंतजाम करती थी और इसके आसपास सिमटकर  गरीब  सर्दियों में अपना जीवन गुजार लेते थे। इससे उनके प्राणों की रक्षा हो जाती थी ।   अब तो सरकार के लिए सब्सिडी में कटौती का मुद्दा महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि पैसा नहीं बचेगा तो विकास का काम कैसे होगा? शहरों को खूबसूरत कैसे बनाया जा सकता है ?फुटपाथ पर रहने वाले  नागरिकों या बेरोजगार ग्रामीण मजदूरों की चिंता किसे है ? यह सरकार के आगे गैर जरूरी है। दरअसल ठंड से ज्यादा यह मामला गरीबी से जुड़ा है, भूख और कुपोषण से जुड़ा है। पुराने समाज के रिश्ते और उनकी सुरक्षा खत्म हो गई है।  नए समाज का ढांचा भी पूरी तरह बना नहीं है कि वह लोगों को सुरक्षा दे सके । सरकारी कार्यक्रम की अजीब दास्तां है। इसमें सामाजिक संस्थाएं जो परंपरागत रूप से सेवा कार्य में लगी हैं वह आपस में लड़ने , शोषण और लूट में भागीदार बनने का तंत्र बन जाती हैं।  ऐसे किसी तंत्र का विकास नहीं किया जा सका जो बखूबी समाज की संस्थाओं को उनके परंपरागत आधार से जोड़ सकें । गरीबों के उत्थान के लिए जो सरकारी नीतियां बनती हैं उनमें तालमेल का अभाव है। हमारे देश में अगर उदार अर्थव्यवस्था लागू करनी है तो उसके साथ साथ सामाजिक सुरक्षा के तंत्र विकसित करने होंगे जिससे समाज के सबसे गरीब लोगों को बुनियादी जरूरतों के सामान  मुहैया कराया जा सकें। बेशक, कई शहरों में रैन बसेरा हैं और वहां लोग रहते हैं । लेकिन जो लोग रहते हैं उनकी भी हालत बहुत खराब है। इसके कई कारण हैं। कुपोषण और निम्न प्रतिरोध क्षमता ही नहीं रैन बसेरों में चोरी और उठाई गिरी के कारण हालत और खराब हो जाती है । जो लोग इनमें रहते हैं उनमें बहुत बड़ी संख्या बंद पड़ी मिल कारखानों के गरीब मजदूरों की है। ये लोग छोटे-छोटे काम करके जीवन बसर कर रहे हैं। इनमें से बहुत बड़ी संख्या में लोग अपराधियों तथा ड्रग्स बेचने वालों के हाथ लग जाते हैं और वे या तो ड्रग्स की खेप इधर-उधर करने में फंस जाते हैं या चोरी करने मारपीट करने अथवा भीख मांगने जैसे कामों में लगा दिए जाते हैं । अलबत्ता हर शहर में कुछ लोग या समुदाय ऐसे हैं जो इन गरीबों की मदद के लिए सामने आते हैं। कंबल, दवाइयां ,खाने के सामान इत्यादि मुहैया कराते हैं। लेकिन ऐसा सबके लिए नहीं होता।  यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर आदमी के लिए छत होनी चाहिए फिर भी इतनी बड़ी आबादी में सबके लिए घर बनाना एक दुष्कर कार्य है और कह सकते हैं लगभग असंभव है ।  बढ़ती सर्दी और दूसरे हवा  में घुला जहर जिस में हम सांस लेते हैं इसकी दोहरी मार पड़ती है। हालात दिनों दिन बिगड़ते जा रहे हैं और जब तक सरकार तथा आम जनता इस शर्मनाक हकीकत प्रति जागरुक नहीं होगी और सामूहिक स्तर पर अपनी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे  तब तक सुधार नहीं हो सकता।

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