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Sunday, December 30, 2018

इस बार क्या कर सकते हैं कांग्रेस और भाजपा

इस बार क्या कर सकते हैं कांग्रेस और भाजपा

यदि इस बार के विधानसभा चुनाव के परिणामों से कई संदेश आते हैं तो यह तय है कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ऐसे अनजाने क्षेत्रों में पैर रखेंगे जिसके बारे में किसी को अनुमान नहीं है।
एक तरफ जहां कांग्रेस अपने को बहुत ताकतवर महसूस कर रही है वहीं दूसरी तरफ वह गठबंधन के बगैर साधन विहीन है और  पुराने नेताओं पर उसकी निर्भरता  काम करने के पुराने तौर-तरीकों की ओर ले जाएगी। यही नहीं वैचारिक तौर पर भी उनमें पुरानापन दिखेगा । मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी से तालमेल नहीं होने के कारण कांग्रेस बहुत ही मामूली अंतर से विजयी हो सकती है। इतना ही नहीं कांग्रेस फिर पुराने नेताओं के निर्देशन में चली जाएगी। इसके फलस्वरूप आने वाले दिनों में कांग्रेस बहुत अच्छा परिणाम नहीं हासिल कर सकेगी।
         देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की खूबी है कि वह लंबी पराजय के बाद भी उभरकर आ जाती है। पार्टी के अध्यक्ष द्वारा मंदिरों के दौरे हिंदुत्व की लहर और जातीयता की बहस का जवाब है। बेशक उसकी कथित धर्मनिरपेक्षता  की खिल्ली उड़ाई जाती है और उसकी  आलोचना की जा रही है लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस का समर्थन किया है। अभी हाल में हमारे एक पाठक मधुसूदन मसकारा ने जवाहरलाल नेहरू के जनेऊ पहन कर कुंभ स्नान की तस्वीर राहुल गांधी को ट्वीट की है। जो लोग कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं उनको यह जवाब है। इन सब के बावजूद अगर ऐतिहासिक रुझान को देखें पता चलेगा बहुत दिनों से सत्तारूढ़ दल  को लगातार दूसरा मौका नहीं मिला है। मनमोहन सिंह इसके अपवाद हैं। उन्हें दूसरी बार भी सत्ता में आने का अवसर मिला था। अब कांग्रेस पार्टी कैसे विजयी होती है वह केवल चुनावी वायदों पर निर्भर नहीं है बल्कि बेचैन मतदाताओं को विश्वास दिलाने पर भी बहुत ज्यादा निर्भर है।
       दूसरी तरफ भाजपा सत्तारूढ़ है। हालांकि भाजपा के कार्यकर्ता उत्साह पैदा नहीं कर पाए। जिसका कारण व्यवस्था विरोधी भाव भी था और काफी प्रचार के बावजूद भाजपा विधानसभा चुनाव में जीत नहीं सकी। दरअसल 2014 में पार्टी ने यूपीए सरकार के उच्च पदों पर भ्रष्टाचार को प्रचारित कर सत्ता में आई । भ्रष्टाचार का यह प्रचार अन्ना हजारे द्वारा चलाए गए आंदोलन के कारण सामने आया । भ्रष्टाचार एक ऐसा मसला था जो हर भारतीय के दिल को छू गया। नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी ताकत थी उनकी व्यक्तिगत साख। उनके बारे में लोगों को भरोसा था कि वह भ्रष्ट नहीं हैं और ना उन्हें भ्रष्ट किया जा सकता है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा उनकी साख पर लगातार हमले, खासकर राफेल सौदे को लेकर ,उनके भ्रष्टाचार के बारे में जो बात प्रचारित की गई उससे लगने लगा कि भाजपा सरकार भी भ्रष्टाचार के लांछन से मुक्त नहीं है। इससे विपक्ष हो यह उम्मीद हो गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि  भी लोगों की मन में धुंधली की जा सकती है। भाजपा ने मोदी को विकास पुरुष के रूप में प्रचारित कर चुनाव जीता था लेकिन विपक्ष के प्रचार के कारण इस पर प्रश्न चिन्ह लग गया। 
   वस्तुतः मध्यप्रदेश में पार्टी के मतों का हिस्सा कांग्रेस से सिर्फ 0.1% था।  इन तीन हिंदी भाषी प्रांतों में चुनाव हुए भाजपा हार गयी। अब उसे मतदाताओं की अपेक्षाओं की अनुरूप अपने में सुधार लाना होगा। "राम" से ज्यादा "काम" पर ध्यान देना होगा। उसे ऐसे काम करने पड़ेंगे जिस में सचमुच विकास होता हुआ दिखे। अभी भाजपा के लिए सबसे जरूरी है कि वह किसानों ,नौजवानों ,गरीबों और पिछले समुदाय के लिए कुछ करे। साथ ही, पार्टी बेरोजगारी की ओर भी ध्यान दे ।  गांधी परिवार को लगातार बदनाम करने और  कांग्रेस की असफलताओं को गिनाने  की यह प्रक्रिया बंद करें । क्योंकि इससे पार्टी ने 2014 में जो वायदे किए थे उन वायदों से विमुख होती हुई दिख रही है । विपक्ष में अपने साठ- सत्तर वर्षों के शासन में कुछ नहीं किया यह बताने से मतदाताओं की अंदर जो अपेक्षाएं हैं वह कभी भी पूरी नहीं होंगी।  2019 के चुनाव के बाद मतदाताओं को सत्तारूढ़ दल से बहुत सी उम्मीदें हैं और यदि भाजपा उन्हें उम्मीदों के पूरे होने का आश्वासन नहीं देती है तो यह उसके लिए शुभ नहीं होगा।बीता हुआ वर्ष भाजपा के लिए चुनावी नजरिए से अच्छा वर्ष नहीं होगा देखते हैं 2019 पार्टी के लिए कैसा होता है।

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